Sanchi Vidhan Sabha Seat : सांची में बड़े अंतर से उपचुनाव जीते भाजपा के प्रभुराम के सामने ‘खड़ी’ हैं ‘बड़ी’ चुनौतियां

भोपाल। रायसेन जिले का सांची विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। यहां मतदाताओं की संख्या कुल 2,53,369 है। इनमें 1,33,510 पुरुष और 1,19,852 महिला मतदाता और अन्य मतदाता हैं। डॉ. चौधरी के भाजपा में शामिल होने के बाद क्षेत्र की राजनीति में काफी बदलाव आया है। जहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ है, वहीं कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक भाजपा के पाले में चला गया था। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद भाजपा के पुराने कार्यकर्ता जिस तेजी से डॉ. चौधरी से जुड़े थे, काफी संख्या में वे धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं। दरअसल, डॉ. चौधरी के साथ कांग्रेस से जो कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए थे, उनको ज्यादा महत्व मिलने से पुराने भाजपा कार्यकर्ता और नेता अब कार्यक्रमों से दूरी बनाने लग गए हैं।
भाजपा को भारी पड़ सकता है
सांची विधानसभा क्षेत्र में विकास की बात की जाए तो करोड़ों रुपए कार्य हुए हैं। जिला मुख्यालय रायसेन भी सांची क्षेत्र में ही आता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि सांची विधानसभा क्षेत्र विकास के मामले में काफी पिछड़ा हुआ था। किंतु जिस तरह करोड़ों रुपए के विकास कार्य हुए हैं, इससे डॉ. चौधरी का पलड़ा भारी है। उनके इस कार्यकाल में सबसे ज्यादा विकास कार्य हुए। हालांकि डॉ. चौधरी पर अपने ही सामाज के कर्मचारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने तथा समाज को ज्यादा महत्व देने से भी कार्यकर्ताओं में आक्रोश है। कार्यकर्ताओं के निजी काम भी नहीं हो रहे हैं। यह आने वाले चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकता है।
कांग्रेस में वापस जाने लगे भाजपा में आए नेता
रायसेन जिले के सांची विधानसभा क्षेत्र में राजनैतिक हालात पहले जैसे नहीं हैं। यहां से चुनाव जीत कर मंत्री बने डॉ. प्रभुराम चौधरी वर्ष 2018 में चुनाव जीतने के डेढ़ साल बाद ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उप चुनाव में उन्होंने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और करीब 60 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की। उस वक्त बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बार स्थिति कुछ दुरूह बनती जा रही है। कांग्रेस से भाजपा में गए कई नेता फिर अपनी पुरानी पार्टी में शामिल होने लगे हैं। यदि यही स्थिति रही तो वर्ष 2023 के चुनाव में मंत्री डॉ. चौधरी के लिए दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं।
सांची अनुसूचित जाति वर्ग निर्णायक
सांची विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति क़ा बड़ा वोट बैंक हे। वर्तमान विधायक डा चौधरी है, यह वोट बैंक उनके लिए निर्णायक रहता है। इसके अलावा लोधी, मीणा, मुस्लिम वोट है। लोधी तथा मीणा भाजपा क़ा परंपरागत वोट माना जाता है। वहीं मुस्लिम वोट कांग्रेस क़ा है। ब्राह्मण सामाज भी अधिक है, जो भाजपा के पक्ष में जाता है। लेकिन किसी एक क़ा वोट बैंक नहीं है।
विकास और दलबदल होंगे चुनावी मुद्दे
सांची के लिए होने वाले चुनाव में इस बार भाजपा जहां कराए गए विकास कार्यों, सरकार की योजनाओं को लेकर मैदान में जाएगी तो कांग्रेस की तैयारी दलबदल और पार्टी के साथ गद्दारी को मुद्दा बनाने की है। प्रभुराम 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन बाद में वे भाजपा में चले गए। सरकार और विधायक के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को भी कांग्रेस जनता के बीच उठाएगी। देखने लायक होगा कि जनता विकास और सरकारी योजनाओं से प्रभावित होकर वोट करती है या विपक्ष के उठाए मुद्दे असरदार साबित होते हैं।
भाजपा की ताकत
पन्ना स्तर तक सक्रियता से बढ़ी ताकत
