राजस्थान सरकार का संविदाकर्मियों को दिवाली गिफ्ट, इतने हजार को दी पक्की नौकरी

राजस्थान सरकार (Government of Rajasthan) ने प्रदेश के संविदा कर्मियों (Contract Workers) को दिवाली गिफ्ट दिया है। दिवाली (Diwali) से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) ने प्रदेश के 30 हजार से ज्यादा संविदा कर्मियों को परमानेंट (Permanent) करने का फैसला किया है। शिक्षाकर्मी, पैरा शिक्षकों और पंचायत सहायकों को परमानेंट करने के आदेश जारी कर दिए हैं। सरकार द्वारा परमानेंट किए गए सभी कर्मचारियों को शुरुआत में 10,400 रुपये वेतन मिलेगा। हालांकि, जिन कर्मचारियों को अभी 10,400 रुपये से ज्यादा वेतन मिलता है, वो पहले की तरह मिलता रहेगा।
राजस्थान सरकार ने प्रदेश में कार्यरत 30 हजार से ज्यादा संविदाकर्मियों का नियमितीकरण करने व अन्य सेवा शर्तों के लिये राजस्थान कॉन्ट्रेक्चुअल सिविल रूल्स 2022 लागू कर दिया है। इसके अनुसार 9 साल की सेवा पूरी कर चुके कर्मचारियों को 18,500 रुपये वेतन मिलेगा, जबकि 18 साल की नौकरी पूरी करने पर कर्मचारी को 32,300 रुपये वेतन मिलेगा। परमानेंट होने के बाद पैराटीचर्स, शिक्षाकर्मी और ग्राम पंचायत सेकेट्ररी के नाम भी बदल दिए गए हैं। अब से नई नियमावली के अनुसार अब पैराटीचर्स को पाठशाला सहायक, शिक्षाकर्मी को अब शिक्षा सहायक और ग्राम पंचायत सेकेट्ररी को विद्यालय सहायक के नाम से जाना जाएगा।
कौन से संविदा कर्मी होंगे शामिल
जो संविदाकर्मी किसी एजेंसी के जरिए काम पर लगे थे, उन संविदाकर्मियों को परमानेंट नहीं किया जाएगा। इसके अलावा जो पैराटीचर्स, शिक्षाकर्मी और पंचायत सहायक संबंधित वैकेंसी के शैक्षणिक योग्यता को पूरा कर सकेंगे, सिर्फ उन्ही को परमानेंट किया जाएगा। क्योंकि कॉन्ट्रैक्चुअल सर्विस रूल्स के दायरे में शैक्षणिक योग्यता पूरे करने वाले संविदाकर्मी ही आएंगे। जिन संविदाकर्मियों का वेतन पहले से ही ज्यादा है, उनके वेतन में दो साल का इंक्रीमेंट जोड़कर नया वेतन दिया जाएगा। इस योजना से प्रदेश के पंचायती राज और शिक्षा विभाग में काम कर रहे 31,463 संविदाकर्मी लाभांवित होंगे। इनमें 1,790 शिक्षाकर्मी, 23,749 पंचायत सहायक, 2,048 सामान्य शिक्षाकर्मी और 3,886 पैराटीचर्स हैं।
गहलोत सरकार ने पूरा किया चुनावी वादा
कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के समय अपने घोषणापत्र में संविदाकर्मियों को परमानेंट करने का वादा किया था। सरकार बनने पर संविदाकर्मी काफी लंबे समय से खुद को परमानेंट करने की मांग कर रहे थे। इनमें से पैराटीचर्स की भर्ती गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान की गई थी।
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