Pawai Vidhan Sabha Seat : पवई में स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा खड़ी कर सकता दिग्गजों के सामने मुश्किलें

Pawai  Vidhan Sabha Seat : पवई में स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा खड़ी कर सकता दिग्गजों के सामने मुश्किलें
X
1957 से अस्तित्व में पवई विधानसभा क्षेत्र में आमतौर पर कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है।

भोपाल। 1957 से अस्तित्व में पवई विधानसभा क्षेत्र में आमतौर पर कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। इसीलिए अब तक हुए 14 चुनावों में सात बार कांग्रेस और चार बार भाजपा को जीत मिली है जबकि एक बार जनसंघ और दो बार अशोक वीर विक्रम सिंह ‘भैया राजा’ चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते प्रहलाद लोधी का टिकट इस बार संकट में है। इसकी वजह उनके साथ कई विवादों का जुड़ना रहा है।

ऐसी स्थिति में भाजपा जिला केंद्रीय सहकारी बैंक पन्ना के पूर्व अध्यक्ष युवा नेता संजय नगाइच और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे रविराज यादव पर दांव लगा सकती है। यदि उलटफेर के हालात बने तो प्रदेश सरकार के मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह काे फिर पवई से लड़ाया जा सकता है। वे यहां से 2003 और 2008 में विधायक रहे हैं लेकिन 2013 में कांग्रेस के मुकेश नायक से हार गए थे।

दूसरी ओर कांग्रेस से मुकेश नायक एक बार फिर दौड़ में सबसे आगे हैं लेकिन उनका साढ़े 23 हजार से ज्यादा वोटों से हारना राह में रोड़ा बन सकता है। पूर्व मंत्री राजा पटैरिया भी यहां से टिकट मांग रहे हैं। वे लंबे समय से पवई क्षेत्र में सक्रिय हैं। स्थानीय नेता के नाते दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे अनिल तिवारी और गिरधारी लोधी का दावा भी मजबूत है। पवई के मतदाताओं के मिजाज को देखकर लगता है कि वे स्थानीय प्रत्याशी चाहते हैं। यदि भाजपा-कांग्रेस ने इस पर ध्यान दिया तो दोनों दलों के कई दिग्गज मुश्किल में आ जाएंगे। ये टिकट की दौड़ से भी बाहर हो सकते हैं।

स्थानीय प्रत्याशी, विकास होगा मुद्दा

पवई विधानसभा सीट के चुनाव में इस बार भी स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा जोर मार सकता है। इस आधार पर दोनों प्रमुख दल मजबूत स्थानीय प्रत्याशी तलाश रहे हैं। इसके अलावा विकास के स्थानीय मुद्दे भी हावी रहेंगे। इनमें सुदूर रैपुरा क्षेत्र के हरदुआ, खमरिया एवं सिमरिया क्षेत्र को अलग से विकासखंड बनाए जाने का आश्वासन पूरा नहीं हुआ। पर्यटन की दृष्टि से क्षेत्र के प्रसिद्ध एवं प्राचीन कलेही माता मंदिर, श्री हनुमान भाटा पवई, नांद चांद, दान दाई माता को विकसित करने का आश्वासन भी पूरा नहीं हुआ । एशिया की सबसे बड़ी जेके सीमेंट फैक्ट्री में स्थानीय लोगों को राेजगार का मुद्दा भी उठेगा।

पवई में इन चार जातियों की बहुतायत

पवई विधानसभा सीट में लोधी, दलित, ब्राह्मण और आदवासी मतदाताओं की तादाद निणार्यक है, बावजूद इसके यहां से कई चुनाव राजपूत जीतने में सफल रहे। दो बार अशोक वीर विक्रम सिंह ‘भैया राजा’ जीते तो दो बार ही बृजेंद्र प्रताप सिंह। इससे साफ है कि यहां का मतदाता जातीय बंधन तोड़कर भी वोट करता है। क्षेत्र में लाेधी और दलित मतदाता सर्वाधिक लगभग 40-40 हजार हैं। इसके बाद ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद 35 हजार एवं आदिवासी मतदाताओं की तादाद 20 हजार के आसपास बताई जाती है। इनके अलाव अन्य जातियों के भी वोट हैं लेकिन निर्णायक यह चार समाज ही हैं।

पत्रकार की टिप्पणी

पवई विधानसभा क्षेत्र में देश की आजादी के बाद से ही स्थानीय और क्षेत्रीय विधायक की मांग रही है। इसे लेकर आंदोलन भी खूब चला। नतीजे में 2018 के चुनाव में भाजपा ने मजबूर होकर प्रहलाद लोधी को स्थानीय, पिछड़ा वर्ग के रूप में प्रत्याशी बनाया था। स्थानीय होने के नाते ही वे कांग्रेस के मुकेश नायक को बड़ी शिकस्त देने में सफल रहे। 2013 में भाजपा की लहर के बावजूद तत्कालीन कृषि एवं पर्यटन मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह की करारी हार क्षेत्रीय और स्थानीय प्रत्याशी की मांग के कारण ही हुई थी। इसे ध्यान में रखकर 2018 में भाजपा सतर्क थी। लेकिन इस चुनाव में जीते प्रहलाद लोधी सफल नहीं रहे। विधायक की विकास कार्यों के प्रति अरुचि और अधिकारी कर्मचारियों के निरंकुश होने के चलते जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है । सच यह है कि पवई विधानसभा क्षेत्र में 5 वर्षों की कोई उपलब्धि नहीं है। विधायक पहले पैर के एक्सीडेंट के चलते परेशान रहे, बाद में दो वर्ष तक कोरोना में गंभीर बीमार रहे और बाद में सजा हो गई। क्षेत्र में जनहित के मुद्दों सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भी जनता में गुस्सा है। भाजपा ने सोच समझ कर स्थानीय प्रत्याशी का चुनाव न किया तो 2023 का चुनाव उसे भारी पड़ सकता है।

- देवदत्त दुबे ,वरिष्ठ पत्रकार

भाजपा की ताकत

बूथ स्तर तक बेहतर व ठोस संगठन

प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों की तरह पवई में भी भाजपा की असल ताकत बूथ तक उसका बेहतर संगठन है। इसके अलावा राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार और उसकी योजनाओं ने पार्टी को ताकत दी है। पवई में भाजपा की ताकत यह भी है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा यहां से सांसद हैं।

भाजपा की कमजोरी

विधायक का विवादों से नाता

पवई में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी उसके विधायक ही साबित हो रहे हैं। पांच साल के इस कार्यकाल में उनका विवादों से नाता रहा है। वे किसी ने किसी मसले में उलझे और विवाद में रहे हैं। इसके अलावा की गई कई घोषणाएं पूरी नहीं हुईं और इस बार टिकट को लेकर गुटबाजी पार्टी को नुकसान पहुंचाती दिख रही है।

Tags

Next Story