कमलनाथ के बयान ने भड़काने का काम किया : मनोज चौधरी

भोपाल। मुझे सिंधिया के आशीर्वाद से टिकट मिला था, वे मेरी आस्था के केंद्र हैं। उनका अपमान कांग्रेस ने किया, जिसके बाद सिंधिया के समर्थन में पार्टी कांग्रेस छोड़ने का फैसला हमने किया। कमलनाथ सरकार में हमारे क्षेत्र में विकास के कोई काम नहीं हो रहे थे, विकास की गति रुक गई थी। क्षेत्र की जनता को जवाब देना मुश्किल हो रहा था। यह भी पार्टी छोड़ने में बड़ा कारण रहा। यह कहना है आगामी उपचुनाव में हाटपिपल्या विस सीट से भाजपा के प्रत्याशी माने जाने वाले पूर्व विधायक मनोज चौधरी का। उन्होंने 'हरिभूमि' के सहयोगी न्यूज चैनल 'आईएनएच' के खास कार्यक्रम 'अदालत में बागी' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी से ये बातें कहीं।
सवाल : आप अपनी मेहनत से चुनाव जीते थे, सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र के भी नहीं हैं। 15 महीने की कांग्रेस सरकार में ऐसा क्या घटा कि आपने पार्टी और विधायक पद दोनों ही छोड़ दिए?
जवाब : सिंधिया हमारे आस्था के केंद्र हैं, हमें उनके आशीर्वाद से टिकट मिला था। मेरे विधानसभा क्षेत्र में एक मात्र चुनावी सभा किसी बड़े नेता की हुई तो वह सिंधिया की सभा थी। एमएलए बनने के बाद मैंने क्षेत्र के विकास के लिए जो प्रस्ताव कांग्रेस सरकार के सामने रखे, उनमें से किसी में भी काम नहीं हुआ। मेरे क्षेत्र में किसान आंदोलन के दौरान प्रकरण बने थे। कांग्रेस सरकार ने प्रकरण वापस लेने का आश्वासन दिया था, लेकिन एक भी वापस नहीं हुआ। जर्जर सड़क मार्ग, पेयजल की समस्या, किसान आंदोलन प्रकरण वापसी को लेकर कमलनाथ से मिले। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का पैसा नहीं मिल रहा था, हमने जिनकी शादियां करवार्इं, उनके खाते में अभी तक एक पैसा नहीं पहुंचा। सड़कें कंप्लीट नहीं हुर्इं। जब हम क्षेत्र में जाते थे तो जनता पूछती थी, यह काम क्यों नहीं हो रहे, कब होंगे? जवाब देना मुश्किल हो रहा था। हमने सिंधिया को भी अवगत कराया, उन्होंने खुद अफसरों से बात की, लेकिन फिर भी काम नहीं हुए। तब सिंधिया ने हमसे कहा कि अगर यह हमारा सम्मान नहीं करेंगे तो हमें कोई कड़ा निर्णय लेना पड़ेगा। हमने सिंधिया से वादा किया था, आप कोई भी कड़ा निर्णय करेंगे, हम आपके साथ रहेंगे। इन स्थितियों में ही पार्टी और विधायक पद छोड़ा।
सवाल : कमलनाथ इतने अनुभवी नेता हैं, वे कई साल केंद्र में मंत्री रहे, उसके बाद सीएम बने, फिर क्यों फेल हो गए?
जवाब : यह तो आप अच्छी तरह जानते हैं कि वे कहां फंस गए, हमें उसके बारे में कुछ नहीं कहना।
सवाल : आपके पार्टी छोड़ने का निर्णय इतना गोपनीय रहा कि न तो जनता को पता लगा, न परिवार को। आपके रिश्तेदार जीतू पटवारी व कुणाल चौधरी आपके पिता को लेकर आपको खोजने बेंगलुरु पहुंच गए, उन्हें लगा कि किसी ने किडनैप तो नहीं कर लिया?
जवाब : जनता की परेशानी का अंदाजा हमें रहता है। परिवार वाले तो अपना काम करते हैं। जनता के सामने हमें जाना पड़ता है, अगर उनकी समस्याएं हल नहीं कर पाए, तो क्या जवाब देंगे।
सवाल : छह मंत्री तो आपके साथ थे ही, आपके दूसरे ग्रुप के मंत्री जीतू पटवारी के साथ भी अच्छे संबंध थे। फिर भी सुनवाई क्यों नहीं हो रही थी?
जवाब : हम मंत्रियों को जनता की तरफ से कई बार ज्ञापन दिलवा चुके थे। उन्हें खराब सड़कों के रास्ते से भी ले गए, सिर्फ विधायक निधि के द्वारा विकास नहीं हो सकता। सरकार की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला।
सवाल : आप पार्टी छोड़ने का कारण क्षेत्र का विकास न होना बता रहे हैं, लेकिन आपके साथियों का कहना है कि तगड़ा माल मिला, सही क्या है?
जवाब : अब तो वे कुछ भी कहेंगे। हमारे नेता को नहीं पता कि उनकी कितने देशों में कितनी संपत्ति है, क्या उन्हें माल देकर खरीद सकते हैं। उनका सम्मान नहीं हो रहा था, यह तो सबने देखा। अब कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर हमारे साथ भाजपा में आ रहे हैं, क्या उन पर भी ऐसे ही आरोप लगाएंगे।
सवाल : आप कह रहे हैं कि जनता की परेशानियों को लेकर पार्टी छोड़ी, या अपने नेता के अपमान से आहत थे?
जवाब : नेता का अपमान भी हुआ है, कांग्रेस ने दो फोटो लगाकर चुनाव लड़ा था सिंधिया और कमलनाथ के फोटो। सरकार बनने के बाद कमलनाथ तो सीएम बन गए, लेकिन सिंधिया के साथ क्या किया। अब अगर सिंधिया ने कहा था कि कांग्रेस का वचन पत्र हमारा धर्म ग्रंथ है, उसका पालन करवाने के लिए मुझे सड़क पर भी उतरना पड़ेगा, तो उतरुंगा। तो कमलनाथ कह सकते थे कि सिंधिया हमारे नेता हैं। हम सब मिलकर वचन पत्र की मांगें पूरी करेंगे। मामला शांत हो जाता, लेकिन उनके बयान ने उलटा भड़काने का काम किया।
सवाल : भाजपा कितनी रास आ रही है, आपके आने के बाद उसमें बगावत के आसार बन गए हैं। दीपक जोशी को कैसे संभालेंगे?
जवाब : जब कुनबा बढ़ता है, तो मिस अंडर स्टैंडिंग रहती है। मुझे जनता का प्रेम और कार्यकर्ताओं का स्रेह मिल रहा है। दीपक जोशी बड़े नेता हैं, उनकी बात को गलत तरीके से लिया गया है। उन्होंने जो विकल्प की बात की, वो इसलिए कि संगठन में भी काम करने के लिए विकल्प उनके पास हैं। उनकी पार्टी नेतृत्व से चर्चा हुई है, उसके बाद उन्होंने मंडल की बैठक में मुझे जिताने का आहवान कार्यकर्ताओं से किया है।
सवाल : आप कांग्रेस में रहे और अब भाजपा को अनुभव किया, क्या अंतर लग रहा दोनों पार्टियों में?
जवाब : कांग्रेस में समन्वय की कमी है, जबकि भाजपा में संगठन सर्वोपरि है। भाजपा में कहीं असंतोष उभरता है, तो उसे तुरंत कंट्रोल करने का प्रयास होता है और संगठन उसमें सफल होता है।
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