Uttarakhand : भारत-चीन युद्ध के दौरान वीरान हुए गावों में फिर लौटेंगी रौनक, जानिए क्या है प्लान

साल 1962 में भारत चीन (india-China War) के बीच हुए युद्ध के बाद से सीमा से लगे उत्तरकाशी जिले (Uttarkashi District) की गंगा घाटी के दो गांव नेलंग (Nelang) और जादुंग (Jadung) 60 साल से वीरान पड़े हैं। यहां के लोग निचले इलाकों में शरणार्थी की तरह रहने को मजबूर हैं। इन दोनों गांवों को फिर से आबाद किया जाएगा। इस बात से गांवों के ग्रामीण अपने गांव लौटने की आस से काफी उत्साहित हैं। इन गांवों की आबादी से न केवल इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि भारत से सामरिक ताकत भी मिलेगी।
प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister's Office) के हस्तक्षेप के बाद शनिवार को राज्य के मुख्य सचिव ने उत्तरकाशी के सीमावर्ती क्षेत्र का दौरा किया और स्थानीय अधिकारियों के साथ इन गांवों से पलायन कर चुके लोगों को फिर से बसाने की योजना की समीक्षा की। और जल्दी से जल्दी लोगों को उनके गांव में बसाने के लिए कार्यक्रम बनाने का निर्देश दिया गया है।
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी (District Magistrate) मयूर दीक्षित (Mayur Dixit) ने मुख्य सचिव को इन गांवों के लोगों के पुनर्वास से संबंधित योजना की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लोगों को यहां भेजने के लिए अधिकारियों की टीम इन दोनों गांवों का सर्वे करेगी। इसके लिए जादुंग गांव में अगले दो दिन में 28 व 29 मार्च को सर्वे का काम पूरा कर लिया जाएगा। वहीं नेलंग के लिए अधिकारियों की सर्वे टीम अप्रैल माह में दौरा करेगी। इन गांवों के निवासियों की ओर से इस साल जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गांव में फिर से बसने की मांग की गई थी।
इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने राज्य के मुख्य सचिव को कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद शुक्रवार को उत्तरकाशी के जिला प्रशासन की ओर से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police) और वन अधिकारियों के साथ मिलकर इन गांवों के लोगों के पुनर्वास की मांग की गई है।
बता दें उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की गंगा घाटी में नेलंग और जादुंग दो आदिवासी गाँव हैं, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद वीरान हो गए थे। सीमा से सटे ये गांव गंगोत्री से कुछ पहले भागीरथी में मिलने वाली जाड़-गंगा के जलागम में है। सीमा से सटे होने के कारण 1962 के युद्ध के बाद इन गांवों से निचले इलाकों की ओर पलायन शुरू हो गया था। इन दोनों गांवों के लोग उत्तरकाशी के पास बगोरी और डूंडा गांव में अपने परिचितों के इलाके में रहने लगे थे।
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