Omkareshwar News : एकात्म धाम से आदि शंकराचार्य की 108 फीट की प्रतिमा देगी अद्वैतवाद का संदेश

Omkareshwar News : एकात्म धाम से आदि शंकराचार्य की 108 फीट की प्रतिमा देगी अद्वैतवाद का संदेश
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मध्यप्रदेश की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर एकात्म धाम का निर्माण किया जा रहा है। यहां आचार्य शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची बहुधातु प्रतिमा का अनावरण 21 सितंबर को किया जाना है।

भोपाल। मध्यप्रदेश की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर एकात्म धाम का निर्माण किया जा रहा है। यहां आचार्य शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची बहुधातु प्रतिमा का अनावरण 21 सितंबर को किया जाना है। उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद अब खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की सौगात मिलने से यहां पर पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा।

आधुनिक पीढ़ी के लिए सीएम ने बनाई योजना

9 फरवरी 2017 को ओंकारेश्वर में नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदि शंकराचार्य के जीवन दर्शन और अद्वैतवाद के सिद्धांत को आधुनिक पीढ़ी को बताने के उद्देश्य से यहां पर 108 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा बनाने का विचार आया है। तो वहीं आदि शंकराचार्य के बाल स्वरूप की मूर्ति बनाने के लिए प्रदेश की 23 हजार पंचायतों से जुटाए कॉपर, टिन, जिंक व अन्य धातुओं को जुटाया गया है। इन सबके मिश्रण से यह मूर्ति बनाई गई।

ज्योतिर्लिंग और नर्मदा की ओर है मुख

पहले चरण में साढ़े तीन फीट की मूर्ति प्लास्टिसिन क्ले से बनाई गई। दूसरे चरण में यह 11 फीट की बनाई गई। इन दोनों मूर्तियों के बनने के बाद अष्टधातु से 108 फीट की मूर्ति बन सकी। पहले साढ़े तीन और 11 फीट की मूर्ति बनाने का उद्देश्य यह है कि जब 108 फीट की मूर्ति बनाई जाए तो उसमें किसी भी तरह की कमी न रहे। मूर्ति पर प्रो यूरो कलर होने से बारिश और धूप का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। तो वहीं मूर्ति का मुख दक्षिण दिशा में यानि ज्योतिर्लिंग और नर्मदा की ओर रहेगा।

20 में से आखिर में चुने गए शिल्पकार रामपुरे

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस योजना में सबसे बढ़ी चुनौती मूर्तिकार का चयन करना था। इस काम के लिए सबसे पहले एक कमेटी बनाई गई, जिसमें शंकराचार्य का स्कैच बनाने वाले चित्रकार वासुदेव कामत, जनजातीय संग्रहालय के आर्किटेक्ट हरचंदन सिंह भट्टी, भारत भवन के शिल्पकार रोबिन डेविड को सदस्य बनाया गया। इस कमेटी ने देशभर से 20 सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकारों को बुलाकर स्कैच के आधार पर मूर्ति बनाने के लिए कहा गया।इन मूर्तिकारों ने पांच-पांच फीट की शंकराचार्य की प्रतिमाएं बनाकर कमेटी के सामने पेश की। ये मूर्तियां बनाना आसान नहीं था। पहले कलाकार मिट्टी की मूर्ति बनाते थे, फिर उसे फायर के रूप में ढाला जाता था। कमेटी ने इन प्रतिमाओं का रिव्यू कर सात मूर्तिकारों की प्रतिमाओं का चयन किया। शॉर्टलिस्ट कलाकारों को फिर से मूर्ति बनाने को कहा गया गया। दोबारा बनाई गई मूर्तियों के आधार पर 3 मूर्तिकारों का चयन किया गया। इसके बाद एक बार फिर इन तीनों शॉर्टलिस्ट मूर्तिकारों को फिर से शंकराचार्य की प्रतिमा बनाने को कहा गया। इसके बाद इन तीनों मूर्तिकारों में सबसे अच्छी प्रतिमा बनाने पर मराठी शिल्पकार भगवान रामपुरे का फाइनल रूप में चयन किया गया।

चार कोनों में स्थापित चार मठों के पहले शंकराचार्य थे

अद्वैत वेदांत के संस्थानों, मंदिरों और गुरुकुलों में प्रचलित मूर्तियों और चित्रों में शंकराचार्य चार प्रमुख शिष्यों के साथ परिपक्व युवा ही दिखाई दिए हैं। भारत के चार कोनों में स्थापित चार मठों के पहले शंकराचार्य बने थे। ओंकारेश्वर में आचार्य शंकर की मूर्ति के लिए उनके बाल स्वरूप में लेने का निर्णय इसलिए हुआ क्योंकि केरल के कालडी से 8 साल की आयु में शंकर यहां आए थे। ओंकारेश्वर में गुरू गोविंदपाद ने उन्हें दीक्षा दी थी और फिर यहीं उन्होंने अगले तीन वर्ष तक अद्वैत वेदांत का अध्ययन किया था। जब वे 11 साल के हुए तब उन्होंने आगे की यात्रा यहीं से आरंभ की थी। आदिगुरू के रूप में उनकी प्राण प्रतिष्ठा का केंद्र बिंदु ओंकारेश्वर ही माना गया है।

ओंकारेश्वर नगरी का आध्यामिक महत्व

मांधाता द्वीप के राजा मांधाता ने यहां घोर तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव से राजा ने वरदान में यहीं निवास का वरदान मांगा। जिसके बाद यहां पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हुए एवं राजा के राज्य की सुरक्षा एवं रक्षा भगवान शिव स्वयं करते रहे। वहीं ओंकारेश्वर को ओंकार-मान्धाता के नाम से भी जाना जाता था। साथ ही मान्यता है यहां पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास हैं तथा नर्मदा नदी मोक्षदायिनी हैं। 12 ज्योतिर्लिंग में ओंकारेश्वर का पवित्र ज्योतिर्लिंग भी शामिल हैं।

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