एपीजे अब्दुल कलाम बायोग्राफी: अब्दुल कलाम के प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और करियर के बारे में जानें

भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक और एक अच्छे शिक्षक के रूप में लोकप्रिय एपीजे अब्दुल कलाम की 15 अक्टूबर को 89वीं जयंती है। उनकी जयंती को विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। मिसाइलमैन के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टू्बर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्व्रम में हुआ था। कलाम साहब का पूरा जीवन देश सेवा और मानवता को समर्पित रहा है। एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम है। वे भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।
एपीजे अब्दुल कलाम बायोग्राफी
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का इतिहास और प्रारंभिक जीवन
रामेश्वरम में एक तमिल मुस्लिम परिवार में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था वे एक नावक थे। एपीजे अब्दुल कलाम की मां का नाम असीम्मा था और वह हाउसवाइफ थीं। एपीजे अब्दुल कलाम कुल पांच भाई बहिन थे। कलाम अपने परिवार के बेहद करीब थे और हमेशा उनकी मदद करते थे। हालांकि, उन्होंने शादी नहीं कि थी वह पूरी जिंदगी कुंवारे रहे। 1920 के दशक तक, उनके परिवार के व्यवसाय विफल हो गए और जब तक अब्दुल कलाम का जन्म हुआ तब तक वे गरीबी से जूझ रहे थे।
अब्दुल कलाम ने परिवार की मदद के लिए परिवार की मदद करने के लिए कम उम्र में ही अखबार बेचना शुरू किया था। स्कूल के दिनों में वे पढ़ाई लिखाई में सामान्य थे। लेकिन वह हमेशा नई नई चीजें सिखने के लिए तैयार रहते थे। वे चीजों को सीखना चाहते थे और अपनी पढ़ाई पर घंटो ध्यान देते थे। गणित में उनकी मुख्य रुचि थी।
एपीजे अब्दुल कलाम ने Schwartz Higher Secondary स्कूल, रामनाथपुरम, तमिलनाडु से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज में एडमिशन लिया और 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। एपीजे अब्दुल कलाम स्नातक करने के बाद बस 1955 में मद्रास चले गए। उन्होंने यहां के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। उनका सपना एक लड़ाकू पायलट बनना था, लेकिन, परीक्षा में उन्होंने 9वां स्थान प्राप्त किया। जबकि आईएएफ ने केवल आठ परिणाम ही घोषित किये थे। अतः वह उसमें सफल नहीं हो पाये.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की शिक्षा और करियर
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम 1960 में स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हो गए थे। कलाम ने भारतीय राष्ट्रीय समिति के हिस्से के रूप में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ भी काम किया था।
एपीजे अब्दुल कलाम ने डीआरडीओ में एक छोटा होवरक्राफ्ट डिजाइन करके अपने करियर की शुरुआत की थी। अपने करियर की शुरुआत में, कलाम ने भारतीय सेना के लिए एक छोटा सा हेलीकॉप्टर तैयार किया था। वर्ष 1963 से 1964 तक, डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने रक्षा मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में स्थित गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर, वर्जीनिया के पूर्वी तट पर स्थित वालप्स फ्लाइट दक्षता और वर्जीनिया के हैम्पटन में स्थित नासा के लैंगली रिसर्च सेंटर का दौरा किया।
बताया जाता है कि डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 1965 में डीआरडीओ में स्वतंत्र रूप से एक विस्तार योग्य रॉकेट परियोजना पर स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू कर किया था। लेकिन वह यहां अपने काम से बहुत संतुष्ट नहीं थे। वर्ष 1969 में उन्हें इसरो में जानें का आदेश मिले तो वे खुशी से झूम उठे थे। वहां उन्होंने SLV-III के परियोजना निदेशक के रूप में कार्य किया। जुलाई 1980 में, उनकी टीम पृथ्वी की कक्षा के पास रोहिणी उपग्रह को स्थापित करने में सफल रही थी। यह भारत का पहला स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित उपग्रह प्रक्षेपण यान है। साल 1969 में अब्दुल कलाम ने सरकार की स्वीकृति प्राप्त की और अधिक इंजीनियरों को शामिल करने के लिए कार्यक्रम का विस्तार किया था।
यहां वो भारत के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे। इसी परियोजना की सफलता के परिणामस्वरूप भारत का पहला उपग्रह 'रोहिणी' पृथ्वी की कक्षा में साल 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमे उनका मन लगता है।
1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परिक्षण देखने के लिए भी बुलाया था। सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्यों और सफलताओं से डॉ कलाम भारत में बहुत प्रसिद्द हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दी थी।
भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी 'इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम' का प्रारम्भ डॉ कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है। जुलाई 1992 से लेकर दिसम्बर 1999 तक डॉ कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने अपना दूसरा परमाणु परिक्षण इसी दौरान किया था। उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर. चिदंबरम के साथ डॉ कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।
वर्ष 1998 में डॉ कलाम ने ह्रदय चिकित्सक सोमा राजू के साथ मिलकर एक कम कीमत का 'कोरोनरी स्टेंट' का विकास किया। इसे 'कलाम-राजू स्टेंट' का नाम दिया गया।
भारत के राष्ट्रपति
एपीजे अब्दुल कलाम को वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाया। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी लक्ष्मी सहगल को भारी अंतर से पराजित किया और 25 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया। डॉ कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था।
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