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भोपाल। 30 अगस्त को रात 9:02 बजे के बाद रक्षाबंधन मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। सुबह 10:59 के बाद ऋषि पूजन उपाकर्म और नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जा सकता है।
उज्जयिनी विद्वत परिषद के अध्यक्ष डॉ. मोहन गुप्त की अध्यक्षता में उज्जैन स्थित कार्यालय में मंगलवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। काशी विद्वत परिषद की बैठक में भी यही निर्णय लिया गया है।
विद्वानों ने किया विचार-विमर्श
बैठक में परिषद के विद्वान सदस्य डॉ. केदारनाथ शुक्ल, विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा, पं. वासुदेव शास्त्री, पं. नारायण उपाध्याय, डॉ. केदारनारायण जोशी, डॉ. राजेन्द्र प्रकाश गुप्त, डॉ. सन्तोष पण्ड्या, डॉ. सदानंद त्रिपाठी उपस्थित थे।
30 या 31 अगस्त को लेकर समाज में भ्रम की स्थिति
परिषद के अध्यक्ष पूर्व संभागायुक्त एवं महर्षी पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि रक्षाबंधन पर ऋषि पूजन उपाकर्म, नवीन यज्ञोपवीत धारण एवं मुहूर्त को लेकर पंचांगों की भिन्नता के कारण 30 या 31 अगस्त को लेकर समाज में भ्रम की स्थिति है, जबकि सनातन धर्म के तहत किसी भी व्रत, पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह, पिंडों की गति, स्थिति आदि से प्राप्त मानों की ज्योतिषीय परिगणना करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है। इस क्रम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है।
परिषद ने यह भी लिया निर्णय
उज्जयिनी विद्व्त परिषद् के निर्णयानुसार शुक्ल यजुर्वेदीय परम्परा वाले अनुयायियों को श्रावणी उपाकर्म एवं रक्षाबंधन 30 अगस्त को ही करना चाहिए। उपाकर्म में भद्रा दोष नहीं लगता।
भद्रा समाप्त होने के बाद ही मनाए रक्षाबंधन पर्व
उज्जयिनी विद्वत परिषद् के विद्वानों ने विचार विमर्श करते हुए कहा कि भद्रा का विचार दो पर्व रक्षाबंधन एवं होलिका दहन में विशेष रूप से किया जाता है। ये दोनों पर्व भद्रा समाप्त होने पर ही विहित हैं। इस वर्ष पूर्णिमा 30 अगस्त को पूर्वाह्ण से आरंभ होकर 31 अगस्त के दिन सुबह 6 घटी कम होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थिति है। इस कारण अपने तर्कों से कुछ विद्वान 31 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय दे रहे हैं, जो धर्मशास्त्र या प्राप्त सूक्ष्म पूर्णिमा के मान के आधार पर ठीक नहीं है। 30 अगस्त को ही सुबह 10:59 बजे के बाद ऋषि पूजन उपाकर्म तथा रात 9:02 बजे के बाद रक्षाबंधन मनाना उचित होगा। 30 अगस्त को 9 बजे तक भद्रा है। अतः रात में भद्रा के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है- ‘तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते,।
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