टी-1233 नाम बाघ ने केरवा व वीरपुर के जंगलों में बनाया अपना नया ठिकाना

भोपाल। भोज विश्व विद्यालय परिसर में विगत दिन आए बाघ को लेकर वन विभाग ने एक रिपोर्ट तैयारी की है। जिसमें बताया गया है कि यह टी-1233 नामक बाघ है। जिसके परिवार के अन्य सदस्य इन जगहों पर आ चुके है। इसलिए वह अपने कुनबे के नक्शेकदम पर चल रहा है। इसकी के चलते वह बार-बार इन जगह पर उसका मूवमेंट देखने को मिल रहा है। जहां पर उनके परिवार के अन्य सदस्य ठहरते रहे हो गए और एक दिन में जितना घूमते हैं, यह भी वही सब कर रहा है। हालांकि अब यह सुरक्षित लौट चुका है। फिलहाल इसका ठिकाना केरवा व वीरपुर का जंगल है। भोपाल सामान्य वन मंडल द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में बाघ की पहचान और उसके सुरक्षित होने की पुष्टि हुई है।
रोजाना 12 से 18 किमी घूम रहा
यह बाघिन टी-123 की संतान है। इसका जन्म वर्ष 2020 में केरवा के जंगल में हुआ था। वजन 175 किलो के करीब है। उम्र 25 माह हो चुकी है। यह क्षेत्र में रोजाना 12 से 18 किलोमीटर घूम रहा है। आमतौर पर बाघ सामान्यत: एक दिन में 30 वर्ग किलोमीटर तक घूम सकते हैं। इसके भाई का नाम बाघ टी-1234 है, जिसका जन्म इसके साथ हुआ था। इन दोनों के पहले बाघिन टी-123 ने दो शावकों को जन्म दिया था। इनमें से एक का नाम बाघ टी-1231 व बाघिन टी-1232 रखा गया था। वन विभाग की रिपोर्ट में सामने आया है कि सबसे पहले जनवरी 2021 में ये दोनों भोज विश्वविद्यालय परिसर में घुसे थे। वहीं इनकी मां बाघिन टी-123 भी कई बार आबादी के नजदीक देखी जा चुकी है। बाघिन टी-123 का इलाका राजधानी से सटे केरवा, कलियासोत, मेंडोरा, बुल मदर फार्म के पीछे, वाल्मी पहाड़ी, 13 शटर गेट, जागरण लेकसिटी के पिछले हिस्सा रहा है। इनकी संतानें भी इन्हीं इलाकों में है। पूर्व के बाघों की तरह ये ठिकाने नहीं बदल रहे हैं। इनकी मौजूदगी के कारण नए बाघ इस जंगल में अपना स्थायित्व नहीं बना पाते हैं। वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे बाघ रातापानी वन्यजीव अभयारण्य से भोपाल के नजदीक आते हैं और फिर लौट जाते हैं।
इनका कहना है
भोज विश्वविद्यालय परिसर में बाघ टी-1233 घुसा था, लेकिन उसने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है। यह राजधानी के पासपास घूम रहे बाघों का अच्छा बर्ताव है। वह जंगल में सुरक्षित लौट चुका है।
आलोक पाठक, डीएफओ, भोपाल सामान्य वन मंडल
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