राजस्थान के राजनीतिक ड्रामे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवायी आज

राजस्थान सरकार में फैली अनिश्चितता के बादल आज, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट कुछ छांट सकता है। आज सुनवाई होनी है। हो सकता है आज ही सुप्रीम कोर्ट जयपुर हाईकोर्ट के फैसले पर कुछ फैसला दे। ये भी हो सकता है कि बहस के बाद न्यायाधीश अशोक मिश्रा की खंडपीठ ऑर्डर रिजर्व रख ले। या फिर बहस के लिए दूसरी तारीख मुकर्रर कर दे। कुछ भी संभव है। मगर ये सच है कि हाईकोर्ट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट के द्वंद्व में पहला झटका गहलोत को ही लगा है। हाईकोर्ट ने अपने दो टूक आदेश में कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। कांग्रेस पार्टी से बगावत पर उतरे उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सचिन पायलट समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के एक रिसॉर्ट में कैंप किए हैं। विधायकों के दूसरे धड़े के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर स्थित दूसरे होटल में डेरा डाला हुआ है। लगभग दो हफ्ते से सूबाई सरकार का कामकाज ठप है।
अशोक गहलोत का दावा है कि उनके पास बहुमत है। वे राज्यपाल कलराज मिश्र से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं। राज्यपाल कह रहे हैं कि बहुमत है तो बहुमत सद्ध करने की क्या जरूरत। कोरोना काल में विधानसभा सत्र बुलाना उचित नहीं होगा। दूसरे निवेदन में मुख्यमंत्री ने कहा है कि उनकी कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया है कि विधानसभा सत्र बुलाकर कोरोना के लिए इंतजाम आदि पर बहस की जाए। राज्यपाल ने कहा, इस विषय पर सत्र बुलाने पर वे विचार करेंगे।
कानूनिवदों, संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यपाल कैबिनेट के निर्णय के अनुसार विधानसभा सत्र बुलाने को बाध्य हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का पूर्व का निर्णय भी है। सच ये है कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि विधानसभा सत्र किसी भी सूरत में आहूत हो। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को चीफ व्हिप बकायदा सत्र में भाग लेने के लिए व्हिप जारी करें। पायलट 18 विधायकों के साथ नहीं आए तो उन्हें तय नियमानुसार सभी की विधानसभा की सदस्यता विधानसभा अध्यक्ष रद्द करने को स्वतंत्र रहेंगे। यही मामला उलझ रहा है। इसी पर सियासी रस्साकशी चल रही है।
इस बीच कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच इस बात को लेकर दो गुटों में बंट गया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाना उचित है या नहीं! नेताओ का एक वर्ग है जो ये चाहता है कि राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चे पर इस जंग को लड़ा जाए। विदित हो कि सचिन पायलट ने अपने और समर्थक विधायकों को नोटिस जारी किए जाने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था तो विधानससभा स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी कि हाईकोर्ट को फैसला देने से रोका जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। पार्टी का एक बड़ा वर्ग है जो चाहता है कि इस मामले को पूरी तरह राजनीतिक मोर्चे पर लड़ा जाना चाहिए। कानून के दांवपेंच में कोर्ट में मामले को उलझाना नहीं चाहिए।
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