vijayraghavgarh vidhan sabha seat : पूर्व मंत्री संजय पाठक को कड़ी टक्कर दे रहे कांग्रेस के नीरज

भोपाल। प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में एक है विजयराघवगढ़। पूंजीपति और पूर्व मंत्री संजय पाठक यहां के विधायक हैं। वे लगातार चार चुनाव जीत चुके हैं। पहले 2008 और 2013 के दो चुनाव उन्होंने कांग्रेस में रहकर जीते। इसके बाद उन्होंने दलबदल कर लिया। दो चुनाव वे भाजपा के टिकट पर जीत चुके हैं। संजय पाठक भाजपा के पहले ऐसे विधायक हैं, जिन्होंने क्षेत्र में इस बात के लिए जनमत संग्रह कराया कि वे चुनाव लड़ें या नहीं। इसके बाद नतीजा बताया कि 75 फीसदी लोग चाहते हैं कि वे चुनाव लड़ें। लिहाजा वे फिर मैदान में हैं। इस बार उनके मुकाबले कांग्रेस ने युवा चेहरे इंजीनियर नीरज सिंह बघेल को मैदान मेें उतारा है। बघेल के दादा भाई यहां से कई बार विधायक रह चुके हैं। युवा इंजीनियर नीरज विजयराघवगढ़ में संजय को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। वे पिछले दस साल से मैदान में सक्रिय थे।
संजय के पिता सत्येंद्र हारे दो चुनाव
यहां पाठक परिवार का वर्चस्व रहा है। संजय के पिता सत्येंद्र पाठक भी यहां से विधायक रहे हैं, लेकिन दो चुनावों में उन्हें शिकस्त का भी सामना करना पड़ा। 1990 में उन्हें भाजपा के लाल राजेंद्र सिंह बघेल और 2003 में ध्रुव प्रताप सिंह ने हराया था। अब स्थिति उलटी है। भाजपा से जीतने वाले राजेंद्र सिंह बघेल के चचेरे भाई नीरज सिंह और ध्रुव प्रताप सिंह कांग्रेस में हैं, जबकि संजय भाजपा में। सत्येंद्र के बाद उनके बेटे संजय पाठक ने 2008 से इस सीट पर चुनाव लड़ना शुरू किया। वे यहां अब तक अविजित हैं।
चुनाव प्रचार ने पकड़ ली रफ्तार
क्षेत्र में मुख्य रूप से तीन कस्बे विजयराघवगढ़, कैमूर ओर बरही आते हैं। तीनों जगह दोनों दलों कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों के कार्यालय खुल गए हैं और चुनाव प्रचार ने रफ्तार पकड़ ली है।झंडा बैनर तो कम दिखाई देते हैं लेकिन चर्चा हर जगह चुनाव की चल रही है। क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी पाठक का दबदबा है। इसकी वजह से उनके खिलाफ कोई खुलकर नहीं बोल रहा है लेकिन चर्चाएं एंटी इंकम्बेंसी और बदलाव की भी चल रही हैं। संजय पाठक को चुनाव के अंतिम समय में मैनेजमेंट के लिए जाना जाता है। इस कारण चर्चा यह भी है कि बदलाव के माहौल के बीच इस बार उनका मैनेजमेंट भी कसौटी पर होगा।
पद्मा, ध्रुव प्रताप सक्रिय नहीं
नीरज को टिकट मिलने के बाद कांग्रेस के अन्य दावेदारों का गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ है। इस कारण वे अभी तक मैदान में सक्रिय नहीं हुए। खासकर पिछला विधानसभा उप चुनाव लड़ी पद्मा शुक्ला और हाल ही में भाजपा से कांग्रेस में आए ध्रुव प्रताप सिंह निष्िक्रय बने हुए हैं। पद्मा शुक्ला और ध्रुव प्रताप सिंह भी पहले भाजपा में थे। पद्मा पहले ही कांग्रेस में आकर पिछला उप चुनाव संजय के खिलाफ लड़ चुकी हैं जबकि ध्रुव प्रताप सिंह हाल ही में कांग्रेस में आए हैं। ध्रुव प्रताप ने ही 2003 के चुनाव में संजय के पिता सत्येंद्र पाठक को 13 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। टिकट न मिलने से ये दोनों असंतुष्ट हैं।
गोंडवाना संस्कृति का व्यापक प्रभाव
भौगोलिक दृष्टि से विजयराघवगढ़ बुंदेलखंड और बघेलखंड के बीच सेतु का काम करता है। इस क्षेत्र में गोंडवाना संस्कृति का व्यापक प्रभाव है। इसलिए यहां आदिवासियों की संख्या भी अच्छी खासी है। यहां चुनावी मुद्दा भी महंगाई और बेरोजगारी ही है। विजयराघवगढ़ में बुनियादी विकास अभी भी अधूरा है। सड़कों का अभाव, स्कूल बिल्डिंगों का जर्जर होना, अस्पतालों में डॉक्टर ना होना, सिंचाई की पर्याप्त सुविधाएं न होने जैसी समस्याएं प्राय: प्रत्येक चुनाव में मुद्दा बनती हैं लेकिन अभी तक इनका निराकरण नहीं हो सका है।
आदिवासी, दलित, ब्राह्मण, ठाकुर निर्णायक
क्षेत्र में आदिवासी, दलित, ब्राह्मण और ठाकुर मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। ये ही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इन्हीं के इर्द-गिर्द चुनावी यात्रा होती रहती है। यहां जीतते भी ब्राह्मण और ठाकुर ही रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस इन्हें रिझाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। दोनों दलों द्वारा हर वर्ग को ध्यान में रखकर घोषणाएं की गई हैं। भाजपा द्वारा सरकार की योजनाओं को गिना कर वोट मांगा जा रहा है जबकि कांग्रेस कमलनाथ द्वारा जारी की गई गारंटियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है।
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