विष्णु तिवारी ने निर्दोष होते हुए भी 20 साल जेल में गुजारे, अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी डीजीपी से मांगा जवाब

ललितपुर के विष्णु तिवारी निर्दोष होते हुए भी दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में 19 साल की जेल काटकर बाहर तो आ गए हैं, लेकिन उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं। विष्णु इस समय बेहद आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। उनकी पीढ़ा को देखते हुए आगरा के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा था, जिस पर आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी से इस बारे में जवाब मांगा है। साथ ही, विष्णु तिवारी केस की जांच करने वाले अधिकारी पर भी कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ललितपुर के थाना महरौली के गांव सिलावन के रहने वाले विष्णु (46) पुत्र रामेश्वर के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने विष्णु तिवारी को इस केस में निर्दोष करार देते हुए बरी करने के आदेश दिए। विष्णु जेल से बाहर तो आ गए हैं, लेकिन उनका बुरा दौर अभी तक समाप्त नहीं हुआ है।
विष्णु तिवारी ने मीडिया के समक्ष बताया कि जेल में रहने के दौरान उसके परिवार में माता, पिता और दो भाइयों की मौत हुई, लेकिन किसी के भी अंतिम संस्कार में शामिल होने की उसे अनुमति नहीं मिली। यहां तक कि उसे जेल से परिजनों को फोन भी नहीं करने दिया जाता था। विष्णु के मुताबिक उसके पास न तो जमीन है और न ही रहने को घर। अभी किराये के मकान में रह रहे हैं, लेकिन कमाई का कोई जरिया नहीं है। कमाई के लिए भगवान ने जो थोड़ा बहुत हाथ का हुनर दिया था, वो भी जेल की सलाखों ने छीन लिया। विष्णु ने सरकार से अपील की थी कि उसके लिए रोजी रोटी कमाने का कोई इंतजाम किया जाए।
विष्णु की आपबीती सुनकर हर कोई हैरान है कि कैसे एक इंसान निर्दोष होते हुए भी इतने सालों तक जेल में बंद रहा। ऐसी ही पीढ़ा आगरा के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने महसूस की और उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिख विष्णु को न्याय दिलाने की मांग की। मीडिया रिपोर्ट में नरेश पारस के हवाले से बताया गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार ने इस संबंध में यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी को छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट देने के आदेश किए हैं। साथ ही विष्णु के मामले में जांच अधिकारी पर भी कार्रवाई करने की मांग की है, जिसकी लापरवाही के कारण निर्दोष होते हुए भी विष्णु तिवारी को 20 साल जेल में रहना पड़ा। विष्णु को मुआवजा देने के लिए संबंधित जांच अधिकारी से ही जुर्माना वसूली के भी आदेश दिए गए हैं।
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