Narsinghgarh assembly seat : भाजपा और कांग्रेस में आंतरिक असहमतियां चेहरे तय करेंगे नरसिंहगढ़ में जय-पराजय

Narsinghgarh assembly seat : भाजपा और कांग्रेस में आंतरिक असहमतियां चेहरे तय करेंगे नरसिंहगढ़ में जय-पराजय
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नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट किसी दल विशेष का गढ़ नहीं रही। 1990 से अब तक हुए चुनाव में 4 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस जीतने में सफल रही है।

ब्यावरा। नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट किसी दल विशेष का गढ़ नहीं रही। 1990 से अब तक हुए चुनाव में 4 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस जीतने में सफल रही है। राजगढ़ जिले की तीन सीटों में कांग्रेस नरसिंहगढ़ की तुलना में ज्यादा मजबूत है, इसलिए अब उसकी नजर नरसिंहगढ़ पर ज्यादा है। कांग्रेस इस बार नरसिंहगढ़ में जाति आधारित टिकट देकर भाजपा के प्रत्याशी के सामने मुश्किल खड़ी करने की कोशिश में है। सितंबर के प्रारंभ में कुरावर में आयोजित कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन को विधानसभा में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत करने से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, भाजपा के मौजूदा विधायक इस समय किसी भी प्रत्याशी की तुलना में ज्यादा मजबूत हैं। क्षेत्र में किए गए विकास कार्य एवं सांम्प्रदायिक दंगों पर अंकुश उनके प्रमुख अस्त्र हैं। राजनैतिक दृष्टि से अपनों से ही मिल रही चुनौती के कारण भाजपा को कमजोर बताया जा रहा है। इस पर कांग्रेस की पैनी नजर है। भविष्य में वह भाजपा की अंतर्कलह का फायदा उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेगी।

मतदाताओं की नजर में कम हो चुका था

नरसिंहगढ़ के पिछले तीन विधानसभा चुनावों 2008, 2013 और 2018 के परिणामों का विश्लेषण किया जाए तो पाएंगे कि 2008 में भाजपा के मोहन शर्मा कांग्रेस के गिरीश भंडारी से लगभग 3 हजार वोटों से जीतने में सफल रहे थे। जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में यही मोहन शर्मा अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के गिरीश भंडारी से 23018 मतों से पराजित हो गए। साफ है कि पूर्व विधायक का ग्राफ प्रदेश में भाजपा सरकार के होते हुए भी क्षेत्र के मतदाताओं की नजर में कम हो चुका था।

इन सीटों पर कांग्रेस ने तैयारी तेज कर दी

लिहाजा 2018 में भाजपा ने प्रत्याशी बदल दिया और राजवर्धन को मैदान में उतारा। राजवर्धन ने कांग्रेस के कद्दावर नेता गिरीश भंडारी को 9534 मतों के अंतर से हरा दिया था। आने वाले चुनाव की चुनौतियों की बात करें तो भाजपा को अपने ही पूर्व विधायक से खतरा है। इनके साथ सामंजस्य बैठाकर ही भाजपा सीट बचा सकती है। भाजपा ने इस दिशा में कोशिश भी की है। पिछले दिनों हुए भाजपा कार्यकर्ता सम्मेलन में विधायक राजवर्धन सिहं, सांसद रोडमल नागर एवं पूर्व विधायक मोहन शर्मा को एक मंच पर लाकर सब कुछ ठीक होने का संदेश दिया गया है। फिर भी मनभेद खत्म हुए, कहना कठिन है। बता दें, जिले की 5 विधानसभा सीटों में से भाजपा शासित 2 सीट नरसिंहगढ़ और सारंगपुर पर कांग्रेस का विशेष फोकस है। इन सीटों पर कांग्रेस ने तैयारी तेज कर दी है ।

स्थानीय मुद्दे डालते हैं असर

प्राकृतिक सौदर्य, संपदा से भरपूर नरसिंहगढ़ को पर्यटन स्थल घोषित करवाना यहां का प्रमुख मुद्दा है, ताकि शहर काे मालवा का कश्मीर बनाने का सपना पूरा हो सके। इसके अलावा नरसिहंगढ़ के साथ-साथ बोड़ा, कुरावर एवं तलेन में स्वास्थ्य सेवाएं नहीं सुधर पाई हैं। उच्च शिक्षा के लिए कुरावर, बोड़ा एवं तलेन में महाविद्यालय का न होना प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें चुनाव में उठाया जा सकता है। प्रदेश स्तरीय मुद्दे तो हैं ही, जिन पर चुनाव लड़ा जाएगा।

