Khurai Vidhan sabha Seat : खुरई में भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी ढूंढ़ना कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या और चुनौती

Khurai Vidhan sabha  Seat : खुरई में भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी ढूंढ़ना कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या और चुनौती
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वर्ष 1957 से अस्तित्व में आई खुरई विधानसभा सीट के लिए अब तक 14 विधानसभा के चुनाव हो चुके है, जिसमें एक बार जनसंघ, छह बार भाजपा और सात बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई है।

भोपाल। वर्ष 1957 से अस्तित्व में आई खुरई विधानसभा सीट के लिए अब तक 14 विधानसभा के चुनाव हो चुके है, जिसमें एक बार जनसंघ, छह बार भाजपा और सात बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। इस सीट से सर्वाधिक चार बार भाजपा के धरमूलाल राय जीतने में सफल रहे हैं। तब सीट अजा वर्ग के लिए आरक्षित थी। परिसीमन के बाद 2008 में यह सीट सामान्य हुई। पहले चुनाव में भूपेंद्र सिंह कांग्रेस के अरुणोदया चौबे से हार गए थे। जबकि पिछले दो चुनाव से भूपेंद्र ही जीत रहे हैं। भूपेंद्र ने मंत्री रहते खुरई को अपने गढ़ में तब्दील कर लिया है। चौथी बार भी भाजपा की ओर से उनका ही मैदान में उतरना तय है।

मुख्यमंत्री के निकटतम मंत्रियों में एक थे

अरुणोदय के कांग्रेस में न होने के बावजूद कहा जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें ही टिकट देगी और एक बार फिर भूपेंद्र और अरुणोदय ही आमने-सामने होंगे। यदि चौबे चुनाव नहीं लड़ते हैं तो कांग्रेस ललितपुर के चंद्रभूषण सिंह गुड्डू राजा पद दांव लगा सकती है। खुरई क्षेत्र उत्तर प्रदेश के ललितपुर से सटा है इसलिए बुंदेला बंधुओं का क्षेत्र में खासा असर है। अरुणोदय के बाद वे ही भूपेंद्र को साम, दाम, दंड, भेद से चुनौती दे सकने में सक्षम हैं। गुड्डू राजा ने भीड़ और तामझाम के साथ पिछले दिनों कांग्रेस ज्वाइन की थी। दरअसल, 2013 में भूपेंद्र खुरई से जीतने के बाद मंत्री बने और मुख्यमंत्री के निकटतम मंत्रियों में एक थे।

क्षेत्र में अपनी जड़े जमाईं

इसकी वजह से उन्हें क्षेत्र का विकास करने में आसानी हुई। बीते 10 साल में खुरई में चौतफा विकास हुआ। धीरे-धीरे भूपेंद्र ने क्षेत्र में अपनी जड़े जमाईं। पंचायत और नगरी निकाय के चुनाव में दबदबा कायम किया। हालात ये है कि खुरई नगर पालिका में सभी 32 पार्षद भाजपा के हैं। भाजपा नेता कांग्रेस मुक्त खुरई बनाने का दावा करने लगे हैं। हालांकि कांग्रेस का आरोप रहा है की सत्ता के प्रभाव के चलते अधिकांश जगह कांग्रेस के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोका गया और जब विधानसभा के आम चुनाव होंगे, तब कांग्रेस अपनी ताकत दिखाएगी।

क्षेत्र में अजा वर्ग का दबदबा

खुरई विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता हैं। इनमें अहिरवार, खटीक, राय और बसोर को मिलाकार लगभग 60 मतदाता हैं। इसके बाद दांगी, राजपूत और बुंदेला को मिला कर ठाकुर लगभग 22 हजार हैं। 18 हजार के करीब लोधी और इतने ही यादव मतदाता हैं। क्षेत्र में लगभग 15 हजार के आसपास ब्राह्मण और 10 हजार के आसपास जैन मतदाता हैं। लगभग 15 हजार के आसपास कुशवाहा, पटेल समाज के मतदाता गए हैं।

