अंग्रेज भी नहीं सुलझा पाए थे राम मंदिर का मुद्दा, 1883 में पहली बार हिन्दू संगठनों ने किया था दावा

अंग्रेज भी नहीं सुलझा पाए थे राम मंदिर का मुद्दा, 1883 में पहली बार हिन्दू संगठनों ने किया था दावा
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अयोध्या विवाद (Ayodhya Dispute) : अयोध्या का विवाद 15वीं सदी से चला आ रहा है। लेकिन पहली बार यह मुद्दा प्रमुखता से 1813 में सामने आया।

अयोध्या (Ayodhya Dispute) राम मंदिर (Ram Temple) विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पांच जजों की बेंच सुनवायी कर रही है। 6 अगस्त 2019 से लगातार सुनवाई चल रही है। इस मामले में आज 40वें दिन सुनवाई खत्म होने की संभावना है। लेकिन 5 सदी से चले आ रहे मामले के अब सुलझने की संभावना है। अयोध्या का विवाद 15वीं सदी से चला आ रहा है। लेकिन पहली बार यह मुद्दा प्रमुखता से 1813 में सामने आया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 के अपने फैसले में विवादित भूमि को तीन हिस्से में बराबार-बराबर बांट दिया था। इसके बाद यह मामला 2011 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

हिन्दू संगठन ने पहली बार मंदिर पर दावा किया

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिंदू संगठनों ने पहली बार 1813 में पहली दावा किया था कि बाबर ने 1528 में राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। इस बात को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष में हिंसा हुई। ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1859 में विवादित भूमि पर तार की बाड़ बनवाई गई थी। महंत रघुबर दास ने पहली बार वर्ष 1885 में ब्रिटिश कोर्ट में राम मंदिर बनाने की इजाजत मांगी थी।

ढांचा को गिराकर मूर्ति रखी गईं

वर्ष 1934 में पहली बार विवादित ढांचा गिराया गया था। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा इसकी मरम्मत करवाई थी। वहीं 23 दिसंबर 1949 को राम की मूर्ति रखकर पूजा शुरू कर दी थी। इसके बाद नमाज अदा करना बंद कर दिया और मामला कोर्ट में पहुंच गया।

विश्व हिंदू परिषद ने मुद्दा बनाया

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने वर्ष 1984 में बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम मंदिर के निर्माण के लिए अभियान की शुरुआत की थी। इसके लिए विश्व हिंदू परिषद के द्वारा जहग-जगह पर प्रदर्शन भी किए गए। वहीं भाजपा ने भी राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को हिंदू अस्मिता से जोड़ा और संघर्ष शुरू किया।

बाबरी एक्शन कमेटी गठित की गई

जब फैजाबाद जिला कोर्ट ने हिन्दू समाज के लोगों को विवादित जगह पर पूजा करने की अनुमति दे दी थी। इसके लिए दोबारा ताले भी खोल दिए गए थे। कोर्ट के इस फैसले से नाराज मुस्लिमों ने वर्ष 1986 में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। कारसेवकों के द्वारा 6 दिसंबर 1992 को ढांचे गिरा दिया गया। जिसके बाद अस्थाई राम मंदिर बनाया गया था। वहीं दिसंबर 1992 में लिब्रहान आयोग गठित हुआ।

इलाबाहाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई शुरू

अयोध्या विवादित भूमि पर मालिकाना हक को लेकर वर्ष 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की। हाईकोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2003 में पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई की। पुरातत्व सर्वेक्षण ने दावा किया था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। वर्ष 2010 में हाईकोर्ट ने विवादित भूमि को हिन्दू संगठन, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर-बराबर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था।

2011 में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी

फरवरी 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई शुरू की।

मध्यस्थता के प्रयास विफल रहा

अयोध्या विवाद का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा भेजे गए दस्तावेजों का अनुवाद नहीं होने की वजह से यह मामला टलता रहा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की थी जो कि पूरी तरह से विफल रही। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई 6 अगस्त 2019 से लगातार हो रही है। आज कोर्ट में सुनवाई का अंतिम दिन है। इसी के साथ इस मामले की सुनवाई आज समाप्त होने की संभावना है।

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