विश्व टीबी दिवस 24 को : समय पर इलाज व बचाव से जड़ से खत्म होगी टीबी

भोपाल। कभी लाइलाज समझे जाने वाली टयूबरक्यलोसिस (तपेदिक) बीमारी की जांच में नई तकनीक आने के बाद अब इलाज भी संभव हो गया है। वहीं लगातार चलाए जा रहे अभियानों के कारण अब रोगी भी इलाज के लिए सामने आ रहे हैं। 24 मार्च को विश्व दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस मौके पर स्वस्थ्य विभाग की ओर से भव्य रूप से जगरुकता अभियान जलाया जाएगा।
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है टीबी
टीबी एक घातक संक्रामक रोग है, जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षयरोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई उत्पन्न होता है, जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है।
टीबी (क्षयरोग) के लक्षण
- लगातार 3 हफ्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना।
- खांसी के साथ खून का आना।
- छाती में दर्द और सांस का फूलना।
-वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।
- रात में पसीना आना।
टीबी के प्रकार
मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी
इस प्रकार की ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी हो सकती है।
एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी
इस प्रकार की टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजीस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है।
एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी
एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है, तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है।
ऐसे होती है टीबी की जांच
फ्लूइड टेस्ट- इस टेस्ट में मरीज के बलगम/अन्य फ्लूइड की लैब में प्रोसेसिंग होने के बाद स्लाइड पर उसका स्मीयर बनाया जाता है फिर उसकी एसिड फास्ट स्टैंनिंग की जाती है। स्टैंनिंग के बाद में स्लाइड पर टीबी के जीवाणु की माइक्रोस्कोप के जरिए पहचान की जाती है। माइक्रोस्कोप द्वारा बलगम की जांच में 2-3 घंटे का समय लगता है।
- स्किन टेस्ट (मोंटेक्स टेस्ट) - इसमें इंजेक्शन द्वारा दवाई स्किन में डाली जाती है जिससे कि 48-72 घंटे बाद पॉजीटिव रिजल्ट होने पर टीबी की पुष्टि होती है।
- जीन एक्सपर्ट टेस्ट
नवीनतम तकनीक जीन एक्सपर्ट एक कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लीक एसिड एम्फ्लिफिकेशन आधारित टेस्ट है। जीन एक्सपर्ट द्वारा महज 2 घंटे में बलगम द्वारा टीबी का पता लगाया जा सकता है। साथ ही इस टेस्ट में जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध से जुड़ी जेनेटिक म्यूटेशन तक की भी पहचान कर ली जाती है ।
टीबी का उपचार
टीबी के जीवाणुओं को मारने के लिए इसका उपचार करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। टीबी के उपचार में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली 2 एंटीबायोटिक्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन हैं और उपचार कई महीनों तक चल सकता है।
सामान्य टीबी का उपचार 6-9 महीने में किया जाता है। इन 6 महीनों में पहले 2 महीने आइसोनियाजिड, रिफाम्पिसिन, इथाम्बुटोल और पायराजीनामाइड का उपयोग किया जाता है।
टीबी की रोकथाम
- क्षयरोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से शिशुओं के बैसिलस कैल्मेट-ग्यूरिन (बीसीजी) का टीकाकरण कराना चाहिए।
- सक्रिय मामलों के पता लगने पर उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए। टीबी रोग का उपचार जितना जल्दी शुरू होगा, उतनी जल्दी ही रोग से निदान मिलेगा।
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