विकास और आतंक का मुद्दा

खुरई विधानसभा सीट में भाजपा जहां क्षेत्र के विकास काे अपना मुद्दा बनाएगी। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को गिनाएगी तो कांग्रेस क्षेत्र में भाजपा के आतंक को मुद्दा बनाएगी। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कह चुके हैं कि क्षेत्र में मंत्री भूपेंद्र का आतंक है और सरकारी मशीनरी के दम पर विरोधियों को प्रताड़ित किया जाता है। सागर जिले के मंत्री, विधायक उनके खिलाफ नेतृत्व तक से मिल चुके हैं। कांग्रेस इसे ही भुनाने की कोशिश करेगी।

भाजपा की ताकत

सबसे बड़ी ताकत भूपेंद्र

खुरई में अब भाजपा की सबसे बड़ी ताकत विधायक और मंत्री भूपेंद्र सिंह ही हैं। उन्होंने क्षेत्र में विकास के काम कराए हैं। उनके असर का नतीजा है कि कांग्रेस को तो प्रत्याशी मिल ही नहीं रहा, भाजपा में भी कोई और दावा नहीं कर रहा है। इसके अलावा सरकार की योजनाओं से तो भाजपा को ताकत मिलेगी ही।

भाजपा की कमजोरी

सरकारी मशीनरी का दुरुपयाेग

खुरई में भाजपा के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो सकता है। लोगों का कहना है कि आतंक और अफसरों की मनमानी के कारण लोग चुप हैं लेकिन चुनाव में मतदान कर वे भाजपा पर अपना गुस्सा निकाल सकते हैं। आरोप है कि अफसर वही करते हैं जो भूपेंद्र कहते हैं। शेष लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती।

कांग्रेस की ताकत

लोगों के गुस्से से लाभ संभव

कांग्रेस खुरई में लोगों के गुस्से के भरोसे है। वरिष्ठ नेताओं दिग्विजय सिंह और कमलनाथ इस गुस्से को भुनाने के लिए क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और कह चुके हैं कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है, कांग्रेस साथ खड़ी है। विरोधियों के खिलाफ पुलिस प्रकरण और प्रशासन की कार्रवाई के कारण काफी तादाद में लोग भाजपा से नाराज बजाए जाते हैं।

कांग्रेस की कमजोरी

मुसीबत में अपनों का साथ न देना कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह खुरई क्षेत्र के अपने सबसे ताकतवर नेता अरुणोदय चौबे तक का साथ नहीं दे पाई। चौबे ने यह आरोप लगाकर ही कांग्रेस छोड़ने का एलान किया था। जबकि 2008 में उन्होंने ही भूपेंद्र को हराया था। अब कांग्रेस भरोसा दे रही है लेकिन साथ न देने के कारण कांग्रेस अपना नुकसान कर चुकी है। लोग भूपेंद्र के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

प्रमुख दावेदार

भाजपा

भाजपा से भूपेंद्र का लड़ना तय

खुरई से एक बार फिर भाजपा से भूपेंद्र सिंह का ही चुनाव लड़ना तय है। वे मुख्यमंत्री के इतने खास हैं कि जब सिर्फ 5 मंत्री बने थे तब भी भूपेंद्र का नाम शामिल था। लगातार चुनाव हारने पर भी उन्हें टिकट मिलता रहा। हालांकि उन्होंने खुद को साबित भी किया। यदि मोदी-शाह की जोड़ी चौंकाने वाला कोई निर्णय न लिया तो भूपेंद्र ही भाजपा के प्रत्याशी होंगे।

कांग्रेस

दो प्रमुख दावेदारों में रेस

वैसे तो खुरई से लड़ने के लिए कांग्रेस के पास प्रत्याशी नहीं है। इसीलिए दिग्विवजय सिंह को कहना पड़ा था कि जरूरत पड़ी तो वे खुरई से चुनाव लड़ेंगे। बहरहाल, पार्टी छोड़ने के बावजूद अरुणोदय चौबे ही कांग्रेस के प्रमुख दावेदार हैं। उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही हैं। दूसरे दावेदार हाल में कांग्रेस में शामिल हुए चंद्रभूषण् सिंह गुड्डू राजा हैं। इनमें से ही किसी के मैदान में उतरने की संभावना है।

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