MP News : परंपरा ऐसी जो दिल दहलाए, लोगों के ऊपर से गुजरती हैं सैकड़ों गायें

MP News : परंपरा ऐसी जो दिल दहलाए, लोगों के ऊपर से गुजरती हैं सैकड़ों गायें
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एक घातक परंपरा उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर भिडावद गांव में प्रचलित है। जिसे गोड़ी प्रथा के नाम से जाना जाता है।

उज्जैन। यूं तो हर धर्म में कई तररह की परंपराएं प्रचलित हैं। लेकिन हिन्दू धर्म मानों परंपराओं का कोष है। हमारे धर्म में अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग परंपराएं बनाई गई हैं और इनमें से कई परंपराएं तो जान को भी जोखिम में डालती हैं। एसी ही एक घातक परंपरा उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर भिडावद गांव में प्रचलित है। जिसे गोड़ी प्रथा के नाम से जाना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रथा सैकड़ों वर्षों से इसी तरह चली आ रही है। इसमें भगवान से मन्नत मांगने वाले लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से कई गायों को निकाला जाता है। सभी गयें इन लोगों को रौंदते हुए जाती हैं, फिर ये उठ खड़े होते हैं। लोगों का कहना तो यही होता है कि उन्हें कुछ नहीं हुआ, लेकिन गाय के पैरों से उनके कपड़े बुरी तरह फट जाते हैं। सवाल है, इस तरह के हाल में भी इन्हें कैसे कुछ नहीं हुआ?

कैसे मनाई जाती है गोड़ी परंपरा

चलिए जानते हैं कि यह परंपरा आखिर किस तरह और कहां मनाई जाती है। दरअसल उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर बड़नगर तहसील के भिडावद नामक गांव में इस परंपरा को कई वर्षों से मनाया जाता है। लोगों से इस परंपरा के बारे में जानकारी लेने पर उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो सभी लोग जो गोड़ी परंपरा में हिस्सा ले रहे हैं। यानि जो लोग गायों के पैरों तले कुचले जाने हैं, उनकी कोई न कोई मन्नत होती है। मन्नत के चलते वे इस परंपरा के सभी नियमों का पालन करते हैं। मन्नत लिए हुए सभी लोग पांच दिन तक व्रत रखते हैं। दीपावली के एक दिन बाग गांव के ही एक प्राचीन मंदिर में मन्नतिये रात गुजारते हैं। सभी लोग यहां भजन कीर्तन कर आनंद लेते हैं। दीवाली के एक दिन बाद यानि प्रतिपदा के दिन सभी लोगों द्वारा ढोल-बाजे के साथ गांव की परिक्रमा की जाती है। जिस समय मन्नत मांगे हुए लोग गांव की परिक्रमा कर रहे होते हैं, तभी बाकी के ग्रामीण गांव की सभी गायों को एक जगह इकट्ठा कर रहे होते हैं।

परिक्रमा के बाद शुरू होता है खूनी खेल, जिसमें इन सभी मन्नतियों को गाय के पैरों तले रौंदा जाना है। सामने सभी गायों को खड़ा कर मन्नत मांगे हुए लोगों को रास्ते के एक तरफ लेटा लिया जाता है। अपने सिर को एक कपड़े से ढके हुए जमीन पर लेटे इन लोगों के तरफ सभी गायों का रुख किया जाता है। ढोल के साथ ही चिल्ला-पुकार में गायों को धक्का देकर, खींचकर या लट्ठ से ज़मीन पर लेटे लोगों के ऊपर से गुजारा जाता है। इन भारी-भारी गायों के गुजरने का यह दृष्य देखने में बहुत दर्दनाक होता है। लोकिन लोगों में इसका उत्साह भी राफ दिखाई देता है। लोगों के ऊपर से गायों के गुजरने से उनके कपड़े फट जाते हैं, लेकिन कोई यह नहीं कहता की उन्हें चोट आई है या दर्द हो रहा। वे सभी तुरंत ही उठ खड़े होते हैं और इन्हीं फटे हुए कपड़ों में लोग नाचने-कूदने, जश्न मनाने लगते हैं।

क्या कहते हैं ग्रामीण

गांव में मनाई जाने वाली इस अनूठी परंपरा पर ग्रामीणों का कहना है कि गाय में 33 कोटि देवताओं का वास है। इस कारण गायों के ऊपर से निकलने पर सभी का आशीर्वाद मिलता है। ग्रामीण बताते हैं कि यह परंपरा इस गांव में कई वर्षों से यूं ही चली आ रही है। हर साल दीवाली के एक दिन बाद प्रतिपदा पर यह गोड़ी परंपरा मनाई जाती है। सभी गायों को इसमें शामिल किया जाता है। ग्रामीण यह भी दावा करते हैं कि कई गायों द्वारा रौंदे जाने पर भी किसी को नुकसान नहीं होता है। सभी सही सलामत रहते हैं और तुरंत ही उठ खड़े होते हैं, ढोल की ताल पर नाचने लगते हैं। कहते हैं कि इस कृत्य में अब तक कोई घायल नहीं हुआ है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

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