आसान नहीं भगवान नीलकंठ का दर्शन पाना : पहाड़ी पथरीली राहों पर ऊंची चढ़ाई के बाद गहरी खाई में बिना भटके उतर सकेंगे तभी होगा दर्शन, सुंदर-सुरम्य जलप्रपात मोह लेता है मन...

रविकांत सिंह राजपूत- बैकुंठपुर। जिला मुख्यालय से 120 किलोमीटर दूर सोनहत विकासखंड के रामगढ़ इलाके से लगभग 43 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत दसेर में पर्वतीय टीलों में स्थित है नीलकण्ठ महादेव। नीलकंठ महादेव तक पहुंचने का रास्ता सरल नहीं है, काफी मशक्कत के बाद आपको नीलकंठ महादेव के दर्शन हो पाएंगे। एक तो लगभग हजार फीट ऊंचाई के बाद तीनों तरफ से खाइयों के बीच में नीलकंठ महादेव विराजमान हैं। वहां तक पहुंचने के लिए किसी भी तरह की सड़क या सीढ़ी जैसी कोई सुविधा नहीं है। यह पथरीला रास्ता इतना खराब है कि दोपहिया वाहन तक जाना मुश्किल है। जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद लगभग 4 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है। यह पैदल सफर घनघोर जंगलों के बीच से होते हुए नीलकंठ महादेव तक पहुंचता है। यदि आपको नीलकंठ महादेव के दर्शन करने हैं तो अपने साथ वहां के ग्रामीणों को जरूर अपने साथ रखें अन्यथा आप भटक सकते हैं।
नीलकंठ महादेव काफी ऊंचाई में एक चट्टान पर विराजे हैं। वैसे तो नीलकंठ महादेव तक कम ही लोग पहुंच पाते हैं, क्योंकि तीनों तरफ से खाई है। इसीलिए वहां पास से पत्थर पर उनकी पूजा की जाती है। नीलकंठ महादेव जहां विराजमान हैं वह इतनी ऊंचाई पर है कि वहां से मध्य प्रदेश के सीधी और उत्तर प्रदेश का रेणुकूट इलाका भी दिखाई देता है। लगभग उसके 500-400 फीट नीचे एक काफी सुंदर सा जलप्रपात दिखाई देता है। वहां तक पहुंचना भी काफी मुश्किल है लेकिन मुश्किलों को भी पार कर कुछ श्रद्धालु वहां तक पहुंचते हैं। उसी जलप्रपात के ठीक बगल में चट्टानों के बीच में शिवलिंग स्थापित है जिसकी पूजा लोग करते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए 1000 फीट ऊंची चढ़ाई के बाद लगभग 400 से 500 फीट नीचे गहराई तक उतरना पड़ता है।
मुख्य पुजारी 60 साल से कर रहे हैं पूजा
वहां के पुजारी मंगल साय ने बताया कि वे लगभग 15 वर्षों से पूजा कर रहे हैं। मुख्य पुजारी कुम्हार 60 वर्षों से पूजा कर रहे हैं। पुजारी का यह भी कहना है कि यहां जो भी आते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। साथ ही उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के साथ मध्यप्रदेश के सीधी, उत्तर प्रदेश के रेणुकूट जिले के लोग भी यहां पूजा करने आते हैं। यहां लोग मनौती मांगते हैं, बच्चों का मुंडन कराते हैं, साथ ही कुछ लोग बकरे की बलि भी देते हैं। नारियल भी चढ़ाया जाता है।
नीलकंठ की ऐसी कृपा-श्रद्धालु नीचे गिरा फिर भी सकुशल लौटा
पुजारी बताते हैं कि कुछ दिन पूर्व एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ नीलकंठ महादेव का दर्शन करने आए थे। उनका पैर फिसल गया और नीचे गिर गए, परन्तु नीलकंठ महादेव की कृपा से वे बिलकुल सही सलामत बच गए।
शंकर भगवान के दर पर बकरे की बलि... ?
आप लोगों ने सुना होगा कि बलि केवल देवीय तीर्थ स्थानों में दी जाती है। परंतु कोरिया जिले में एक ऐसा तीर्थ स्थान भी हैं जिसका नाम नीलकंठ महादेव है और वहां बकरे की बलि दी जाती है। इस संबंध में जब गांव के पटेल से हमारी टीम ने बात की तो उन्होंने कहा कि हम बली का विरोध करते हैं। लेकिन जिसकी मनोकामना पूरी हुई हो उसको मनौती पूरी करने से रोका जाना उचित नहीं है।
सुंदर जलप्रपात के करीब है पुराना शिवलिंग
अगर आप नीलकंठ महादेव के दर्शन को जा रहे हैं नीलकंठ महादेव के दर्शन के बाद पर्वत से ठीक नीचे लगभग 500 से फीट नीचे सुंदर जलप्रपात है। यहां चट्टान के अंदर शिवलिंग स्थापित है। वहां के लोगों का कहना है कि यह शिवलिंग काफ़ी पुराना है। इसका अंदाजा अभी तक नहीं लगाया जा सका है कि शिवलिंग आखिर कितना पुराना है।
कैसे पहुंचेंगे नीलकंठ महादेव तक...
कोरिया जिले से सर्वप्रथम सोनहत के बाद गुरु घासीदास नेशनल पार्क होते हुए रामगढ़, रामगढ़ से चुलादर, चुलादर से नाटवाहि, फिर सलगवा से धनपुर, धनपुर से आनदपुर, आनदपुर से दसरे, दसरे से जंगल होते हुए नीलकंठ धाम आप पहुंच सकते हैं।
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