jabalpur green corridor : जिगर के लिए बना देश का सबसे बड़ा ग्रीन कॉरिडोर पहली बार 4 घंटे में तय किया 350 किमी का सफर

भोपाल। मौत के बाद भी कैसे दूसरे को जीवनदान दिया जा सकता है। गुरुवार को एक बार फिर इसकी मिसाल सामने आई। जब जबलपुर के एक मरीज के लिवर (जिगर) से भोपाल के एक मरीज को जीवनदान दिया गया। जिंदगी बचाने के लिए देश में पहली बार 350 किमी लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। इस दौरान करीब चार घंटे में 350 किमी का सफर तय किया गया। बड़ी बात यह है कि अंगों के प्रत्यारोपण के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराया था, लेकिन तकनीकि गड़बड़ी के चलते लिवर को एयरलिफ्ट नहीं किया जा सका।
लिवर का ही प्रत्यारोपण संभव
जानकारी के मुताबिक जबलपुर निवासी 64 वर्षीय मरीज को ब्रेन ट्यूमर था। जबलपुर के मेट्रो अस्पताल में गुरुवार सुबह मरीज ब्रेन डेड घोषित किया गया। मरीज के परिजनों ने ब्रेन डेड पेशेंट के आर्गन डोनेट करने की इच्छा जताई थी। जांच के बाद मेट्रो अस्पताल के चिकित्सकों ने डॉक्टरों ने दोनों किडनी, लिवर ओर कॉर्निया ट्रांसप्लांट पर सहमति जताई। नियमानुसार किडनी भोपाल के बंसल अस्पताल और चिरायु मेडिकल कॉलेज को दी जानी थी, वहीं लिवर का प्रत्यारोपण बंसल अस्पताल में तय किया गया। हालांकि समय ज्यादा लगने पर सिर्फ लिवर का ही प्रत्यारोपण संभव हो सका।
क्यों बनाना पड़ा सबसे बड़ा ग्रीन कॉरिडोर
जानकारी के मुताबिक मरीज को ब्रेन डेड हुए 10 घंटे से ज्यादा हो चुके थे, ऐसे में ज्यादा देर होने पर किडनी के खराब होने की आशंका बढ़ रही थी।
किडनी ट्रांसप्लांट से पहले क्रॉस मैचिंग जांच होती है, जिसमें 8 से दस घंटे लगते हैं। ऐसे में आॅर्गन को एयरलिफ्ट कराने की योजना बनाई गई।
डॉक्टरों ने इसकी जानकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दी, उन्होंने तत्काल अपना हेलीकॉप्टर अंग प्रत्यारोपण के लिए भेज दिया।
जानकारी के मुताबिक तकनीकि गड़बड़ी के चलते हेलीकॉप्टर देर शाम के बाद उड़ान नहीं भर सका, ऐसे में किडनी को हार्वेस्ट करने की योजना रद्द कर दी गई।
सिर्फ लिवर को सड़क के रास्ते भोपाल भेजने की तैयारी की गई। करीब 350 किमी की दूरी महज चार घंटे में पूरी कर लिवर को रात 1.30 बजे भोपाल लाया गया।
एम्स: स्तन से कैंसर की गांठ हटाकर प्लास्टिक सर्जरी कर दिया सामान्य रूप
एम्स के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने स्तन में कैंसर से पीड़ित महिला की कैंसर की गांठ हटाकर प्लास्टिक सर्जरी कर सत्न को सामान्य रूप देन में सफलता हासिल की। नर्मदापुरम की40 साल की महिला मरीज पिछले छह महीनों से बाएं स्तन में कैंसर की गांठ से पीड़ित थी। कई अस्पतालों के में उन्हें बताया गया कि इसके इलाज में ऑपरेशन के द्वारा स्तन को निकालना होगा, जिसमें तीन लाख रुपए तक खर्च आएगा। इसके बाद परिजनों ने एम्स भोपाल के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. नीलेश श्रीवास्तव को दिखाया।उन्होंने क्लिनिकल, रेडियोलॉजिकल और हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच कर सर्जरी की योजना बनाई। सर्जरी के दौरान सेंटिनल लिम्फ नोड बायोप्सी कर फ्रोजन सेक्शन भेजा गया। सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. विनय कुमार के मार्गदर्शन में डॉ. नीलेश श्रीवास्तव, डॉ. दीपक कृष्णा, बर्न्स और प्लास्टिक सर्जरी और डॉ. संदीप सहायक प्रोफेसर एनेस्थीसिया के नेतृत्व वाली टीम ने ऑपरेशन किया। प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. मनाल खान ने बताया कि यह एक बेहद जटिल कॉस्मेटिक ऑपरेशन है, जिसके द्वारा रोगी के स्तन को पूरा निकालने के बजाए संक्रमित भाग को निकालकर प्लास्टिक सर्जरी से स्तन को सामान्य आकार दे दिया जाता है।इससे न केवल मरीज के शरीर को सामान्य स्वरूप मिलता है।
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