12 वर्ष की आयु में घर से भागकर हरिद्वार पहुंचे थे अशोक चोटिया, महंत नरेंद्र गिरि से शिक्षा ग्रहण कर बन गये स्वामी आनंद गिरि, पढ़ें पूरी कहानी

निरंजनी अखाड़ा के सचिव एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत मामले (Narendra Giri death case) को लेकर संदेह अभी भी बरकरार है। केस से संबंधित पाए गए कथित सुसाइड नोट में नरेंद्र गिरि के चेले आनंद गिरि (Anand Giri) का उल्लेख है। इसके बाद हरिद्वार (Haridwar) से स्वामी आनंद गिरि (Swami Anand Giri) को यूपी पुलिस (UP Police) प्रयागराज (Prayagraj) लेकर आ गई है। प्रयागराज पुलिस लाइन में आन्नद गिरि से पूछताछ चल रही है।
वहीं हम आपको अशोक चोटिया से स्वामी आनंद गिरि बनने की पूरी कहानी से रूबरू करा रहे हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले निवासी अशोक चोटिया ने इन सात वर्षों में यह कारनाम कैसे करके दिखा दिया। हम अब आपके सामने आनंद गिरि का बचपन ला रहे हैं। पता चला है कि 12 वर्ष की अवस्था में आनंद गिरि ने घर-बार छोड़ दिया था। साथ यूपी के प्रयागराज के महंत नरेंद्र गिरि के आश्रम जाकर साल 2014 में उनके चेले बन गए थे।
आनंद गिरि के गांव से सामने आई ये जानकारी
स्वयं को घुमंतू योगी कहने वाले आनंद गिरि का राजस्थान से नाता है। आन्नद गिरि का राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसींद तहसील के गांव ब्राह्मणों की सरेरी में पैतृक घर है। पैतृक आवास की जानकारी के अनुसार, आंनद के परिवार में पिता रामेश्वरलाल जो किसान हैं, 3 बड़े भाई और एक छोटी बहन है। आनंद की मां नानू देवी का निधन जून माह, 2020 में हो गया था।
जानकारी के अनुसार आनंद के एक भाई सरेरी गांव में ही सब्जी बेचने की ठेली लगाते हैं। इनके दो भाई सूरत में कबाड़े का कार्य करते हैं। सरेरी गांव के लोग आनंद गिरि को अच्छे संत के तौर पर जानते हैं। ग्रामीण आनंद गिरि को शांत व शालीन स्वभाव का कहते हैं। बताया गया है कि संन्यास लेने से पूर्व आनंद गिरि का नाम अशोक चोटिया हुआ करता था।
बचपन से पूजा-अर्चना की ओर था रूख
जानकारी के अनुसार सरेरी गांव स्थित आनंद गिरि के पैतृक घर के निकट चारभुजा मंदिर है। बचपन से ही वह इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। साल 1996 में जब आनंद गिरि 12 वर्ष के थे तो उसी वक्त अपना घर-बार छोड़कर प्रयागराज चले आए थे। परिजनों को इसकी सूचना भी नहीं थी यानी कि उन्हें नहीं पता था कि वो कहां चला गया है? कुछ समय बाद परिजनों को पता चला कि वह हरिद्वार के कुंभ में हैं। हरिद्वार के कुंभ में आनंद के पिता पहुंचे थे। पर जब तक वो महंत नरेंद्र गिरि के आश्रम में जाकर उनके शिष्य बन गए थे।
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