Guna Vidhan Sabha Seat :भाजपा के गढ़ को भेदने के लिए कैसी है कांग्रेस की तैयारी ?

Guna Vidhan Sabha Seat :गुना सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता शिव प्रताप सिंह 1972 से 1998 के बीच पांच बार विधायक रहे। वे एक बार जनसंघ पार्टी से भी निर्वाचित हुए, लेकिन वर्तमान में इस परिवार की विरासत को संभालने वाला कोई सदस्य सक्रिय नहीं दिखता। इस राजनीतिक रिक्तता को भाजपा ने बखूबी भरा। वर्ष 1980 में भाजपा के गठन के बाद यहां भाजपा चार बार और एक बार भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री रहीं उमा भारती की जनशक्ति पार्टी से विधायक रहे। फिलहाल पिछले 10 साल से भाजपा काबिज है, लेकिन यहां पर जरूरत के मुताबिक विकास कार्य नहीं हो पाए। वर्तमान विधायक गोपीलाल जाटव ने मेडिकल कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को उछाला, लेकिन वह भी जुमला बनकर रह गया। यातायात नगर, रिंग रोड, पानी निकासी जैसे मुद्दे दम तोड़ रहे हैं। विधायक जाटव ने विधायक निधि के करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन वह राशि बस स्टैंड, ओपन जिम और टैंकरों की बंदरबांट में बहकर रह गई। गांव में भी उनके कार्यकाल में विकास कार्य नहीं हो पाए। इससे मतदाताओं की नाराजगी भाजपा को सहनी पड़ सकती है। उधर, कांग्रेस भी यहां सक्रिय नजर नहीं आई। विपक्ष में होने के बाद भी वह सड़कों से दूर अपने गुणा-भाग में लगी रही। यहां सबसे बड़ी कमी रही तो वह थी नेतृत्व का उभर न पाना। यह दोनों दलों में बड़ी दिक्कत है। वर्तमान में भाजपा जहां मूल भाजपा और सिंधिया भाजपा में बंटकर खड़ी नजर आ रही है, तो कांग्रेस राघौगढ़ किले से संचालित हो रही है। लेकिन गुना पर नजर डालें तो कांग्रेस के पास फिलहाल कोई जिताऊ कैंडिडेट नजर नहीं आता। 3 महीना बदलाव के लिए काफी होता है।
जाति समीकरण बड़ा फैक्टर
गुना की राजनीति में जाति समीकरण बड़ा फैक्टर है। रघुवंशी, ब्राह्मण, कुशवाह समाज, रघुवंशी समाज, लोधा समाज एवं जैन व मुस्लिम समुदाय भी निर्णायक है। लोधा वोटर 5 हजार और कुशवाह समाज के वोटर 10 हजार को तवज्जो नहीं मिलने से नाराज हैं। इसी तरह 5 हजार ब्राह्मण, 6 हजार रघुवंशी वोटर हैं। जैन 10 हजार, मुस्लिम वोटर 8 हजार से अधिक हैं। गुना सीट के सबसे ज्यादा वोटर गुना शहर में हैं और इनमें इन समाजों की बहुलता है।
इन मुद्दों पर होगा चुनाव
गुना में विकास का मुद्दा सबसे ज्यादा जोर पकड़ेगा। पिछले पांच साल में गुना में विकास का कोई काम नहीं हुआ। जबकि विधायक निधि बस स्टैंड आदि में व्यय कर दी गई। सड़क, सीवर, पानी निकास की समस्या बनी हुई है। लिहाजा, स्थानीय विकास को विरोधी मुद्दा बनाएंगे। भाजपा सरकार की उपलब्धियां बताकर वोट मांगेगी तो कांग्रेस बताएगी कि गुना में मेडिकल कॉलेज, रिंग रोड, अच्छी सड़कों की आस पूरी नहीं हुई। गुना यूनिवर्सिटी का मुद्दा भी ठंडे बस्ते में है।
पत्रकार की टिप्पणी
वैसे तो गुना विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ कहलाती है, लेकिन यह बात पूरी तरह से अक्षरश: सही नहीं है, क्योंकि गुना की जनता ने अगर भाजपा पर बार-बार भरोसा किया है तो कांग्रेस को भी मौका दिया है और भारतीय जनशक्ति पार्टी जैसे तात्कालिक दल को भी विजय श्री का दान देकर अपने तेवर स्पष्ट कर दिए हैं। अगर पुरानी मान्यताओं की बात करें तो सिंधिया परिवार के वर्चस्व के कारण पार्टी को महत्व ना देकर सिंधिया राजघराने के प्रति लोगों ने निष्ठा जताते हुए घराने के सदस्य अथवा घराने के समर्थित प्रत्याशी को समर्थन दिया है। इस बार हालात थोड़े से अलग हैं। कांग्रेस का संचालन अब राघोगढ़ किले से हो रहा है जबकि भाजपा में शामिल सिंधिया गुट दावेदारी में सबसे आगे है। मूल भाजपाई भी पीछे नहीं हैं। इस बार फिर से गुना के मतदाताओं का मिजाज भांपना मुश्किल हो रहा है।