मीणा, मुस्लिम, खाती निर्णायक

नरसिंहगढ़ विधानसभा क्षेत्र में मीणा, मुस्लिम, खाती एवं चौरसिया समाज के वोट निर्णायक माने जाते हैं। इनमें 45-50 हजार मीणा समाज, लगभग 35 हजार मुस्लिम एवं चौरिसया व खाती समाज के मतदाता 20 और 25 हजार बताए जाते हैं। इनके अलावा राजपूत, गुर्जर, लववंशी, यादव, दलित एवं ब्रहाम्ण समाज के 7 से 10 हजार मतदाता प्रत्याशी का भाग्य तय करते हैं। यहां वर्तमान विधायक को राजघराने का उत्तराधिकारी होने एवं सभी को साथ लेकर चलने का लाभ मिलता है। सिर्फ राजवर्धन सिंह ही हैं जो भाजपा के लिए मुस्लिम वोटर्स को भी अपनी ओर खीचने में सक्षम हैं, वर्ना मुस्लिम परंपरागत तौर पर कांग्रेस की झोली में जाते रहे हैं।

पत्रकार की टिप्पणी

राजगढ़ जिले में शायद नरसिंहगढ़ अकेली वह विधानसभा है, जहां भाजपा को आसान जीत मिलती रही है, बावजूद इसके कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक मीणा ,मुस्लिम, दलित वोट हैं। शेष जातियों का समीकरण कुछ ऐसा बनता है कि यहां भाजपा को आसान जीत मिलती रही है। लेकिन इस बार भाजपा के पास सक्षम उम्मीदवारों का टोटा सा दिखता है। वर्तमान विधायक की सामाजिक स्वीकार्यता पिछले पांच सालों में उनके द्वारा किए गए कार्यों की बदौलत बढ़ी ही है। इसलिए विधायक राजवर्धन सिंह को पार्टी के भीतर से कोई चुनौती मिल रही हो, ऐसा फिलहाल नजर नहीं आता। भाजपा के पूर्व विधायक मोहन शर्मा और तलेन क्षेत्र को प्रतिनिधित्व को लेकर लक्ष्मीनारायण यादव भी अपनी दावेदारी कर रहे है, भाजपा राजवर्धन का टिकट काटकर कोई रिस्क लेगी, ऐसा नहीं लगता। वे भाजपा के अकेले ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस के बोटबैंक में सेंध लगाने में सक्षम हैं। उधर कांग्रेस के खेमे में आंतरिक कलह उजागर है। वहां पूर्व विधायक गिरीश भंडारी का नाम अब भी वजनदार है लेकिन शेष कांग्रेस में उनका विरोध देखने को मिल रहा है। दूसरा नाम इंदौर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे रघुनंदन परमार का लिया जा रहा है लेकिन बाहरी के कारण उन्हे स्वीकार्यता नहीं मिल पा रही है। वे राजपूत समाज से आते हैं तो समूची राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र से 4 विधायक इसी राजपूत समाज से आते हैं। इनमें स्वयं जयवर्धन सिंह, लक्ष्मण सिंह, खिलचीपुर से प्रियव्रत सिंह और एक विधायक आगर से। ऐसे में गुर्जर समाज से गोविंद सिंह गुर्जर और मीणा समाज से पूर्व जनपद उपाध्यक्ष देवकरण मीणा या ज्ञान सिंह मीणा के नाम पर सहमति हो सकती है। मीणा समाज वोट संख्या की दृष्टि से विधानसभा का बड़ा समुदाय है। गुर्जर समाज का वजन भी कम नहीं है। गुर्जर कांग्रेस समर्थक भी रहे हैं। उनका अन्य समाजों से अच्छा तालमेल भी है।महिला नेता को अगर एडजस्ट करना हुआ तो पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मंजूलता शिवहरे पूरे जिले में दोनो पार्टियों में अकेली ऐसी नेता हैं जो लोकप्रियता के मामले में किसी विधायक या सांसद से कम नहीं हैं।

-वरिष्ठ पत्रकार, इंतेखाब ए लोदी

भाजपा की ताकत

केंद्र व राज्य सरकार के का

भाजपा की प्रदेश एवं केन्द्र सरकार द्वारा किए गए जनहितैषी कार्य पार्टी की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं और यही बड़ी ताकत भी। वहीं मुख्यमंत्री की लाड़ली बहना योजना का भी पूरे क्षेत्र मे असर देखने को मिल रहा है। भाजपा विधायक द्वारा किए गए कार्यों में स्कूल ,कॉलेज ,स्वास्थ्य एवं सड़कों का चौड़ीकरण कर अतिक्रमण मुक्त किया गया एवं व्यवसाय के नए द्वार खोले गए । इनका लाभ भी भाजपा को मिल सकता है।

