बच्चे कैसे इस एडल्ट कॉमेटी सीरियल से जुड़े आश्चर्य की बात है

भोपाल। भाभी जी घर पर है एक एडल्ट कॉमेडी सीरियल है इसीलिए इसका समय रात को 10:30 बजे रखा गया लेकिन हमें नहीं पता कि बच्चे भी इस सीरियल से कैसे जुड़ गए यह आश्चर्य की बात है। शायद हप्पू सिंह के किरदार और उसके आई लाइक इट कहने के अंदाज को बच्चों ने काफी पसंद किया और इसीलिए अब यह बच्चों का भी पसंदीदा सीरियल बन गया है। यह कहना है भाभी जी घर पर है फैम रोहिताश गौड़ का। खजुराहो फिल्म फेस्टिवल से लौटे रोहिताश की हरिभूमि से खास चर्चा।
दर्शकों को पसंद आती है नॉटी कॉमेडी
रोहिताश का कहना है मैं भोपाल इससे पहले में 2018 में भी आया था, तब मुझे चांद चाहिए सीरियल के शूट के लिए भी भोपाल आ चुका हूं। उन्होंने कहा कि सीरियल का कंटेंट उम्दा है, यही वजह है कि वेबसीरिज के जमाने में सीरियल के पास दर्शकों की भरमार है। इसका श्रेय सीरियल के राइटर को जाता है कि यह एक नॉटी कॉमेडी है।
सौम्या टंडन अब नहीं आएंगी, फिर भी सीरियल चलेगा
उन्होंने बताया कि इस सीरियल में पुरानी मैम यानी कि सौम्या टंडन नहीं आएंगी, उनका कहना है कि इस सीरियल की शुरूआत ना जाने कैसे हुई थी पहले इसमें भाभी जी याने शिल्पा शिंदे सीरियल शुरू होने के कुछ सालों बाद छोड़ कर चली गर्इं और अब 5 साल बाद इसमें गोरी मेम सौम्या टंडन भी चली गई हैं जो अब वापस नहीं आएंगी। इसके बावजूद सीरियल चल रहा है ओर चलेगा। खास बात तो यह है कि लॉकडाउन में भाभी जी घर पर हैं दर्शकों की पहली पसंद बना रहा और इसे 17 से 20 मिनट का वॉच मिला है। क्योंकि हमने इसका कंटेंट ही इतना उम्दा रखा है।
हीरो का रोल मिल रहा है तो आपको जरूर करना चाहिए
लापतागंज सीरियल के बाद मुझे इस सीरियल के लिए मनोज संतोषी ने फोन किया तब मेरी वाइफ ने कहा कि यह भले ही एक दिल फैंक आदमी की कहानी है लेकिन इस समय अगर आप आपको हीरो का रोल मिल रहा है तो आपको जरूर करना चाहिए।
कॉस्टयूम डिजाइनर की सोच है मेरी शर्टस का रंग बिरंगा कलेक्शन
सीरियल में हीरो के शर्ट के रंगबिरंगे कलेक्शन पर उन्होंने कहा कि यह कॉस्टयूम डिजाइनर की सोच है जब उन्होंने मेरे किरदार को सोचा समझा तो उनके जहन में यही आया कि एक दिल फेंक किस्म का आदमी कलरफुल कपड़े ही पहनें, जिसके पीछे उसकी सोच होगी कि कभी ना कभी तो भाभी जी इंप्रेस हो ही जाएंगे
मैं 11वीं में जानबूझकर फैल हो गया
रोहिताश का कहना है कि मेरे पिता मुझे साइंस दिलाना चाहते थे लेकिन मेरा दिलचस्पी नहीं थी तब मेरे प्रोफेसर ने पिताजी को कहा कि इसका साहित्य और कला में बहुत रूचि है तो आप इसे वही लेकर जाइए इसलिए मैं 11वीं में जानबूझकर फैल हो गया।
कॉलेज यूनिवर्सिटी में ड्रामा को सब्जेक्ट में जोड़ना चाहिए
रोहिताश का कहना है कि फिर मैंने 1989 में मुम्बई में कदम रखा और उसमें बीमार पड़ गया क्योंकि उस समय मुंबई में कला के क्षेत्र में बहुत कंपटीशन था उसके बाद मेरी सेट इनिंग 1997 में हुई, रोहिताश का कहना है कि हर प्रदेश से यंग टैलेंट सामने आ रहे हैं मैं हिमाचल से हूं तो वहां भी यंग टेलेंट की भरमार है। मेरा मानना है कि कॉलेज यूनिवर्सिटी में ड्रामा को सब्जेक्ट में जोड़ना चाहिए। महाराष्ट्र में तो यह लागू है अब अन्य प्रदेशों में भी लागू होना चाहिए।
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