मध्यप्रदेश ने हमेशा के लिए शेरों से हाथ धोए, कूनो में शेर की दहाड़ की जगह सुनाई देगी चीतों की म्यायू-म्यायू, पूर्व मंत्री सिंह ने जताया असंतोष

मध्यप्रदेश ने हमेशा के लिए शेरों से हाथ धोए, कूनो में शेर की दहाड़ की जगह सुनाई देगी चीतों की म्यायू-म्यायू, पूर्व मंत्री सिंह ने जताया असंतोष
X
मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र कुमार सिंह ने कूनो नेशनल पार्क में बब्वर शेर नहीं आने पर असंतोष जताया है। उन्होंने कहा कि गुजरात के आगे म.प्र. के हितों की अनदेखी की गई है और अब कूनो में सिंह की दहाड़ की बजाय चीतों की म्यायू-म्यायू सुनाई देगी। इससे अब मध्यप्रदेश ने हमेशा के लिए शेरों से हाथ धो लिए है।

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र कुमार सिंह ने कूनो नेशनल पार्क में बब्वर शेर नहीं आने पर असंतोष जताया है। उन्होंने कहा कि गुजरात के आगे म.प्र. के हितों की अनदेखी की गई है और अब कूनो में सिंह की दहाड़ की बजाय चीतों की म्यायू-म्यायू सुनाई देगी। इससे अब मध्यप्रदेश ने हमेशा के लिए शेरों से हाथ धो लिए है।

तीस साल पुरानी योजना पर लगा विराम

पूर्व मंत्री सिंह ने कहा कि म.प्र. के कूनो नेशनल पार्क में बब्बर शेर बसाने की 30 साल पुरानी योजना पर एक तरह से विराम लग गया। हमे केन्द्र सरकार से मन्जूरी 1992 में मिली थी। म.प्र. सरकार ने लगभग 250 करोड़ खर्च कर कूनो कि जैव विविधता को न सिर्फ संवारा बल्कि पार्क क्षेत्र में बसे वन ग्रामों के विस्थापन के साथ साथ वहां के ग्रामवासियों को उचित मुआवजा देकर उनका पुनर्वास भी किया। 2003 में पार्क तैयार हो गया। तभी से वह शेरों के आने की बाट जोह रहा है । केन्द्र एवं गुजरात सरकार से पत्राचार कर इन्हें कूनो लाने की निरंतर कोशिश का नतीजा यह रहा कि केन्द्र तो राजी हो गया लेकिन गुजरात सरकार लगातार पैर घसीटती रही ।

ऐशियाटिक लायन प्रजाति सिर्फ भारत में

उन्होंने कहा कि सिंह की यह प्रजाती ऐशियाटिक लायन के रूप में जानी जाती है और यह सिर्फ भारत में ही बची है । इस प्रजाति को यदि विलुप्त होने से बचाना है तो इन्हें भारत में ही अन्य नेशनल पार्कों में भी रख कर इनका संवर्धन करना होगा क्योंकि यदि गिर इलाके में कोई महामारी आती है तो इस प्रजाती के समाप्त होने की संभावना बच जाती है। साथ ही अभी इतनी बढ़ती संख्या के कारण, आपसी खूनी संघर्ष इनका जंगल छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने से मानव- शेर संघर्ष के किस्से सर्वविदित हैं ।

रोड़ा अटकाती रही गुजरात सरकार

पूर्व मंत्री सिंह ने बताया कि म.प्र. के ही आर.टी.आई एक्टविस्ट अजय दुबे की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगी और न्यायालय ने केन्द्र और गुजरात सरकार को गुजरात से कूनों में शेरों को भेजे जाने का आदेश दिया और 6 माह की समय सीमा तय कर दी। जब 2014 में शेर नहीं पहुंचे तो दुबे ने न्यायालय की अवमानना की याचिका लगाई । आखिर केन्द्र के वकील ने 2018 में बताया कि शेर शीघ्र म.प्र. भेजे जा रहे हैं और याचिका समाप्त हो गई । शेरों के पुनर्वास हेतु दिसम्बर 2016 में विशेषज्ञ समिति बनी लेकिन बैठक पर बैठक कर समय जाया करती रही। गुजरात सरकार अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के मापदंडो को ढाल बनाकर शेरों के बसाहट में रोड़ा बनती रही । उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में देश से विलुप्त प्रजाति चीते को भारत लाने की पहल सर्वप्रथम तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने की थी और इसके लिए कूनों नेशनल पार्क के साथ साथ म.प्र. में ही नौरादेही (सागर दमोह, नरसिंहपुर जिलों में स्थित ) गांधीसागर एवं प्रदेश के 5 अभ्यारणों को चुना गया | 2020 में एन.टी.सी.ए को सर्वोच्च न्यायालय से चीते भारत लाने की अनुमति मिली यानि कूनो के अलावा इनमें से कोई भी अन्य पार्क का चयन किया जा सकता था ।

Tags

Next Story