Guru Purnima 2023 : मुझे कुछ देना है तो अपने भीतर छिपी बुराइयों को दीजिए...

Guru Purnima 2023 : मुझे कुछ देना है तो अपने भीतर छिपी बुराइयों को दीजिए...
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आज गुरुपूर्णिमा है। यािन गुरु की पूजा का दिन। हरिभूमि ने इस अवसर पर देश के प्रमुख संतों से बात की और उनके संदेश को जाना। सभी गुरुओं ने अपने शिष्यों से कहा कि वे अपने भीतर छिपी बुराइयों को दे दें, इसके बदले में वे उन्हें कहीं भटकने नहीं देंगे।

भोपाल। आज गुरुपूर्णिमा है। यािन गुरु की पूजा का दिन। हरिभूमि ने इस अवसर पर देश के प्रमुख संतों से बात की और उनके संदेश को जाना। सभी गुरुओं ने अपने शिष्यों से कहा कि वे अपने भीतर छिपी बुराइयों को दे दें, इसके बदले में वे उन्हें कहीं भटकने नहीं देंगे।

सद‍्गुरु जग्गी वासुदेव : हर किसी में अपार संभावनाएं, पर बड़े होने पर उनकी सुरक्षा की जरूरतें दबा देती हैं

गुरुपूर्णिमा पर मुझे कुछ देना है तो अपने भीतर छिपी बुराईयों को दीजिए, यकीन मानिए मैं उन्हें वापिस आपके पास भटकने भी नहीं दूंगा। आम तौर जब इंसान बच्चा होता है तो प्रतिभा का धनी होता है, सभी में कुछ न कुछ प्रतिभा जरूर होती है, मगर बड़े होते होते दब जाती है। उनकी सुरक्षा की जरूरतें प्रतिभा को दबा देती हैं। हर इंसान मंे प्रतिभा है, लेकिन 90% लोग प्रतिभा को पहचान नहीं पाते और उनके लिए दूसरी चीजें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। 12-15 साल में चांद पर जाऊंगा सोचता है, लेकिन पड़ोस की लड़की को देखा उसे चांद बुलाने लगे, तो संभावना और हकीकत में एक बारीक अध्यात्मिक अंतर है। यह अंतर गुरु के सानिध्य में आकर सामप्त हो जाता है और इंसान के भीतर छिपी संभावना से वो रुबरू होता है। गुरु वासुदेव ने कहा कि आदिशंकराचार्य ने कहा है कि योग रतो वा भोग रतो वा संग रतो वा संग विहिन: जिसका अर्थ है चाहे कोई योगी होकर सादा जीवन बिता रहा हो, या भोगी होकर विलासिता में दिन गंवाता हो। चाहे कोई समाज में सबके साथ रहे अथवा एकान्त में। सच्चा आनंद तो गुरु के चरणों में है। जरुरत है तो अपने भीतर छिपी सच्चाई को तलाशने की। अगर आप गुरु को कुछ दे सकते हैं तो मुझे जरुरत नहीं, लेकिन आप गुरु के नाम पर किसी जरुरतमंद बच्चे को, दूसरे खास प्रोजक्ट या प्रक्रिया के लिए दे सकते हैं। यदि कुछ लेना है तो गुरु कृपा लीजिए, फेकिंए नहीं। यदि गुरुपूर्णिमा पर मुझे कुछ देना है तो अपने भीतर छिपी बुराईयों को दीजिए, यकीन मानिए मैं उन्हें वापिस आपके पास भटकने भी नहीं दूंगा।

श्रीश्री रविशंकर: दुख के मूल को रोकने के लिए योग और प्राणायाम करना जरूरी

गुरु के जीवन में होने से कर्म बंधन काटता है, भीतर की ज्योति जगाता है। गुरु से मांगने में क्या शर्म, मांगने में अहंकार, क्रोध, आक्रोश नहीं होता, बस होती है तो असाहयता, असाय अवस्था में मांग को प्रार्थना का पहला रूप कहा जाता है, यही वो पल है जब आप गुरु के सन्निकट हैं। कोई भी कष्ट हमेशा नहीं बना रहेगा और दुख के मूल को रोकने के लिए योग करना जरूरी है, गुरुपूर्णिमा पर यही संदेश दूंगा कि यदि आप शारीरिक मानसिक दुखों से परेशान हैं तो ध्यान करें, प्राणायाम करें। यह आपकी पीड़ा को कम करके, आपको परम पिता परमेश्वर के निकट ले जाएगी। यह हमेशा याद रखें कि दुख तुम्हें ओर भी मजबूत करके जाएगा, दुख तुम्हें मिटा नहीं सकता, न ही कमजोर बना सकता है। उन्होंने कहा कि यदि गुरु पर संशय हो तो संशय से ही विश्वास पैदा होता है। संशय विश्वास को ओर भी मजबूत करता है। संशय से डरना नहीं, दिल की बात सुनो, संशय अपने आप दूर हो जाता है, दिल से, मन से लड़कर कोई भी जगत जीत लेगा, लेकिन यदि संशय आत्मा में घुस जाए तो विनाश का कारण है। थोड़ा बहुत संशय आए तो तुम निखरोगे। उन्होंने कहा कि गुरुत्व न होने से जीवन में न गति, न ज्ञान मिलता है और न ही हम कुछ प्राप्त कर सकते हैं। जीवन में गति मिलना हो आगे बढ़ना हो तो अटक जाते हैं तो अटकाव से आगे बढ़ने में गुरु मदद करता है, गुरु बिना मोक्ष प्राप्ति असंभव है।

स्वामी अवधेशानंद : गुरु के होने से दुर्लभता, दुगर्मता दुर्भेयता, अलभ्यता, दुर्गति नहीं

गुरुत्व हमेशा श्रद्धा के अतिरेक से जाग्रत होता है। शिष्य समर्पण के भाव से गुरु का सानिध्य प्राप्त करता है और गुरु के ऊपर विश्वास से साधक के मन में श्रद्धा जाग्रत होती है। गुरु एक तत्व है जो कहीं भी विकसित होता है, गुरु ग्रंथ से, गुरु पंथ से, गुरु व्यक्ति से, गुरु पूर्णता से। गुरुपूर्णिमा महोत्सव अपने गुरु को अपने मन, अपने विचार अर्पण करने का मौका है। अपने गुरु के अनुरूप जीवन जिएं। जो हमारी आकांक्षाओं में अध्यात्मिक प्यास भर दे, जो जातक की तरह ज्ञान की पिपासा, प्यास के चर्म तक और उसकी पूर्ति जो हमारे होने के अर्थों को उजागर कर हमारी खोई हुई अनंनता, अजेयता, अपराजिता को जाग्रत करे, जो अणु को परमाणु बना दे, जो न कुछ को सबकुछ करे दे, जिसके सामने कुछ भी असंभव नहीं, जिसके सामने असहाय नहीं, अल्भय नहीं, दुष्प्राप्य नहीं है उसी सत्ता का नाम गुरु है। इसलिए गुरु के जीवन में होने से अलभ्यता नहीं, दुर्लभता नहीं, दुगर्मता नहीं, दुर्भेयता नहीं, दुर्गति नहीं बल्कि सदगति और परमगति प्राप्त होती है। जिसके जीवन में होने से चेहरा, चाल और चरित्र तीनों बदल जाएं, उसका नाम गुरु है। चेहरे का अर्थ उसी दिशा में चलना, चाल का मतलब ठीक गति, चरित्र का अर्थ आपके भीतर सद्गुणों का विकास, विकारों से मुक्ति है। यही गुरु के सच्चे शिष्य की विशेषता है।

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