- नीरज त्रिपाठी,वरिष्ठ पत्रकार
भाजपा की ताकत
सबसे ज्यादा निर्वाचित और पदाधिकारी वाली पार्टी
गुना में भारतीय जनता पार्टी का संगठन काफी मजबूत है। सबसे ज्यादा पदाधिकारी और निर्वाचित प्रतिनिधि उनके पास हैं। वर्तमान शिवराज सरकार में शिवराज का चेहरा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा भी उनके पास है। लाड़ली बहना जैसी योजना से भी उनके पक्ष में माहौल बन रहा है।
भाजपा की कमजोरी
मूल संगठन व सिंधिया गुट में अनबन थमी नहीं
मूल भाजपा और सिंधिया गुट में एक दूसरे के बीच चल रही तकरार भाजपा की कमजोरी साबित हो सकती है। वर्तमान विधायक द्वारा कोई उल्लेखनीय काम ना कराना और पूरी विधायक निधि खर्च कर देना की भी चर्चा लोगों में है। वर्तमान नेतृत्व में युवाओं को मौका देने से सीनियर नेताओं में मनमुटाव दिखता है।
कांग्रेस की ताकत
संगठन और मजबूत हुआ
कांग्रेस पहली बार जमीनी स्तर पर काम करती दिख रही है। कांग्रेस में इस बार ऊपर से न थोपकर जमीनी स्तर के किसी कार्यकर्ता को टिकट देने की पहल होती दिख रही है। संगठन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुआ है और भाजपा की तरह पन्ना स्तर पर भी प्रभारी नियुक्त किए गए हैं। कांग्रेस कुशवाह, लोधा और यादव समाज में गहरी पैठ बनाती दिख रही है।
कांग्रेस की कमजोरी
नहीं जीत पा रही भरोसा
गुना में कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह जनता में विश्वास पैदा नहीं कर पा रही है। पार्टी की ओर से कोई स्पष्ट चेहरा पहले से निश्चित नहीं कर पाया गया। इसकी वजह से लोगों के बीच प्रत्याशी को लेकर स्थिति साफ नहीं है। इसका नुकसान पार्टी को हो सकता है। भाजपा के मुकाबले संगठन कमजोर है ही।
क्या काम हुए
पुरानी एबी रोड और कैंट रोड का निर्माण
एनीकट का निर्माण सीवर लाइन का निर्माण
एस्ट्रोटर्फ और सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण
जो नहीं हो पाए
यातायात नगर प्रोजेक्ट 30 साल से अटका
वायुदूत हवाई सेवा 30 साल से बंद
क्रिकेट स्टेडियम का ड्रीम प्रोजेक्ट अधर में
प्रमुख दावेदार
भाजपा
दावेदारों की तादाद काफी ज्यादा
भाजपा में दावेदार काफी ज्यादा हैं। इसके बाद भी सर्वे में सबसे ज्यादा तीन नाम चर्चा में हैं। इनमें विधायक गोपीलाल जाटव, पूर्व विधायक पन्नालाल शाक्य और कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया खेमे के नीरज निगम शामिल हैं। नीरज निगम को सबसे ज्यादा 45000 वोट के अंतर से हारना और सिंधिया खेमा परेशान कर सकता है। पन्नालाल शाक्य को ज्यादा बोलना और विधायक गोपीलाल जाटव का काम न करना उनको पीछे धकेल सकता है। भाजपा में वीरेंद्र सिंह अहिरवार का भी नाम चर्चा में है।
कांग्रेस
कांग्रेस में इन नामों की चर्चा
कांग्रेस में भी दावेदार बढ़ने लगे हैं। तीन प्रमुख दावेदारों की बात करें तो उनमें सबसे पहला नाम लालजीराम जाटव, दूसरा हरिओम खटीक और तीसरा संगीता मोहन रजक का है। इनके अलावा अन्य नाम भी हैं। संगीता मोहन रजक पहले भी चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। वह सिंधिया खेमे की मानी जाती हैं, लेकिन वर्तमान में भी किले के साथ जुड़ी हैं। हरिओम खाती चर्चाओं में हैं और लालजीराम जाटव बेहद सामान्य परिवार के दावेदार हैं।
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