Panna Vidhan Sabha Seat : पन्ना में भाजपा के बृजेंद्र की जीत आसान नहीं मेहदेले के बगाबती तेवर कर सकते हैं परेशान

भोपाल। पन्ना भाजपाई मिजाज की सीट इसलिए है क्योंकि 1990 से अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस सिर्फ दो बार 1993 और 2008 में ही जीत दर्ज कर सकी है। 1990 में पन्ना राजघराने के लोकेंद्र सिंह जीते थे जबकि 2008 में श्रीकांत दुबे ने कुसुम मेहदेले को मात्र 42 वोटों के अंतर से हराया था। 1990 के बाद मेहदेले ने यहां से 4 चुनाव जीते हैं और पिछली बार बृजेंद्र जीतने में सफल रहे थे। उम्र का हवाला देकर पिछली बार मेहदेले का टिकट काट दिया गया था। वे इस बार फिर टिकट मांग रही हैं। टिकट न मिलने की स्थिति में उनके तेवर बगावती दिखते हैं। भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। बृजेंद्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास मंत्रियों में से एक हैं। इसीलिए उनके पास खनिज जैसा विभाग है। उन्होंने विधायक और मंत्री होने के नाते क्षेत्र में काम भी खूब किए हैं लेकिन भ्रष्टाचार और निरंकुश नौकरशाही के कारण लोग नाराज बताए जाते हैं। बृजेंद्र प्रताप को इस नाराजगी का अहसास है।
संभवत: इसीलिए अटकलें चल रही हैं कि वे पन्ना की बजाए अपनी पुरानी सीट पवई से चुनाव लड़ना चाहते हैं। पवई से प्रहलाद लोधी भाजपा के विधायक हैं। इस बार उनका टिकट काटे जाने की चर्चा राजनीतिक हलकों में है। हालांकि, फिलहाल बृजेंद्र पन्ना से ही चुनावी तैयारी कर रहे हैं। टिकट घोषित नहीं हुआ फिर भी वे क्षेत्र में रहकर लगातार प्रचार अभियान में लगे हैं। कांग्रेस का संगठन भाजपा की तुलना में काफी कमजोर है लेकिन यदि मजबूत प्रत्याशी मैदान में रहा तो अच्छा चुनावी घमासान देखने को मिल सकता है। पन्ना में तीसरे दलों के प्रत्याशी भी अच्छा वोट पाते हैं। पिछले चुनाव में ही बसपा की अनुपमा सिंह ने 22,818 और जन अधिकार मंच के महेंद्र पाल वर्मा ने लगभग 11 हजार वोट हासिल किए थे। तीन-चार चुनावों से तीसरे दलों के प्रत्याशी जीते भले नहीं लेकिन उन्होंने वोट अच्छे हासिल किए थे।
स्थानीय मुद्दों की कमी नहीं
पवई क्षेत्र में स्थानीय मुद्दों की कमी नहीं है। बंद पड़ीं हीरा और पत्थर खदान यहां का बड़ा मुद्दा है, जिसका निराकरण नहीं हो रहा है। नौकरशाही लोगों की नहीं सुनती। इसके अलावा मेडिकल कालेज, यूनिवर्सिटी, रेलवे लाइन और डायमंड पार्क भी यहां के मुद्दों में शामिल हैं। कांग्रेस जहां इन मुद्दों को लेकर भाजपा को घेरेगी, वहीं भाजपा सरकार की योजनाओं एवं विकास कार्यों को लेकर समर्थन मांगेगी।
ब्राह्मण, लोधी समाज निर्णायक
पन्ना क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता ब्राह्मण और लोधी समाज के हैं। ब्राह्मण 80 हजार और लोधी 45 हजार के आसपास बताए गए हैं। ये मतदाता ही चुनाव में हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा क्षेत्र मेें लगभग 30 हजार यादव मतदाता भी महत्वपूर्ण हैं। क्षेत्र में एससी-एसटी, अन्य ओबीसी, ठाकुर एवं वैश्य समाज भी काफी तादाद में है। खास बात यह है कि अधिकांश जातियों का झुकाव दल और व्यक्ति की ओर होता है।
भाजपा की ताकत
मजबूत संगठन
प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह पन्ना में भी भाजपा की बड़ी ताकत उसका मजबूत संगठन और बूथों तक फैली कार्यकर्ताओें की फौज है। इसके अलावा प्रदेश की भाजपा सरकार ने विभिन्न वर्गों के लिए जो योजनाएं संचालित कर रखी हैं, उनसे भी पार्टी को ताकत मिल रही है। लाड़ली बहना योजना सरकार की सबसे लोकप्रिय योजनाओं में से है।
भाजपा की कमजोरी
निरंकुश नौकरशाही
पन्ना में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है भ्रष्टाचार। हर काम के लिए लोगों को विधायक, मंत्री की ओर देखना पड़ता है। इसकी वजह से लोगों में नेताओं के प्रति नाराजगी है। निरंकुश नौकरशाही से भी लोग परेशान हैं। उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। विधायक, मंत्री आम कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देते हैं।
कांग्रेस की ताकत
एंटी इंकम्बेंसी का भरोसा
पन्ना में कांग्रेस को सरकार और विधायक के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का भरोसा है। लोगाें की नाराजगी को कांग्रेस अपने लिए ताकत मानती है। इस आधार पर कांग्रेस के दावेदार लोगों के बीच जा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस द्वारा लोगों को दी जा रही गारंटी से भी कांग्रेस को लाभ मिल सकता है।
कांग्रेस की कमजोरी
कांग्रेस से नहीं जुड़े नए लोग
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसका संगठन भाजपा की तुलना में काफी कमजोर है। पार्टी में पुराने लोग तो हैं लेकिन नए लोगों को नहीं जोड़ा जा सका। हालांकि, पिछले कुछ समय से पार्टी ने सक्रियता बढ़ाई है। इसके अलावा नेताओं में गुटबाजी के कारण भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
प्रमुख दावेदार
भाजपा
बृजेंद्र का दावा मजबूत
बृजेंद्र प्रताप सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास और ताकतवर मंत्री हैं, इसलिए उनका ही दावा भाजपा में मजबूत है। उनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। यदि किसी अन्य नाम पर विचार हुआ तो रामअवतार पाठक बबलू और कुसुम मेहदेले दावेदार हैं। पाठक पेशे से डॉक्टर और संघ से जुड़े रहे हैं। दावेदार के तौर पर सतानंद गौतम का नाम भी चर्चा में है। गौतम भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं।
कांग्रेस
कांग्रेस में कई दावेदार
पन्ना से कांग्रेस के दावेदारों की कमी नहीं है। पूर्व विधायक श्रीकांत दुबे के अलावा स्व. भास्कर दीक्षित के बेटे श्रीकांत दीक्षित प्रमुख दावेदार हैं। राजघराने की दिव्यरानी भी दावेदार हैं। इनके अलावा पिछला चुनाव हारे शिवजीत सिंह इस बार फिर टिकट की दौड़ में शामिल हैं। पार्टी दोनों श्रीकांत में से किसी एक पर दांव लगा सकती है। वैसे भी बृजेंद्र प्रताप के सामने कांग्रेस को हर तरह से मजबूत प्रत्याशी चाहिए।
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