अबूधाबी से आकर दंपत्ति ने कायम की मिसाल, बेटे के साथ कराया बेटी का उपनयन संस्कार

इंदौर। बेटे का उपनयन संस्कार कराना आम बात है। लेकिन बेटी का उपनयन संस्कार शायद ही अपने कभी सुना हो। अबूधाबी में रहने वाले महाराष्ट्रीयन दंपत्ति ने इंदौर आकर योगेश कुलकर्णी और माणिक कुलकर्णी ने 8 साल की बेटी शमिका का उपनयन संस्कार उसके जुड़वा भाई शनय के साथ उपनयन संस्कार कर नई मिसाल बनाई है।
इस संबंध में पहले योगेश कुलकर्णी ने दो साल तक शास्त्रों का अध्ययन किया। उनका मानना है कि यह संस्कार विद्या से जुड़ा हुआ है और इसमें गायत्री मां की पूजा होती है उसमें बेटे बेटी के बीच भेदभाव करना सही नहीं है।
सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर इंजीनियर योगेश ने बताया 4 साल पहले पुणे में एक आयोजन के दौरान उन्हें लड़कियों का उपनयन संस्कार होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद से ही उन्होंने इस विषय के विद्वानों से चर्चा भी की थी। फिर ज्ञान प्रबोधनी और पुरातन पुस्तकों का अध्ययन किया। इसमें ऋषि पुत्री गार्गी ऋषि और लोपमुद्रा का उल्लेख आता है, जिनका उपनयन संस्कार हुआ था। इसके बाद उन्होंने इंदौर आकर अपने गुरुजी से चर्चा की और सबकी सहमति से उपनयन संस्कार कराया।
माणिक के मुताबिक इस संस्कार में बेटियों को शामिल न किया जाना हमारे लिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि इसमें गायत्री माता का पूजन होता है और गायत्री मंत्र दिया जाता है। इस संस्कार के लिए बेटे-बेटी में भेदभाव उचित नहीं लगता।
45 साल में पहला अवसर
शुक्ल यजुर्वेदीय याज्ञवल्यक्य संस्था के सदस्य और उपनयन संस्कार कराने वाले गुरुजी नीलकंठ बड़वे कहते हैं कि 45 वर्ष से मैं इस क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं और किसी बालिका का उपनयन संस्कार देखने और कराने का यह मेरा पहला अनुभव है। हालांकि बालिकाओं के उपनयन संस्कार कराने के कुछ उदाहरण शास्त्रों में मिलते भी हैं। मेरे सामने जब यह बात आई तो विद्ववत सभा जिसमें चारों वेदों के जानकार हैं, उनसे चर्चा की। इसके बाद आयोजन को विधि-विधान से साकार रूप दिया।
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