लोकसभा चुनाव 2019 : कांग्रेस ने लगातार 7 चुनावों में बदले प्रत्याशी, मिली हार- जानें भाजपा के आंकड़ें

लोकसभा चुनाव 2019 : कांग्रेस ने लगातार 7 चुनावों में बदले प्रत्याशी, मिली हार- जानें भाजपा के आंकड़ें
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प्रज्ञा ठाकुर के प्रत्याशी बनने से भोपाल का चुनाव एक बार फिर रोचक और कांटे का होने के आसार हैं। लेकिन बीते आठ चुनाव में भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार के मुख्य फैक्टर देखें तो ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस का बार बार प्रत्याशी बदलना और निर्दलीय या बसपा के उम्मीदवार को मिले खासे मत नतीजे को एक हद तक प्रभावित करने वाले रहे हैं।

भोपाल सीट से बीते लगातार सात लोकसभा चुनाव जीती भारतीय जनता पार्टी ने नौवें चुनाव में प्रत्याशी बदल दिया है। नौ चुनाव में यह चौथा मौका है जब इस दल ने वर्तमान सांसद का टिकट काटकर नया प्रत्याशी उतारा है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने लगातार सात चुनाव में प्रत्याशी बदलकर मात खाने के बाद आठवें चुनाव में भी प्रत्याशी बदला है।

कांग्रेस के पूर्व में ही प्रत्याशी घोषित हो चुके पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा ने बीते चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पीसी शर्मा को करीब पौने चार लाख वोट से हराने वाले आलोक संजर का टिकट काट दिया है। उनकी जगह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं और मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में आरोपी बनाई जाने के बाद देश भर में चर्चित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को दिग्विजय के खिलाफ मैदान में उतारा है। दो दशक में आठ चुनाव में कांग्रेस केवल एक ही चुनाव एक लाख से कम वोट से हारी

प्रज्ञा ठाकुर के प्रत्याशी बनने से भोपाल का चुनाव एक बार फिर रोचक और कांटे का होने के आसार हैं। लेकिन बीते आठ चुनाव में भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार के मुख्य फैक्टर देखें तो ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस का बार बार प्रत्याशी बदलना और निर्दलीय या बसपा के उम्मीदवार को मिले खासे मत नतीजे को एक हद तक प्रभावित करने वाले रहे हैं।

इस सीट पर कायस्थ या मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर जीतने का कांग्रेस और भाजपा दोनों का मिथक भी बनता और टूटता रहा है। 2008 में हुए परिसीमन और बीते दो दशक में आबादी का समीकरण भी बदलना भी मिथक टूटने की वजह बना। भाजपा ने 1989 में कांग्रेस के तत्कालीन सांसद केएन प्रधान के सामने उनकी ही जाति कायस्थ से पूर्व मुख्य सचिव सुशीलचंद्र वर्मा को प्रत्याशी बनाया था।

प्रधान को वर्मा ने एक लाख से ज्यादा मतों से परास्त किया था। वर्मा इसके बाद तीन और चुनाव लगातार जीते। कांग्रेस ने हर बार नया उम्मीदवार उनके सामने उतारा। वर्मा से चुनाव हारने वालों में भोपाल के आखिरी नबाव हमीदुल्ला के नवासे क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी, तत्कालीन विधायक कैलाश अग्निहोत्री कुंडल और कभी जनता लहर में कांग्रेस के शंकरदयाल शर्मा को भोपाल सीट पर ही मात दे चुके आरिफ बेग भी शामिल थे। बेग बाद में भाजपा में लौटकर 2008 का विधानसभा चुनाव भोपाल उत्तर से कांग्रेस के आरिफ अकील से हार गए थे।

