मौत की दहलीज पर खड़ा है ये परिवार, दर्दनाक सच्चाई पढ़कर नम हो जाएंगी आंखें

मौत की दहलीज पर खड़ा है ये परिवार, दर्दनाक सच्चाई पढ़कर नम हो जाएंगी आंखें
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घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के पलासपानी गांव में दिलदहला देने वाला मामला सामने आया है जहां अज्ञात बीमारी की मार झेल रहे परिवार के पांच सदस्य एक के बाद मौत के मुंह में जाने की कगार पर हैं।

बैतूल। घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के पलासपानी गांव में दिलदहला देने वाला मामला सामने आया है जहां अज्ञात बीमारी की मार झेल रहे परिवार के पांच सदस्य एक के बाद मौत के मुंह में जाने की कगार पर हैं। उस पर समाज द्वारा की गई उनकी उपेक्षा को देखकर रूह कांप उठती है। इस परिवार की मुखिया एक मां है जिसने किसी अज्ञात बीमारी के चलते अपने पति को 15 साल पहले ही खो दिया था।


लेकिन सात साल पहले उसी अज्ञात बीमारी की चपेट में उसके नौजवान पांच बच्चे भी आ गए हैं। जिसमें दो शादीशुदा बेटियां भी हैं जिन्हें बीमारी के चलते उन्हें ससुराल वालों ने मायके में लाकर छोड़ दिया है।

इस अज्ञात बीमारी से घर के पांच सदस्य 18 साल की उम्र में ही कुपोषित होकर पूरी तरह दिव्यांग हो रहे हैं या यूं कहें हो गए हैं। अब उनकी बूढ़ी मां मज़दूरी करके किसी तरह अपने पांचों बीमार बच्चों का पेट भरती है लेकिन गांव की पंचायत, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की तरफ से इन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी है।

पांचों बच्चों को अकड़ गया शरीर

घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के पलासपानी गांव में जुगल विश्वकर्मा का परिवार रहता है। 15 साल पहले जुगल की एक अज्ञात बीमारी से मौत हो गई। जुगल की पत्नी पर पांच जवान बच्चों की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो बेहद दर्दनाक है। परिवार के पांच बच्चे भी एक-एक कर भरी जवानी में पिता की तरह उसी अज्ञात बीमारी की चपेट में आते गए और आज हालात ये हैं कि 18 से 25 साल उम्र के युवा पूरी तरह से कुपोषित हो चुके हैं और इनका पूरा शरीर अकड़ गया है। इनका केवल एक ही सहारा है और वो है इनकी बूढ़ी मां।


शादी शुदा बेटियां भी बीमारी की शिकार

मल्लो बाई के पांच बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा इस बीमारी से पीड़ित है। दो बड़ी बेटियों को शादी के बाद ये अज्ञात बीमारी हुई तो ससुराल वालों ने उन्हें मायके लाकर छोड़ दिया और फिर दोबारा उन्हें देखने कभी नहीं आए। मदद के नाम पर इस परिवार को कुछ नहीं मिलता।

15 साल से संघर्ष कर रहे परिवार को नहीं मिली कोई मदद

सबसे शर्मनाक बात ये है कि ये परिवार पिछले 15 साल से संघर्ष कर रहा है लेकिन गांव के सरपंच सचिव, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं किसी ने भी प्रशासन को इनकी बिगड़ती हालत को लेकर सूचित नहीं किया। जिससे चलते आज तक इन्हें कोई मदद नहीं मिली। बीमार सदस्यों को विकलांग पेंशन नहीं मिलती। अपने 5 बच्चों का पेट भरने के लिए बूढ़ी मल्लो बाई एमडीएम का भोजन बनाकर 1000 या 1200 रुपए में गुज़ारा कर रही है। ग्रामीण अब इनके परिवार के लिए मदद मांगने आगे आ रहे हैं।

कभी कभी समाज और सिस्टम कितना संवेदनहीन हो सकता है इसकी एक बानगी है जुगल विश्वकर्मा का तिल-तिल करके जीता ये परिवार। अब देखना ये होगा कि प्रशासन और समाज मामला उजागर होने के बाद इनकी क्या मदद करता है।


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