महर्षि वाल्मीकि बने मध्यप्रदेश में चुनावी एजेंडा

अजय त्रिपाठी, भोपाल
राजनीतिक पार्टियां जनकल्याण, विकास, सुशासन जैसे तमाम दावे चाहे कितना भी करें लेकिन चुनाव आते ही वह जाति, धर्म, संप्रदाय के एजेंडे पर आ जाती हैं। इसलिए मध्यप्रदेश में 4 सीटों के उपचुनाव के दौरान कांग्रेस-भाजपा दोनों को ही आदि संत बाल्मीकि जी याद आ गए हैं। चुनावी गहमागहमी के बीच दोनों पार्टियां बाल्मीकि जयंती बहुत धूमधाम से मना रही हैं। महर्षि बाल्मीकि मध्य प्रदेश में चुनावी एजेंडा बन गए हैं।
मध्य प्रदेश में लोकसभा की एक और विधानसभा की तीन सीटों के उपचुनाव रोज सियासत के नए रंग दिखा रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा हो या विपक्ष कांग्रेस दोनों ही विकास, सुशासन, जनकल्याण जैसे मुद्दों से हटकर चुनावी एजेंडे पर चल रही है। बुधवार को दोनों पार्टियों को महर्षि बाल्मीकि याद आ गए। दोनों ही पार्टियों में बाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई गई। कई तरह के आयोजन किए गए। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर 4 सीटों के उपचुनाव नहीं होते तो पार्टियों को बाल्मीकि जी इतना ज्यादा याद नहीं आते। राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं कि इसके पहले भी संतों और महापुरुषों की जयंतियां पड़ती रही हैं लेकिन ऐसे आयोजन होते नहीं देखे गए। साफ लग रहा है कि उपचुनाव के कारण ही सबको वाल्मकि जी याद आ रहे हैं।
भाजपा की प्रतिष्ठा इस चुनाव में सबसे ज्यादा दांव पर लगी है। उसके सामने अपने खाते की खंडवा लोकसभा और रैगांव विधानसभा सीट बचाने के साथ-साथ जोबट और पृथ्वीपुर कांग्रेस से छीनने की भी चुनौती है। इसलिए पार्टी अपने चुनावी कैनवास में रोज नए रंग भर रही है। इसी कड़ी में बाल्मीकि जयंती का आयोजन किया गया। वाल्मीकि जयंती पर सुंदरकांड से लेकर महर्षि बाल्मीकि की रथ यात्रा तक निकाली गई। चुनाव की तमाम व्यस्तताओं के बावजूद पार्टी के अध्यक्ष बीडी शर्मा बाल्मीकि जयंती के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद ही चुनाव क्षेत्र के लिए रवाना हुए। साफ दिख रहा है चुनाव ने ही बाल्मीकि जी के प्रति ज्यादा झुकाव कर दिया है। भाजपा इससे साफ इंकार करती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा कहते हैं कि भाजपा से जुड़े तमाम संगठन अक्सर ऐसे आयोजन करते हैं। महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर भी इसी तरह का आयोजन हमारी परंपरा का हिस्सा है। सुंदरकांड शोभा यात्रा का आयोजन पहली बार नहीं हो रहा है। इसका चुनाव से कोई लेना देना नहीं है।
विधानसभा की तीन सीटें या लोकसभा की एक सीट जीतने से कांग्रेस की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन वह सीटें जीतकर सत्ता में बैठी भाजपा को नई चुनौती देना चाहती है। इसलिए कांग्रेस भी इस चुनाव में वे सारे हथकंडो का उपयोग कर रही है जो चुनावी हथियार माने जाते हैं। इसी कड़ी में बाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई।इसके लिए विशेष कमेटी बनाई गई। नेताओं को जिम्मेदारी दी गई और बाल्मीकि जी को याद किया गया। पार्टी का दावा है कि कांग्रेस लगातार महापुरुषों और संतों की जयंती मनाती है। चुनाव से उसका कोई लेना-देना नहीं है। कार्यक्रम के संयोजक और प्रवक्ता आनंद तारण कहते हैं कि कांग्रेस कभी भी धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ती है। इसलिए संतों महात्माओं से जुड़े आयोजन होते रहते हैं। इसका किसी तरह के चुनाव से कोई संबंध नहीं है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भले ही बाल्मीकि जयंती के आयोजनों को चुनावी नहीं मानती लेकिन जिस शिद्दत के साथ दोनों पार्टियां बाल्मीकि जी को याद कर रही हैं और जिस शिद्दत के साथ आयोजन किए गए उससे साफ जाहिर है कि दोनों ही दल बाल्मीकि जी को चुनावी हथियार बनाना चाहते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यही है चारों सीटों पर मतदाताओं के रूप में एक बड़ी आबादी दलित और कमजोर वर्ग की है। इसलिए बाल्मीकि जी सबको याद आ गए।
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