देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 'Uniform Civil Code' पर पास किया प्रस्ताव, कहा- हमें 'अन्याय' बर्दाश्त नहीं

सहारनपुर (Saharanpur) के देवबंद (Deoband) में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-hind) की ओर से आयोजित जलसे के दूसरे दिन रविवार को यूनिफार्म सिविल कोड पर प्रस्ताव पास किया गया। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा कि यदि भारत सरकार (Central Government) समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने का प्रयास करती है, तो भारत के मुसलमान और समाज के अन्य वर्ग इस महान अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे। मुस्लिम धर्मगुरुओं (Muslim Religious Leaders) ने ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस (The Krishna Janmabhoomi Case) के बीच धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों पर भी नसीहत दे डाली है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा कि शादी, तलाक, खुला (बीवी की मांग पर तलाक), विरासत आदि के नियम कानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए हुए नहीं हैं। यह रीति-रिवाजों या संस्कृति के मामले हैं और यह हमारे मजहबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो पवित्र कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि इसमें किसी प्रकार का बदलाव या उनका पालन रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप है। भारत के संविधान की धारा 25 में भी गारंटी दी गई है कि हम अपने रीति रिवाजों का पालन कर सकते हैं। इसके बावजूद कई राज्य यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ में पर्सनल लॉ को खत्म करना चाहते हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा कि यदि भारत सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करती है, तो भारत के मुसलमान और समाज के अन्य वर्ग इस महान अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे और संवैधानिक ढांचे के भीतर हर संभव कदम उठाने के लिए मजबूर होंगे।
If the government of India makes an attempt to enforce a uniform civil code, the Muslims of India and other sections of society will not tolerate this great injustice and will be compelled to take all possible steps within the constitutional framework: Jamiat Ulama-i-Hind
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 29, 2022
इसके अलावा मुस्लिम धर्मगुरुओं ने धार्मिक स्थलों पर विवादों को लेकर चिंता जताई है। ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा कृष्णाभूमि विवाद के बीच मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा कि देश में बार-बार ऐसे मामले उठाना उचित नहीं है। इससे देश में शांति और सद्भाव खत्म हो सकता है। उन्होंने कहा कि हम सभी को देश के विकास के लिए कार्य करना चाहिए न कि लोगों के बीच बंटवारा होना चाहिए।
बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दो दिवसीय जलसे का आह्वान किया था। 28 मई से शुरू हुई जलसे में करीब 5000 मस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं ने हिस्सा लिया। यह सभी धर्मगुरु विभिन्न धार्मिक संगठनों से हैं। पहले दिन भी तीन प्रस्ताव पास किए गए थे। पहला प्रस्ताव पास किया था कि विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट 2017 की सिफारिशों के अनुरूप तत्काल कदम उठाए जाएं। इसके साथ ही कहा गया है कि उकसाने वाले लोगों को दंडित करने के लिए एक अलग कानून का मसौदा तैयार किया जाए।
दूसरे प्रस्ताव पास किया गया कि 14 मार्च को 'इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। तीसरे प्रस्ताव पास किया कि उलेमा ने अन्याय और दमन से निपटने की रणनीति विकसित करने के लिए 'भारतीय मुसलमानों के लिए न्याय और अधिकारिता पहल' नामक विभाग बनाया है, लेकिन जमीनी स्तर पर भी प्रयास करने होंगे।
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