भाजपा की कमजोरी

गुटबाजी साबित होगी कमजोरी

भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी पूर्व विधायक एवं पूर्व पदाधिकारियों द्वारा गुटबाजी को बढ़ावा देना है, जिसके कारण नरसिंहगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पार्टी में दो धड़े दिखाई देते हैं। वर्तमान में विधायक राजवर्धन के सामने कांग्रेस से ज्यादा पार्टी की गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती है। इसे समय पर दूर करने से ही पार्टी मजबूत हो सकती है। सांसद एवं पूर्व विधायक को भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी के लिए बिना किसी मन मुटाव के काम करना होगा ।

कांग्रेस की ताकत

दिग्विजय का सीधा संपर्क

कांग्रेस की ताकत की बात की जाएं तो यहां पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का सीधा संपर्क क्षेत्र की जनता एवं जनप्रतिनिधियों से रहा है, जिसके कारण कांग्रेस यहां पर मजबूत नजर आती रही है। वहीं उन्हीं के बेटे जयवर्द्धन सिंह एवं पूर्व सांसद और विधायक लक्ष्मण सिंह के सतत संपर्क के कारण भी राजगढ़ क्षेत्र में कांग्रेस भाजपा से आगे नजर आती है।

कांग्रेस की कमजोरी

कांग्रेस में चेहरे का संकट

नरसिंहगढ़ में कांग्रेस के पास जिताऊ चेहरा नहीं है। पार्टी ने यदि तीन चुनाव लड़ चुके पूर्व विधायक गिरीश भंडारी को फिर मौका दिया तो यह पार्टी के लिए कमजोरी साबित हो सकता है। भंडारी तीन चुनाव लड़े, इनमें से एक जीते लेकिन दो चुनाव बड़े अंतर से हारे। पार्टी में दूसरे दावेदार तो हैं लेकिन उन्होंने लोगों के बीच अपनी अच्छी पहुंच नहीं बना पाई है। यह स्थिति कांग्रेस को कमजोर करती है।

क्या काम हुए

सिटीपोर्सन रोड, बैराज निर्माण

नरसिंहगढ़ में 100, कुरावर में 30 बिस्तर के अस्पताल

गांवों को शहर की सड़कों से जोड़ा

जो नहीं हो पाए

शहर में अतिक्रमण पर अंकुश नहीं

बारिश के पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं

कुरावर की पेयजल समस्या जस की तस

प्रमुख दावेदार

भाजपा

तीन प्रमुख दावेदारों में मुकाबला

भाजपा के पास लोकप्रियता के मान से वर्तमान विधायक राजवर्धन सिंह के बाद पूर्व विधायक मोहन शर्मा व तलेन से लक्ष्मीनारायण यादव के नाम प्रमुख हैं। राजवर्धन सिंह का दावा सबसे मजबूत है। इसका एक कारण भाजपा के आंतरिक सर्वे में वर्तमान विधायक का अच्छे अंक प्राप्त करना भी बताया जा रहा है। पूर्व विधायक मोहन शर्मा के सामने कांग्रेस के गिरीश भंडारी से उनकी बड़े अंतर से हार टिकट प्राप्ति में बड़ी बाधा है, हालांकि क्षेत्र में उनका सतत संपर्क है। उनकी लोकप्रियता बनी हुई है। लक्ष्मीनारायण तलेन क्षेत्र को मौका देने की बात कहकर पार्टी फोरम पर अपना दावा ठोक रहे हैं।

कांग्रेस

कांग्रेस में दावेदारों की भरमार

भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में उम्मीदवारों की भीड़ है, यहां स्थापित नेताओं की कमी नहीं है। स्थानीय स्तर पर लोग पूर्व विधायक गिरीश भंडारी को ही पुनः टिकट मिलने की बात पर शर्तें लगा रहे हैं। कांग्रेस में 2 नाम और चर्चा में है। एक इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनंदन सिंह परमार हैं। परमार पिछले कुछ समय से नरसिंहगढ़ क्षेत्र में सक्रिय हैं। दूसरे नंबर पर कुरावर मंडी के पूर्व अध्यक्ष रहे प्रेम किशोर मीणा का नाम है। इनके अलावा दूसरी पंक्ति में गुर्जर समाज के तेज तर्रार नेता और ग्रामीण राजनीति के माहिर गोविंद सिंह गुर्जर का नाम भी चर्चाओं में है।

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