मोबाइल की लत बच्चों को बना रही आदतन चिड़चिड़ा

भोपाल। बच्चों के हाथों में मोबाइल थमाकर निश्चिंत हो जाने वाले अभिभावक होशियार हो जाएं। यदि आपका बच्चा अधिक समय तक इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है, तो वह इसका आदि हो रहा है। जिसकी लत उसे मानसिक रूप से बीमार और आदतन चिड़चिड़ा बना रही है। यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भोपाल के चिकित्सकों ने कही है।हाल ही में एम्स भोपाल के डॉ. दिगपाल सिंह चुंडावत और डॉ. वरुण मल्होत्रा का एक शोध प्रकाशित हुआ है। जिसमें 14 से 19 वर्ष के किशोरों पर रिसर्च की गई है। एम्स के चिकित्सकों द्वारा जिन 348 छात्र-छात्राओं पर शोध कार्य किया है। उसमें 65 प्रतिशत लड़के और 35 प्रतिशत लड़कियां शामिल हैं। इसी के साथ कक्षा 10 के 38.79 प्रतिशत विद्यार्थी, कक्षा 11 के 33.62 प्रतिशत विद्यार्थी और कक्षा 12वीं के 27.59 प्रतिशत विद्यार्थी शामिल किए गए हैं।
पांच फीसदी से ज्यादा बच्चे हो चुके हैं आदि
शोध में शामिल कुल छात्र-छात्राओं में 5.17 किशोर इंटरनेट के आदि पाए गए हैं। इनकी स्थिति इंटरनेट एडिक्ट जैसी है। हर समय मोबाइल या लैपटॉप या कम्प्युटर पर इंटरनेट चलाना, उसके जरिए ऑनलाइन गेम, वीडियो, सोशल मीडिया का इस्तेमाल ही इनको अच्छा लगता है। शोध के अनुसार 37 फीसदी से अधिक किशोर तीन साल के अधिक समय से इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। शोध यह भी बताता है कि कुल 348 किशोरों में से 56 फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं, जो इंटरनेट के आदि तो नहीं हैं, लेकिन मध्यम स्तर का एडिक्शन इनमें देखा गया है। वहीं 38 फीसदी किशोर ऐसे हैं जो इंटरनेट का इस्तेमाल सिर्फ काम के लिए करते हैं।
डोपामाइन हार्मोन करता है डिमांड
एम्स की शोध के अनुसार किशोरों में इंटरनेट के जरिए ऑनलाइन गेम और वीडियो देखने का चलन बढ़ रहा है। शुरू में यह सामान्य होता है, लेकिन जैसे जैसे किशोरों की स्क्रीन टाइमिंग बढ़ती है, वैसे वैसे शरीर में डोपामाइन हार्मोन एक्टिव होने लगता है। फिर यही हार्मोन हर समय इंटरनेट यूज करने को उकसाता है।
शोध में मिले खतरनाक रिजल्ट
एम्स के चिकित्सकों ने शोध में पाया कि जो बच्चे इंटरनेट के आदि हो गए हैं, यदि उन्हें समय पर इंटरनेट या मोबाइल न मिले तो वह चिड़चिड़े हो जाते हैं। डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के रिलीज होने के कारण एक क्लिक पर आभासी इंटरनेट गेमिंग की दुनिया में मिलने के बाद उपयोगकर्ता वास्तविक दुनिया में भी तत्काल संतुष्टि की तलाश करते हैं। जब उनकी इच्छा पूरी नहीं होती तो यह चिड़चिड़ेपन की ओर ले जाता है। जो आगे चलकर अन्य मानसिक रोगों का रूप ले सकते हैं।
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