Indore Vidhan Sabha Seats : इंदौर की पांचों सीटों पर कांग्रेस व भाजपा के बीच कड़ी टक्कर

Indore Vidhan Sabha Seats : इंदौर की पांचों सीटों पर कांग्रेस व भाजपा के बीच कड़ी टक्कर
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मप्र की सबसे हॉट सीट में से एक इंदौर-एक भी मानी जा रही है। यहां से पुराने भाजपा विष्णु प्रसाद शुक्ला (बड़े भैया) के बेटे संजय शुक्ला कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारा है।

भोपाल। मप्र की सबसे हॉट सीट में से एक इंदौर-एक भी मानी जा रही है। यहां से पुराने भाजपा विष्णु प्रसाद शुक्ला (बड़े भैया) के बेटे संजय शुक्ला कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारा है। दोनों के बीच कड़ी टक्कर बन गई है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि इस क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, ऐसा माना जा रहा है कि ब्राह्मण वोटर संजय शुक्ला की तरफ जाएंगे। हालांकि भाजपा की परंपरागत वोट की वजह से मुकाबला दिलचस्प बन गया है।

इंदौर-1 में भाजपा प्रत्याशी को दे रहे भाजपाई दिक्कत

इंदौर-1 में भाजपा प्रत्याशी को सबसे ज्यादा दिक्कत भाजपाई दे रहे हैं। मंत्री उषा ठाकुर इसी क्षेत्र से विधायक रह चुकी हैं। उनकी टीम भी वहां से नदारद है। दूसरी तरफ सुदर्शन गुप्ता इस क्षेत्र से दो बार विधायक रहे, पर पिछली बार चुनाव हार गए थे। इस पर वे निष्कि्रय बताए जा रहे हैं। हालांकि कैलाश विजयवर्गीय ने अपना पूरा कुनबा चुनाव में उतार दिया है।  किंतु कांग्रेस के संजय शुक्ला खुद इंदौर-3 से भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र गोलू शुक्ला के रिश्तेदार हैं। बताते हैं कि गोलू शुक्ला की एक टीम यहां कांग्रेस के संजय के लिए काम कर रही है। ऐसे में मुकाबला काफी दिलचस्प बन गया है। इन कारणों से इस सीट पर जीत-हार का अंतर काफी कम रहने की संभावना अभी से बन गई है। इस सीट पर 1993 से भाजपा जीतती आ रही थी। किंतु पिछली बार 2018 में कांग्रेस के संजय शुक्ला करीब 8 हजार वोटों से जीत गए थे।

भाजपा के गढ़ में कांग्रेस की हो सकती है एंट्री

इंदौर-2 सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां पिछले 1993 से अब तक लगातार भाजपा जीतती आ रही है, इस बार एंटी इनकंबेंसी की वजह से मुकाबला कांटेदार बन गया है। इस सीट पर तीन बार कैलाश विजयवर्गीय विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने तीन बार के विधायक रमेश मेंदोला को फिर से टिकट दिया है। जबकि कांग्रेस ने इस बार चिंतामणि चौकसे को मैदान में उतारा है। इस बार मुकाबला इसलिए दिलचस्प है कि चौकसे ने चार पार्षदों को टिकट दिलवाया, वे सभी कांग्रेस से चुनाव जीत गए। यहां 15 साल से एक ही विधायक को लेकर एंटी इनकंबेंसी है, किंतु मेंदोला के बारे में कहा जाता है कि वे हर किसी के लिए काम आते हैं। आज भी एक-एक व्यक्ित तक उनकी लोकप्रियता है। मेंदोला करीब 71 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। किंतु दूषित पानी की समस्या, उपेक्षा, विकास नहीं होने से कांग्रेस को मजबूती मिल रही है। इस वजह से इस बार मुकाबला काफी कड़ा हो गया है।

मराठी व मुस्लिम वोटर से कांग्रेस मजबूत

इंदौर-3 सीट पर भाजपा ने राजेंद्र गोलू शुक्ला को मैदान में उतार है, जबकि कांग्रेस ने दीपक जोशी को टिकट दिया है। भाजपा प्रत्याशी यहां से मजबूत है, किंतु इस सीट पर मराठी व मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। इसलिए टक्कर कड़ी हो गई है। यहां से 1998, 2003 व 2008 में कांग्रेस जीती थी। 2013 में भाजपा से उषा ठाकुर विधायक बनी। पिछली बार 2018 में भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय टिकट दिया था, वे विधायक बने। यहां से गोलू शुक्ला उम्म्ाीदवार हैं। उनकी आधी टीम अपने रिश्तेदार संजय शुक्ला के साथ लगी है, आधी इनके पास है। ऐसे में मुकाबला कठिन हो गया है।

कांग्रेस के राजा मंधवानी सिंधी मतदाताओं के भरोसे

इंदौर-4 पर इस बार कांग्रेस ने राजा मंधवानी को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने मालिनी गौड़ को टिकट दिया है। इस सीट पर पहले मालिनी गौड़ के पति लक्ष्मण सिंह गौड़ जीतते आए। वे तीन बार विधायक रहे। इसके बाद उनकी पत्नी मालिनी गौड़ को भाजपा ने टिकट दिया। वे भी तीन बार से विधायक हैं। कई कारणों से मालिनी को इस बार दिक्कतें आ रही है। एक वजह यह हैं उनके बेटे की क्षेत्र में नकरात्मक छवि है। कांग्रेस ने सिंधी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर हिंदू-मुस्लिम फैक्टर भी होता है।

इंदौर-5 पर भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर

इंदौर-5 सीट पर इस बार कांग्रेस ने सत्यनारायण पटेल को मैदान में उतारा है, जबकि चार बार के विधायक महेंद्र हार्डिया को भाजपा ने मैदान में उतारा है। इस क्षेत्र में खाती समाज के वोटर ज्यादा है। सत्यनारायण पटेल उसी समाज से हैं। हालांकि हार्डिया चूंिक जमीनी नेता है, ऐसे में मुकाबले की टक्कर की मानी जा रही है। बताते हैं कि इंदौर में जब बगावत शुरू होती है तो सबसे पहले इसी क्षेत्र से होती है। इसलिए भाजपा के लिए सीट मुश्किल बन गई है।

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