पन्ना (वोटर लिस्ट) स्तर तक भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। संगठन स्तर पर लगभग हर दिन बैठकें हो रही हैं। कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जा रही है। पुराने व कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं।
भाजपा की कमजोरी
नेताओं का मोहभंग बनेगी कमजोरी
काफी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए थे। इसमें से वरिष्ठ नेताओं का भाजपा से मोह भंग होता जा रहा है। अभी हाल में ही कई नेता फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे वोट प्रतिशत घटेगा।
कांग्रेस की ताकत
दलबदल के मुद्दे को बना रहे ताकत
कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत दलबदल के मुद्दे को हवा देना है। भाजपा छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले नेता भी कांग्रेस के ताकत के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। कांग्रेस नेता इस सीट पर इसलिए भी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं क्योंकि यहां से जीते प्रभुराम कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए थे।
कांग्रेस की कमजोरी
कमजोर संगठन कांग्रेस की कमजोरी
काफी वर्षों से स्थानीय किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं मिलता। भोपाल से लगे हुआ होने की वजह से रायसेन के वे नेता जो भोपाल जाकर बस गए हैं, वे ही हावी रहते हैं। संगठन स्तर पर कांग्रेस के पास कुछ नहीं है। कई बार तो यह भी देखने को मिला कि बूथ पर कांग्रेस के लोग ही नहीं थे।
क्या काम हुए
भोपाल को जोड़ने वाली मुख्य सड़कें बनीं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बने।
कई सड़कों का उन्नयन हुआ।
जो नहीं हो पाए
रोजगार के साधन का पूर्णत: अभाव।
शहर के अंदर गलियों की सड़कें नहीं बनीं।
ड्रेनेज और नालियां नहीं बन पाई।
पत्रकार की टिप्प्णी
कांग्रेस में जमीनी और जनाधार वाले सर्वमान्य नेता की कमी
भाजपा में जहां प्रत्याशी के रूप में डॉ. प्रभुराम चौधरी ही प्रत्याशी रहेंगे। यह सीट उप चुनाव में उन्होंने अभी तक के सर्वाधिक 60 हज़ार मतों के अंतर से जीती थी। कांग्रेस में प्रत्याशी के नाम पर जमीनी और जनाधार वाला सर्वमान्य नेता नहीं है। कांग्रेस संगठन जमीनी स्तर पर मजबूत भी नहीं है। बाहरी नेता टिकट की दौड़ में लगे हैं। वर्तमान में भाजपा से भी लोगों का मोह भंग होता दिख रहा है। इसका फायदा कांग्रेस कितना उठा पाएगी, इसमें भी संशय है। जहां तक संगठन की बात है तो भाजपा संगठन के मामले में ज्यादा मजबूत दिखाई देती है। पन्ना (वोटर लिस्ट) स्तर तक भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। भाजपा से जुड़े अन्य संगठनों की सक्रियता भी कार्यकर्ताओं को जोड़ने का काम करती है। भाजपा का महिला मोर्चा भी लगातार सक्रिय है। दूसरी तरफ कांग्रेस में संगठन मतदान केंद्रों तक नहीं है। कई बार तो सुदूर अंचल में मतदान केंद्रों पर कांग्रेस के एजेंट ही नहीं मिल पाते। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कांग्रेस में पदाधिकारी बड़े नेताओं की पसंद से बनाए जाते हैं। भले ही उनका कोई जनाधार न हो। चुनाव के समय भी कांग्रेस कई खानों में बंटकर अपने ही दल के लोगों के खिलाफ दिखाई देती है। बड़ी बात यह भी है कि कांग्रेस जन समस्याओं को उठाने और उससे जनाधार जुटाने में सक्रिय दिखाई नहीं देती। टिकट वितरण के दौरान बढ़ती वैमनस्यता और गुटबाजी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाती है।
- दीपक कांकर, वरिष्ठ पत्रकार
प्रमुख दावेदार
भाजपा से प्रभुराम ही मुख्य दावेदार
भाजपा से डॉ. प्रभुराम चौधरी और मुदित शेजवार प्रमुख दावेदार हैं। भाजपा का कहना है कि यहां दावेदारी नहीं होती बल्कि पार्टी में चयन होता है। फिर भी भाजपा से प्रभुराम चौधरी का ही चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है।
कांग्रेस से कई नेता दावेदार
सांची से कांग्रेस के दोवदार डॉ. जीसी गौतम और हृदेश किरार (सभी भोपाल ) से हैं। इसी तरह कांग्रेस नेता डॉ. शैलेंद्र झारिया, नगरपालिका में नेता प्रतिपक्ष प्रभात चावला, संदीप मालवीय, रूपेश तन्तवार भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं।
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