Hujoor Vidhan Sabha Seat : हुजूर में भाजपा-कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच कड़ा मुकाबला

Hujoor Vidhan Sabha Seat : हुजूर में भाजपा-कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच कड़ा मुकाबला
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राजधानी भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट में एक बार फिर भाजपा-कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वंद्वी रामेश्वर शर्मा और नरेश ज्ञानचंदानी आमने-सामने हैं।

भोपाल। राजधानी भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट में एक बार फिर भाजपा-कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वंद्वी रामेश्वर शर्मा और नरेश ज्ञानचंदानी आमने-सामने हैं। रामेश्वर की छवि कट्टर हिंदू नेता की है। इसलिए यह चुनाव हिंदुत्व और विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। ज्ञानचंदानी ने पिछले चुनाव में रामेश्वर काे अच्छी टक्कर दी थी, इसलिए कांग्रेस ने उन्हें फिर एक मौका दिया है। इसकी वजह सिंधी समाज का वोट भी है जो हुजूर क्षेत्र में 35 हजार के आसपास है। यहां कांग्रेस से बगावत कर पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह डागा भी मैदान में उतर गए हैं। चूंकि 2008 में ये भाजपा से विधायक रहे हैं और बाद में कांग्रेस में शामिल हुए। लिहाजा, ये दोनों दलों के हार-जीत के समीकरण प्रभावित कर सकते हैं। डागा का हुजूर के ग्रामीण क्षेत्र में अच्छा असर है।

2018 में घट गया था जीत का अंतर

परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई हुजूर विधानसभा सीट पर प्रारंभ से भाजपा का ही कब्जा है। 2008 का पहला चुनाव यहां भाजपा के जितेंद्र डागा ने कांग्रेस के राजेंद्र सिंह मीणा को लगभग 17 हजार वोटों के अंतर से हराकर जीता था। यह जीत इस मायने में महत्वपूर्ण थी क्योंकि भाजपा के दो बागी भगवानदास सबनानी और भगीरथ पाटीदार निर्दलीय मैदान में थे। सबनानी को लगभग 23 हजार और पाटीदार को लगभग 13 हजार वोट मिले थे। एक प्रकरण के चलते 2013 में भाजपा ने डागा का टिकट काट कर रामेश्वर शर्मा को मैदान में उतारा। रामेश्वर यह चुनाव लगभग 60 हजार वोटाें के रिकार्ड अंतर से जीतने में सफल रहे। उन्होंने कांग्रेस के राजेंद्र मंडलोई को शिकस्त दी थी। लेकिन 2018 में रामेश्वर की जीत का अंतर घट कर लगभग साढ़े 16 हजार पर आ गया।

ब्राह्मण, सिंधी, दलित निर्णायक

हुजूर में ब्राह्मण, सिंधी और दलित वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा और निर्णायक है। ब्राह्मण लगभग 45 हजार हैं, जिनका झुकाव रामेश्वर शर्मा की ओर बताया जाता है। इसी प्रकार सिंधी समाज के लगभग 35 हजार वोट कांग्रेस के नरेश ज्ञानचंदानी के पक्ष मेँ जाते दिख रहे हैं। लगभग 42 हजार दलित मतदाता बंटा दिखता है लेकिन ज्यादा रुझान कांग्रेस की तरफ है। क्षेत्र में मीणा समाज के लगभग 22 हजार और मुस्लिम समाज के 12 हजार के आसपास मतदाता हैं। इनमें मीणा भाजपा और मुस्लिम कांग्रेस के पाले में जाते दिख रहे हैं। इस तरह जातीय लिहाज से न भाजपा कमजोर है और न ही कांग्रेस।

भाजपा को हिंदुत्व, विकास कार्यों का लाभ

जातीय समीकरणों से अलग हट कर भाजपा के रामेश्वर शर्मा ने चूंकि अपनी छवि कट्टर हिंदू नेता की बनाई है और इस क्षेत्र में हिंदू ही बहुतायत में हैं। इसलिए भाजपा को हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ मिल सकता है। वैसे भी भोपाल के आसपास के क्षेत्रों में हिंदू-मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण होता रहा है। इसके अलावा रामेश्वर ने क्षेत्र में विकास के खूब काम कराए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कह चुके हैं कि रामेश्वर क्षेत्र में विकास के अलावा किसी अन्य मसले पर बात ही नहीं करते। इसका लाभ भी भाजपा को मिल सकता है।

कांग्रेस एंटी इंकम्बेंसी, गारंटियों के सहारे

इसका मतलब यह भी नहीं है कि कांग्रेस बहुत पीछे है। उसे सरकार और विधायक के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का लाभ मिल सकता है। रामेश्वर की कार्यशैली से बहुत सारे लोग नाराज हैं। कांग्रेस इसका लाभ लेने की भी कोशिश में है। इसके अलावा कांग्रेस की गारंटियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं। खास कर महिलाओं को हर माह 15 सौ रुपए, 5 सौ में गैस सिलेंडर, सस्ती बिजली, किसान कर्जमाफी जैसी गारंटियों का लाभ कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में लगभग हर वर्ग के लिए घोषणाएं की हैं। कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा से भी कर्मचारी प्रभावित हैं।

आखिर नहीं माने जितेंद्र डागा

पूर्व विधायक जितेंद्र डागा को कांग्रेस ने मनाने की भरपूर कोशिश की। कांग्रेस प्रत्याशी नरेश ज्ञानचंदानी ने नामांकन दाखिल करने से पहले उनसे मुलाकात की। दोनों गले मिले और उनकी तस्वीर भी वायरल हुई लेकिन डागा नहीं माने और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। खबर है कि वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह एक बार फिर डागा से मिलकर उन्हें मनाने की कोशिश करेंगे। डागा का ग्रामीण क्षेत्र में खास असर है। वे जीते भले न लेकिन कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि उनके मैदान में रहने से भाजपा को भी नुकसान होगा।

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