MP Election 2023 : भाजपा में किनारे तो नहीं हो रहे ज्योतिरादित्य!

दिनेश निगम ‘त्यागी’ : भाजपा की राजनीति में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर दो दृश्य एक साथ देखने को मिल रहे हैं। पहला, नेतृत्व परिवर्तन की दशा में उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रमुख दावेदार बताया जा रहा है। दूसरा, चुनाव की रणनीति से जुड़ी बैठकों और बदलाव को लेकर चल रही उच्च स्तरीय कसरत में उनकी पूछपरख नहीं हो रही। पहला दृश्य इसलिए ज्यादा मायने नहीं रखता क्योंकि अब लगभग तय हो गया है कि भाजपा शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ने वाली है। दूसरा दृश्य ज्यादा महत्वपूर्ण है। हाल में हुई चुनिंदा नेताओं की बैठकों में कैलाश विजयवर्गीय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आए। इसमें प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के प्रदेश प्रभारी, संगठन महामंत्री शामिल हुए लेकिन कोर ग्रुप की बैठक के सिवाय सिंधिया कहीं नजर नहीं आए। इसका मतलब यह तो नहीं कि सिंधिया के खिलाफ भाजपा के दूसरे नेता लामबंद हो रहे हैं और उन्हें किनारे करने की कोशिश हो रही है? इस दूसरे दृश्य की वजह से ही चर्चा चल पड़ी है कि सिंधिया कांग्रेस से साथ आए सभी नेताओं को टिकट नहीं दिला पाएंगे। इससे उनके समर्थकों में खलबली और भगदड़ की स्थिति है। कई नेता भाजपा छोड़ चुके हैं और कई छोड़ने की तैयारी में हैं। सिंधिया को अपना कुनबा संभाल कर रखना मुश्किल हो रहा है।
यह भाजपा में मोहभंग, घुटन या कुछ और!
प्रदेश के राजनीतिक में लंबे समय से कांग्रेस एवं अन्य दल छोड़कर नेता भाजपा में आ रहे थे, अब भगदड़ के हालात भाजपा में है। हर हफ्ते पार्टी का कोई बड़ा नेता साथ छोड़ रहा है। पिछले हफ्ते ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ रहे बैजनाथ यादव ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामा था, इस हफ्ते पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह और एक अन्य नेता कांग्रेस के साथ आ गए। सिंधिया के एक और समर्थक राकेश गुप्ता ने भी बगावत कर दी है। यह स्थिति भाजपा के मोहभंग के कारण है, नेता घुटन महसूस करने लगे हैं या यह मप्र में भाजपा के कमजोर होने का संकेत है, कह पाना कठिन है लेकिन इस बदलाव के मायने गढ़े जा रहे हंै। खास यह है कि सिंधिया के साथ जुड़े नेता ज्यादा असहज हैं। बैजनाथ यादव जब कांग्रेस में आ रहे थे तब इमरती देवी प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को धमका रही थीं। उनके कहने का आशय यह भी था कि वे कांग्रेस फिर ज्वाइन कर सकती हैं और अब राकेश गुप्ता। ये महाराज से जुड़े हैं। यह अटकलें लगातार हैं कि सिंधिया इस बार अपने सभी समर्थकों को टिकट नहीं दिला पाएंगे। इसकी वजह से भी कुछ और समर्थक भाजपा को छोड़कर कांग्रेस के साथ आने की तैयारी में हैं। कांग्रेस नेता कहते तो हैं कि गद्दारों को पार्टी में नहीं लिया जाएगा, लेकिन आने वाले को हाथोंहाथ लिया भी जा रहा है।
दिग्विजय के निशाने पर महाराज के गोविंद!