वर्मा के बाद 1999 में खजुराहो की सांसद उमा भारती ने भोपाल आकर कांग्रेस के सुरेश पचौरी को हराया और इसके बाद 2004 में भाजपा ने पूर्व सीएम कैलाश जोशी को उतारा, जिन्होंने कांग्रेस के साजिद अली एडवोकेट और 2009 में पूर्व राज्यसभा सदस्य सुरेंद्र सिंह ठाकुर को हराया। ठाकुर हाल ही में 2018 का विधानसभा चुनाव सीहोर सीट से हारे हैं।

ठाकुर बीते आठ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे कम वोट से हारने वाले प्रत्याशी हैं। वे करीब 65 हजार वोट से हारे थे। भाजपा ने 2014 में जोशी की जगह आलोक संजर को उतारा और कांग्रेस ने पूर्व विधायक पीसी शर्मा को। शर्मा सर्वाधिक पौने चार लाख वोट से हारे और 2018 में फिर विधायक बनकर अब मंत्री हैं।

तीसरा फैक्टर भी भाजपा के मुफीद रहता आया

1989 से अब तक की भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार में तीसरे फैक्टर की भी भूमिका रही है। मसलन 1989 में बसपा के अब्दुल रऊफ को करीब 98 हजार वोट मिले थे। इसी तरह 1996 में असंतुष्ट कांग्रेसी रमेश सक्सेना को बतौर निर्दलीय 53 हजार वोट हासिल हुए थे। रमेश बाद में सीहोर से निर्दलीय विधायक बने और भाजपा में रहकर विधायक रहे और अब फिर कांग्रेस में हैं।

1998 के चुनाव में बसपा के मनोज श्रीवास्तव को करीब 55 हजार वोट मिले थे। हालांकि बसपा का वोट अगले चुनावों में कम होता गया। 1999 में बसपा के फूल सिंह को 19 हजार, 2004 में जीएस चावला को 17 हजार, 2009 में अशोक नारायण सिंह को 19 हजार वोट मिले थे। बीते यानी 2014 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी को 10 हजार और आम आदमी पार्टी उम्मीदवार को 21 हजार वोट मिले थे।

दिग्विजय लोकसभा चुनाव जीत और हार चुके हैं, प्रज्ञा पहली दफा मैदान में

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लोकसभा चुनाव में चौथी बार मैदान में हैं। वे दो दफा राजगढ़ सीट से जीत और एक दफा हार चुके हैं। उन्हें भाजपा के मप्र में वरिष्ठतम नेताओं में से एक प्यारेलाल खंडेलवाल ने हराया था। दिग्विजय ने भी खंडेलवाल को एक बार हरा दिया था। 1977 की जनता लहर में भी राघौगढ़ विधानसभा सीट से जीते दिग्विजय अपनी इस गृह सीट से बाद में भी जीते और सांसद रहते मुख्यमंत्री बनने के बाद गृह जिले गुना की सीट चाचौड़ा से विधायक बने थे, जहां से उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह वर्तमान विधायक हैं।

दिग्विजय 10 साल मप्र के मुख्यमंत्री रहने के नाते भोपाल में रहे लेकिन बतौर उम्मीदवार वे स्थानीय नहीं हैं। प्रज्ञा ठाकुर राजनीति में ही एक दिन पहले आई हैं, वे मंगलवार को भाजपा में शामिल हुई हैं और बुधवार को उन्हें भोपाल से उम्मीदवार बना दिया गया।

इस सीट पर विधानसभा चुनाव से बदला गणित

भोपाल संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की आठ सीटें हैं। छह भोपाल शहर की, एक बैरसिया और आठवीं सीट सीहोर है। इनमें से पांच पर भाजपा के विधायक हैं हुजूर, गोविंदपुरा, बैरसिया, नरेला तथा सीहोर जबकि भोपाल उत्तर, दक्षिण-पश्चिम और भोपाल मध्य सीट पर कांग्रेस के विधायक हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त अकेली भोपाल उत्तर सीट कांग्रेस के कब्जे में थी। यानी पांच साल में मंजर बदल चुका है।

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