कृषि कानूनों का बढ़ा विरोध : राजस्थान-हरियाणा सीमा पर भी जुटने शुरू हुए किसान, जानिए क्या है रणनीति?

कृषि कानूनों का बढ़ा विरोध : राजस्थान-हरियाणा सीमा पर भी जुटने शुरू हुए किसान, जानिए क्या है रणनीति?
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केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृष विधेयकों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। एक तरफ जहां पंजाब के किसान दिल्ली से सटे बॉर्डर पर डेरा डाले इन विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हट रहे हैं वहीं दूसरी ओर तीन कृषि कानूनों के विरोध की सुगबुगाहट अब राजस्थान में भी दिखाई देने लगी है।

जयपुर। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृष विधेयकों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। एक तरफ जहां पंजाब के किसान दिल्ली से सटे बॉर्डर पर डेरा डाले इन विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हट रहे हैं वहीं दूसरी ओर तीन कृषि कानूनों के विरोध की सुगबुगाहट अब राजस्थान में भी दिखाई देने लगी है। इसी कड़ी में अलवर जिले में हरियाणा सीमा पर बुधवार को राजस्थान के किसानों का जमावड़ा शुरू हो गया है। राष्ट्रीय किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में राजस्थान के किसानों ने हरियाणा सीमा पर जुटना शुरू कर दिया है। यहां किसानों की एक महापंचायत आयोजित होगी। उसके बाद किसान आगे की रणनीति पर फैसला करेंगे।

जाट ने अलवर में हरियाणा सीमा पर संवाददाताओं से बातचीत में केन्द्र सरकार से कृषि कानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर उसकी गारंटी का प्रावधान जोड़ने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इन कृषि कानूनों में विदेशी निवेशकों को रिझाने की चिंता की गई है, उनकी प्रसन्नता को देखते हुए इन्हें पारित किया गया है, इनसे जो बडे पूंजी वाले हैं उनको कृषि उपजो के व्यापार में एकाधिकार प्राप्त होगा, जिन्हें एकाधिकार प्राप्त होगा वे कृषि उत्पादों का दाम कम से कम चुकायेंगे और उपभोक्ता की जेब से अधिक से अधिक दाम वसूलेंगे और इस कारण से किसान जो उत्पादन करने वाला है और गरीब उपभोक्ता जो खाने वाला है, दोनो लूटेंगे। उन्होंने कहा कि संविदा खेती में किसान खुद के खेत में ही मजदूर बन जायेगा। हिन्दुस्तान का किसान जो खेती में निपुण है उसको ये कह रहे है कि नहीं-नहीं आप तो जैसे कंपनी कहे वैसी खेती करो और बाद में जब आपकी उपज पैदा हो जायेगी तब उसका चयन कंपनियां करेगी। उन्होंने कहा कि आप क्या चाहते हैं जो किसानों के लिये हितकर हो?

इस सवाल का जवाब देते हुए रामपाल जाट ने कहा कि सबसे अच्छा तो यह है कि भारत सरकार इन कानूनों को वापस ले ले.. यदि उनको यह लगे कि नहीं यह तो हमारी नाक का बाल बन गया क्योंकि हमने विदेशी निवेशकों से वादा कर लिया.. उनको यदि यह लगे तो एक बीच का रास्ता निकाल ले। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून जोड दें।

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