केंद्रीय मंत्री महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास सिपहसलार प्रदेश सरकार के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के निशाने पर हैं। इसी कारण गोविंद के सुरखी क्षेत्र में वन अमले ने कुछ दलितों के अतिक्रमण हटाए तो दिग्विजय बना देर किए मौके पर पहुंच गए। पीड़ितों की समस्या सुनी और धरने पर यह कह बैठ गए कि जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे ‘टस का मस’ नहीं होंगे। इससे प्रशासन की सांसें फूल गईं। अफसरों को तत्काल दिग्विजय की सभी मांगें मानना पड़ीं। हालांकि गोविंद ने पहले ही कह दिया था कि उनकी जानकारी के बगैर वन अमले ने अतिक्रमण हटाया है। उन्हें जैसे ही पता चला दोषी रेंजर को सस्पेंड कर दिया गया और दलितों को आवास बनाकर देने की घोषणा की गई। सवाल ये है कि प्रदेश में इतनी घटनाएं होती हैं लेकिन दिग्विजय सुरखी क्षेत्र ही क्यों पहुंचे? गोविंद से उनकी ऐसी क्या नाराजगी है? खबर है कि गोविंद के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी की तलाश की योजना के तहत गोविंद के कट्टर विरोधी राजकुमार धनौरा ने पारुल साहू के साथ जाकर दिग्विजय और कमलनाथ से मुलाकात की है। राजकुमार ने सुरखी में गोविंद के खिलाफ झंडा उठा रखा है। वे वहां से कांग्रेस प्रत्याशी हो सकते हैं। साफ है गोविंद को घेरने का कोई मौका दिग्विजय नहीं छोड़ रहे हैं।
‘डर्टी पॉलिटिक्स’ से कुछ हासिल होने वाला नहीं
विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ भाजपा-कांग्रेस के बीच ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ तेज होने लगी है। भोपाल की दीवारों, मार्गों पर लगाए गए कुछ पोस्टर इसके उदाहरण हैं। पहले पोस्टर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के खिलाफ लगे। इनमें लिखा था ‘वांटेड करप्शन नाथ’ और ‘वांछित करप्शन नाथ’। इसे लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी थे। इस बीच कुछ स्थानों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ पोस्टर लग गए। इनमें लिखा गया ‘शिव राज- घोटाला राज’। कांग्रेसी पोस्टर को लेकर एफआईआर दर्ज कराने पुलिस थाने तक पहुंच गए और धरना दे दिया। सवाल है क्या, इस ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ से कुछ हासिल होगा, संभवत: कुछ भी नहीं। जनता राजनीतिक दलों के बीच की इस नूरा-कुश्ती से वाकिफ है। कमलनाथ शिवराज सरकार पर भृष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते हैं और शिवराज कहते हैं कि कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते बल्लभ भवन दलालों और भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया था। लेकिन दोनों सरकारों ने किसी नेता को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में नहीं डाला। वैसे तो राजनीति ईमानदार रहकर नहीं हो सकती, फिर भी लोग जानते हैं कि कौन नेता ईमानदार है और कौन भ्रष्ट, फिर भी वह इस आधार पर वोट नहीं करती। मुहिम से साफ है, कमलनाथ भाजपा की राह का रोड़ा हैं। इसलिए निशाने पर भी।
एक दूसरे का काम लगा देंगे नारायण-गणेश!
सागर में गोविंद सिंह राजपूत-भूपेंद्र सिंह की तरह भाजपा नेतृत्व सतना में सांसद गणेश सिंह एवं विधायक नारायण त्रिपाठी के बीच का विवाद भी नहीं सुलझा सकी है। यह शांत न हुआ तो नारायण-गणेश एक दूसरे का काम लगाएंगे ही, भाजपा को भी खासा नुकसान हो सकता है। गणेश विंध्य में पिछड़े वर्ग के नेता हैं और लगातार सांसद जबकि नारायण की पकड़ ब्राह्मण समाज में अच्छी है। वे भी मैहर से कई बार विधायक रह चुके हैं। नारायण हालांकि दल विशेष के प्रति कभी प्रतिबद्ध नहीं रहे लेकिन लोगों के बीच उनकी पकड़ हमेशा मजबूत रही। इसीलिए वे अलग-अलग दलों से चुनाव जीतते रहे हैं। नारायण लंबे समय से भाजपा पर हमलावर हैं और उससे ज्यादा सांसद गणेश सिंह पर। पिछले दिनों भाषा की मयार्दा लांघते हुए गणेश को उन्होंने राक्षस तक कह दिया था। जवाब में गणेश ने कहा था कि वे मदद न करते तो नारायण विधायक ही नहीं बनते। नारायण पहले ही विंध्य अंचल को लेकर भाजपा से अपना रास्ता अलग करने का संकेत दे चुके हैं। विंध्य में इस बार भाजपा की स्थिति पिछले चुनाव जैसी नहीं है। कांग्रेस उसे कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। भाजपा पर वह भारी भी पड़ सकती है। ऐसे हालात में इन विवादों को न सुलझाया गया तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।
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