पति ने 10वीं पास कहकर बेसहारा छोड़ा, बेटी और खुद के भविष्य के लिए अब पत्नी ने शुरू की बीएएलएलबी की पढ़ाई

पति ने 10वीं पास कहकर बेसहारा छोड़ा, बेटी और खुद के भविष्य के लिए अब पत्नी ने शुरू की बीएएलएलबी की पढ़ाई
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- डेढ़ साल से कर रही है बेटी और खुद के अधिकारों के लिए संघर्ष, एक समय ऐसा भी रहा जब भूखा सोना पड़ा

भोपाल। कहते है संघर्ष और मेहनत से इंसान हर वो मुकाम पा सकता है, जिसका वो सपना देखता हो। ऐसी ही संघर्ष की कहानी हैं राजधानी की संगीता (परिवर्तित नाम) की, जिसने जिंदगी में भले ही बहुत सी मुसीबतों का सामना किया हो, लेकिन उसका हौसला कभी डगमगाया नहीं। लॉकडाउन के दौरान पति ने दसवीं पास कहकर साथ छोड़ा, तो अपनी 11 साल की बेटी और खुद को हिम्मत से संभाला। करीब 20 साल पहले छोड़ चुकी पढ़ाई एक बार फिर शुरू की और बारहवीं की एग्जाम पास की। अब बीएएलएलबी की पढ़ाई कर रही है, ताकि उन पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए हर दम खड़ी हो सके, जिनको उनके अपनो ने ही बीच रास्ते में बेसहारा छोड़ दिया है।

शादी को हो गए 16 साल, घर का राशन तक नहीं छोड़ा :

संगीता के अनुसार उसकी शादी को 16 हो गए हैं और 11 साल की बेटी है। शादी के दौरान माता-पिता ने अपनी हैसियत से बढ़कर ससुराल वालों की दहेज सहित सभी मांगे पूरी की। शुरूआत में तो सबकुछ ठीक चलता रहा, लेकिन जब बेटी हुई तो पति और ससुराल वालों ने उसे इसके लिए दोषी बताया और मायके भेज दिया। कई माह तक मायके रहने के बाद जब ससुराल पक्ष की मांगे पूरी हुई तो फिर वापस ले जाने के लिए तैयार हुए। इस बीच ससुराल पक्ष की मांगे जारी रही, जिसे मायके वाले समय-समय पर पूरा करते रहे। जिसके बाद फिर ससुराल पक्ष द्वारा 1 लाख रूपए हर माह देने की मांग होने लगी। लेकिन इसी बीच कोरोना संक्रमण की एंट्री ने पूरा जीवन ही उलट कर रख दिया। जिस समय लोग अपनी नौकरियां तक छोड़कर अपने परिवारों के पास पहुंच रहे थे, उसी लॉकडाउन के दौरान 12-13 मई की रात पति अचानक घर का सारा कीमती सामान, नगदी, दस्तावेज और यहां तक खाने-पीने का सामान भी कार में भर बेटी और उसे बेसहारा छोड़कर अपने पैतृक गांव चला गया और दोबारा लौटा ही नहीं। संगीता के अनुसार रात में ग्रीन टी के साथ पति ने कुछ मिलाकर दिया था, जिससे रात में नींद ही नहीं खुली। सुबह जब नींद खुली तो पति की इस हरकत का पता चला।

कभी नहीं भूल सकती कोविड की एंट्री, कुछ दिन भूखी भी रही :

संगीता का कहना है कि वह कोविड-19 की एंट्री को कभी नहीं भूल सकती हैं। जब पति ने लॉकडान के दौरान बेटी और उन्हे बेसहारा छोड़ा तो हाथ में एक रूपए भी नहीं था और घर में खाने-पीने का सामान तक नहीं था। पति ने योजना के तहत पहले से ही सभी एटीएम कार्ड और अकाउंट बंद करा दिए थे और लॉकडाउन के चलते मायके पक्ष के लोग भी भोपाल नहीं पहुंच पा रहे थे। ऐसे में बेटी और खुद को कुछ दिन तक भूखा भी रहना पड़ा। हालांकि जब पडोसियों को इस घटनाक्रम की जानकारी लगी तो उन्होने खाने-पीने की व्यवस्था की। कुछ दिन बाद मायके पक्ष के लोग पहुंचे। जिसके बाद से अब तक वह ही बेटी और उसके भरण-पोषण की व्यवस्था कर रहे हैं।

फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है मामला :

संगीता के अनुसार जब पति का अचानक घर से इस तरह जाना हुआ तो कुछ भी समझ नहीं आया। कई बार पति और ससुराल पक्ष से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया। करीब चार माह बाद जब एक नोटिस आया, तो उसे देखकर पैरों तले जमीन खिसक गई। नोटिस से पता चला कि पति ने साथ रहते हुए ही तलाक का केस दर्ज करा दिया था। जिसके बाद पूरी कहानी समझते देर नहीं लगी। जिसके बाद जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, बाल आयोग, महिला आयोग सहित अन्य माध्यमों से पति से सुलह के प्रयास किए, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। जिसके बाद न्यायालय की शरण ली और भरण-पोषण, घरेलू-हिंसा का केस दर्ज कराया। जो फिलहाल न्यायालय में विचाराधीन है।

लडूंगी पीड़ित महिलाओं की लड़ाई :

संगीता का कहना है कि पति के छोड़कर चले जाने पर बहुत हताश हुई, लेकिन बेटी का चेहरा देख फिर हिम्मत जुटाई और पढ़ाई शुरू की। संगीता के अनुसार बीते करीब डेढ़ साल में कई बार पुलिस विभाग सहित अन्य फोरम पर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन कहीं से भी कोई राहत नहीं मिली। इस दौरान जब न्याय पाने के लिए परेशान हुई तो बीएएलएलबी करने की ठान ली। अब जीवन का सपना है कि एक बेहतर वकील बनकर उन पीड़िताओं की आवाज बनना है, जो अपनो की सताई हुई हैं।

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