Diwali Firecracker Rules: क्या एयर पॉल्यूशन के लिए दिवाली के पटाखे ही हैं जिम्मेदार, पटाखे फोड़ने से पहले पढ़ लें ये सख्त नियम, लग सकता है जुर्माना

आज पूरे देश में छोटी दिवाली है। वैसे तो पूरे देश में दिवाली की तैयारियां पहले से ही चलने लगती हैं। बाजारों में खरीदारों की भीड़ और लाइटों की सजावट से बाजार गुलजार हो जाते हैं। मगर इस बार कोरोना वायरस महामारी की वजह से दिवाली का मजा फीका पड़ गया है। एक तो कोरोना की मार और ऊपर से हवा में फैला वायु प्रदूषण इसकी वजह से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इस हवा में फैले प्रदूषण की मार की वजह से इस बार भी लोग दिवाली के अवसरपर पटाखे नहीं जला पाएंगे।
हर साल ही इन दिनों प्रदूषण की वजह से पटाखे फोड़ने पर रोक लग जाती है। कुछ लोग इसके खिलाफ भी खड़े हैं और इसे धर्म व परंपरा से जोड़कर पटाखे फोड़ने की जरूरत बता रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एयर पॉल्यूशन बढ़ता देख दिल्ली-एनसीआर में 9 से 30 नवंबर तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के जिन-जिन राज्यों में एयर क्वालिटी खराब है, वहां भी पटाखे नहीं बेचे जाएंगे। कुछ लोगों का कहना है कि साल में एक ही होता है जब पटाखे फोड़ कर हम खुशी का इजहार करते हैं मगर सवाल यह खड़ा होता है कि क्या पटाखे ही हवा में फैले प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं? आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि हवा में फैला प्रदूषण किस वजह से होता है और इसको कैसे पता करते हैं-
हवा कितनी खराब या अच्छी है, इसे एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) से मापा जाता है। AQI जब 0 से 50 के बीच होता है, तो उसे 'अच्छा' माना जाता है। जब 51 से 100 के बीच होता है, तो 'संतोषजनक', जब 101 से 200 के बीच होता है, तो 'मॉडरेट', 201 से 300 के बीच होता है, तो 'खराब' और 301 से 400 के बीच होता है तो 'बहुत खराब' माना जाता है। जबकि, 401 से 500 के बीच होने पर 'गंभीर' माना जाता है।
गुरुवार को दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 326 रिकॉर्ड किया गया। यह पहले के मुकाबले सुधरा है, लेकिन अभी भी यहां हवा 'बहुत खराब' है। हवा की गुणवत्ता का पता करना रॉकेट साइंस नहीं है। हवा कितनी प्रदूषित है और लोगों के जीवन पर इसका कितना प्रभाव पड़ रहा है इसे जानने के लिए हवा में छोटे-छोटे कण होते हैं। बालों से भी 100 गुना छोटे, जिन्हें PM 2.5 कहते हैं। PM यानी पार्टिकुलेट मैटर। जब यह छोटे-छोटे कण हवा में बढ़ जाते हैं तो हवा खराब होने लगती है। PM 2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रोन का कण। माइक्रोन यानी 1 मीटर का 10 लाखवां या 1 मिलीमीटर का 1 हजारवां हिस्सा। हवा में जब इन छोटे कणों की संख्या बढ़ती है तो विजिबिलिटी प्रभावित होती है। यह कण हमारे शरीर में जाकर खून में घुल जाते हैं। इससे अस्थमा और सांस में दिक्कत जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के मुताबिक, 2019 में हमारे देश में 1.16 लाख से ज्यादा नवजात बच्चों की मौत का कारण खराब हवा ही थी। जबकि, इस साल 16.7 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
आखिर दिल्ली में ही क्यों खतरनाक श्रेणी में पहुंचता है वायु प्रदूषण?
दिल्ली में वायु प्रदूषण का असर सबसे खतरनाक तरीके से फैलता है। एक तो इसका सबसे बड़ा कारण पंजाब और हरियाणा में जो किसान पराली जलाते हैं उसे माना जाता है। पराली जलाए जाने का सबसे ज्यादा प्रभाव दिल्ली एनसीआर में होता है। यहां की हवा प्रदूषित होती है। सितंबर में मानसून का सीजन खत्म होने से हवा की दिशा बदल जाती है।
अक्टूबर के आखिर तक तापमान कम होने लगता है, नमी बढ़ने लगती है और हवा की स्पीड कम हो जाती है। इससे हवा में यह महीन कण जमा हो जाते हैं, जो एयर क्वालिटी खराब करते हैं। वहीं दिल्ली में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह गाड़ियों के चलने की वजह भी मानी जाती है। यहां करीब एक करोड़ से ज्यादा गाड़ियां हैं, जो मुंबई और कोलकाता से भी कहीं ज्यादा है। इन गाड़ियों, फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण हवा को प्रभावित करता है जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बूढ़ों पर पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के पटाखों को लेकर क्या हैं दिशा-निर्देश?
2018 में भी एयर पॉल्यूशन को गंभीर समस्या बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे जलाने पर रोक लगाई थी और इसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने पटाखों पर बैन तो नहीं लगाया था, लेकिन कहा था कि सिर्फ ईको-फ्रेंडली पटाखे ही जलाए जा सकते हैं। अगर कोई ईको-फ्रेंडली पटाखों के अलावा कोई दूसरे पटाखे जलाता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
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