विशेषज्ञों ने किया आगाह- पराली जलाने से कोविड-19 का और भी बढ़ सकता है प्रकोप

विशेषज्ञों ने किया आगाह- पराली जलाने से कोविड-19 का और भी बढ़ सकता है प्रकोप
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रबी फसल की बुवाई के मौसम से पहले इस महीने के अंत तक पराली जलाने की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है, जिसके चलते कोरोना वायरस महामारी की परिस्थिति और खराब हो सकती है। एक कृषि एवं पर्यावरण विशेषज्ञ ने इस बात को लेकर आगाह किया है।

चंडीगढ़। पूरे देश कोरोना वायरस ने तबाही मचाई हुई है। पूरा देश ही कोरोना वायरस से लड़ने में लगा है मगर इस घातक वायरस का प्रकोप कम होने के बजाय और बढ़ ही रहा है। वहीं पंजाब में भी कोरोना को लेकर स्थिति भयावह रूप लेती जा रही है। यहां संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।

वहीं प्रदेश में एक और होने वाली प्रक्रिया ने चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, रबी फसल की बुवाई के मौसम से पहले इस महीने के अंत तक पराली जलाने की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है, जिसके चलते कोरोना वायरस महामारी की परिस्थिति और खराब हो सकती है। एक कृषि एवं पर्यावरण विशेषज्ञ ने इस बात को लेकर आगाह किया है।

फसल अवशेषों के प्रबंधन को लेकर केंद्र एवं पंजाब सरकार के सलाहकार संजीव नागपाल ने कहा कि यदि पराली जलाने के वैकल्पिक प्रबंध नहीं किए गए तो प्रदूषण तत्व और कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसी जहरीले गैसों के कारण श्वसन संबंधी गंभीर समस्याओं में बढ़ोत्तरी हो सकती हैं, जिसके चलते कोविड-19 के हालात और बिगड़ जाएंगे क्योंकि कोरोना वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा कि पिछले साल, पंजाब में पराली जलाने के करीब 50,000 मामले सामने आए थे। उत्तर के मैदानी इलाकों के वातावरण में सूक्ष्म कणों की मात्रा में 18 से 40 फीसदी योगदान पराली जलाने का रहता है। पराली जलने के कारण बड़ी मात्रा में जहरीली प्रदूषक गैसें जैसे मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न होती हैं। पिछले साल दिल्ली-एनसीआर के 44 फीसदी प्रदूषण की वजह पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना रहा।

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