Shiv Mahapuran Katha: भगवान शंकर की करुणा, उनकी कृपा दृष्टि से ही यह जगत संचालित हो रहा है: पं. मिश्रा

भोपाल। करोंद्र क्षेत्र में चल रही शिवकथा में पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि भगवान शंकर की करुणा और कृपा संपूर्ण विश्व में व्याप्त है। उनकी कृपा दृष्टि से ही यह जगत संचालित है। जब तक शिव की कृपा नहीं होती जीवन में हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते। उन्होंने बताया कि शिवपुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं, उनमें से एक श्लोक ही नहीं बल्कि एक शब्द मात्र को भी अपने जीवन में धारण करने से इस मानव देह का हेतु सिद्ध हो जाता है। नरेला विधानसभा क्षेत्र के करोंद में चल रही शिवपुराण कथा के मौके पर महापौर मालती राय, विवेक सारंग, विजय सिंह, बृजमोहन पचौरी, डी.के. सक्सेना व सुशील वाजपेयी आदि मौजूद थे।
यह भी कहा
जिस तरह हमारा अटैचमेंट अटैची से नहीं, उसमें रखी वस्तुओं से होता है, वैसे ही अपनी देह का आत्मा और परमात्मा से अटैचमेंट रखें।
अपने बच्चों को हरहाल में संस्कारित बनाइए।
बच्चों को जल का लोटा पकड़ाइए कोल्ड्रिंक की बोतल नहीं।
बच्चों को सर्वप्रथम संस्कार माता-पिता ही दे सकते हैं।
जिसके बच्चे मंदिर की सीढ़ी चढ़ते उस घर के बुजुर्ग वृद्धाश्रम नहीं जाते।
घर में बनाओगे अनुशासन तो पैदा नहीं होगा दुशासन।
रक्त सिर्फ रक्त होता है, रक्त की कोई जात नहीं।
कथा में भक्तों की भीड़ उमड़ी
कथा में भक्तों की भीड़ के उमड़ने के चलते यातायात व्यवस्था फेल हो गई। करोंद्र व पुराने भोपाल में कई जगहों पर यातायात दवाब बढ़ गया। इसके चलते कई जगहों पर जाम की स्थिति बन गई। लोग घंटो तक जाम में फंसे रहे।
बड़ी संख्या में पहुंचे साधु-संत
कथा पंडाल में लाखों श्रद्धालुओं के बीच साधु संत भी बड़ी संख्या में शामिल हुए। गुफा मंदिर महंत रामप्रवेशदास महाराज, शडदर्शन साधु समाज के प्रमुख कन्हैयादास उदासीन, अखिल भारतीय संत समिति के कार्यकारी अध्यक्ष महंत अनिलानंद उदासीन, महंत राधामोहन दास, महंत लोकनाथ, महत मणिराम दास व आचार्य गंगाप्रसाद दुबे आदि लोग मौजूद थे।
सच्चा मित्र वो जो दु:ख में मित्र धर्म निभाए
अशोका गार्डन के सुभाष कॉलोनी स्थित मां भवानी शिव हनुमान मंदिर में श्रीमद्भागवत साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ का शनिवार को समापन हुआ। कथावाचक आचार्य पं. रोहित रिछारिया ने कथा में श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र व सुखदेव विदाई के मार्मिक प्रसंगों की कथा सुनाई। अपने बचपन के मित्र सुदामा की दीन-हीन दशा देखकर द्वारिकाधीश भाव-विहल हो उठे, आंसुओं की धारा टपकने लगी। उन्होंने अपने आंसुओं से मित्र सुदामा के पैर धोए, गले से लगाया और अपनी बराबरी से बिठाया। बचपन की यादों को स्मरण करते हुए श्रीकृष्ण ने मित्र सुदामा से घर के हाल पूछे बिना वह सब कुछ सुदामा को दे दिया, जिसकी आकांक्षा लेकर वह मिलने द्वारका आए थे।
आचार्य रिछारिया ने विस्तृत वर्णन में बताया कि इस प्रसंग से यह प्रेरणा लेना चाहिए कि जब भी मित्र दुख में हो, कष्ट में हो तब मित्रता निभानी चाहिए, मदद करनी चाहिए। श्रीकृष्ण- सुदामा चरित्र की भव्य झांकी के माध्यम से प्रस्तुति दी गई। सुखदेव जी के विदाई प्रसंग के बाद कथा में फूलों की होली खेली गई।
कलश यात्रा प्रमुख मार्गों से होती हुई कथा स्थल पर पहुंचेगी। जहां कथा व्यास पं.आचार्य गोस्वामी श्रीहित योगेन्द्र वल्लभ महाराज भागवत पूजन के बाद कथा सुनाएंगे।
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