शाह-योगी ने वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया, पढ़ें दोनों नेताओं का दमदार भाषण

शाह-योगी ने वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया, पढ़ें दोनों नेताओं का दमदार भाषण
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सीएम योगी के बाद अमित शाह ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अमृत महोत्सव हमारे लिए आजादी दिलाने के लिएए जो हमारे पुरखों ने यातनाएं सहन की, सर्वोच्य बलिदान दिए, संघर्ष किए उसको स्मृति में जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देना को तो मौका तो है ही, साथ ही आजादी का अमृत महोत्सव हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने आज वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन ( All India Official Language Conference) का शुभारंभ किया। इस मौके पर अमित शाह और सीएम योगी (Amit Shah- Cm Yogi) ने कार्यक्रम संबोधित किया। सीएम योगी ने अपने संबोधन में कहा कि 7 वर्ष पहले भारत क्या था, भारत के अंदर आम जनमानस के मन में विश्वास का अभाव था। वैश्विक मंच पर भारत की जो प्रतिष्ठता होनी चाहिए थी, वो प्रतिष्ठता उस रूप में नहीं थी जो भारत को मिलनी चाहिए थी। लेकिन, पिछले सात-साढ़े सात वर्षों के अंदर आपने बदलते हुए भारत को, इस एक नए भारत को, इस श्रेष्ठ भारत के रूप में बदलते हुए देखा है।

सीएम योगी के बाद अमित शाह ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अमृत महोत्सव हमारे लिए आजादी दिलाने के लिएए जो हमारे पुरखों ने यातनाएं सहन की, सर्वोच्य बलिदान दिए, संघर्ष किए उसको स्मृति में जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देना को तो मौका तो है ही, साथ ही आजादी का अमृत महोत्सव हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है।

इसी वर्ष में 130 करोड़ भारतीयों को तय करना है कि जब आजादी के 100 साल होंगे तो भारत कैसा होगा, कहां होगा। दुनिया में भारत का स्थान कहां होगा। चाहे शिक्षा की बात हो, चाहे संस्कार की बात हो, चाहे सुरक्षा की बात हो, चाहे आर्थिक उन्नत्ति की बात हो, चाहे उत्पादन बढ़ाने की बात हो, भारत कहा खड़ा है, और हर क्षेत्र में भारत कहां खड़ा होगा, इसका संकल्प लेने का ये वर्ष है।

हम सभी हिंदी प्रेमियों के लिए भी ये वर्ष संकल्प का रहना चाहिए। जब 100 साल आजादी के हो तो इस देश में राजभाषा और सभी स्थानीय भाषाओं का दबदबा इतना बुलंद हो कि किसी भी विदेशी भाषा का सहयोग लेने की आवश्यकता न हो। मैं मानता हूं कि ये काम आजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था। क्योंकि आजादी के तीन स्तंभ थे, स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा। स्वराज तो मिल गया, लेकिन स्वदेशी भी पीछे छूट गया और स्वभाषा भी पीछे छूट गई।

मैं भी हिंदी भाषी नहीं हूं, गुजरात से आता हूं, मेरी मातृभाषा गुजराती है। मुझे गुजराती बोलने में कोई परहेज नहीं है। लेकिन, मैं गुजराती ही जितना बल्कि उससे अधिक हिंदी प्रयोग करता हूं। हिंदी और सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है, हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है। काशी भाषा का गौमुख है, भाषाओं का उद्भव, भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण को शुद्ध करना, चाहे कोई भी भाषा हो, काशी का बड़ा योगदान है।

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