आज ही के दिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्वीकार किया था बौद्ध धर्म, जानें इसकी वजह

आज ही के दिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्वीकार किया था बौद्ध धर्म, जानें इसकी वजह
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देश के सर्वोच्‍च सम्‍मान 'भारत रत्‍न' से सम्‍मानित और संविधान निर्माता बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर ने आज ही के दिन नागपुर में हिंदू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म को अपनाया था। बाबासाहेब ने 4 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था।

देश के सर्वोच्‍च सम्‍मान 'भारत रत्‍न' से सम्‍मानित और संविधान निर्माता बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर ने आज ही के दिन नागपुर में हिंदू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म को अपनाया था। हमेशा से बाबासाहब का धार्मिक रूपांतरण अक्सर लोगों के बीच जिज्ञासा और बहस का विषय रहा है। जो सभी को आश्चर्यचकित करते हैं कि उन्होंने बौद्ध धर्म क्यों चुना या उन्होंने इस्लाम, ईसाई धर्म या सिख धर्म को क्यों नहीं चुना था।

1956 को अपनाया बौद्ध धर्म

बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर ने 4 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था। बौद्ध अपनाने की बात उन्होंने बताई थी। अंबेडकर ने इसका उत्तर 'बुद्ध और भविष्य के उनके धर्म' नामक निबंध में मिलती है जो 1950 में कोलकाता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।


पहले ही कर दी थी घोषणा

6 दिसंबर भारत के लाखों दलितों और सामाजिक रूप से पिछड़े नागरिकों के लिए एक विशेष दिन है। क्योंकि बाबा साहब का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ। उसके बाद उन्हें मरणोपरांत 1990 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वो एक एक विधिवेता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और विचारक थे। लेकिन उनके निधन से दो महीने पहले उन्होंने एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम उठाया, जिसने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया। यह वह समय था जब वह बौद्ध धर्म को अपनाया था।

एक भाषण के दौरान कही थी ये बड़ी बात

कहते हैं कि बाबा साहेब की धर्म परिवर्तन करने से ना केवल अंबेडकर बौद्ध धर्म की शुरुआत को पहचान मिली बल्कि हर साल अधिक अनुयायियों को इकट्ठा करना जारी रखता है। बल्कि भारत के दमनकारी जाति व्यवस्था के तहत पीड़ित लाखों दलितों को अपनी पहचान मिली। इसकी घोषणा 1935 में अंबेडकर ने एक भाषण में कर दी थी।

अंबेडकर ने कहा था कि समस्या पर गहन विचार करने के बाद हर किसी को यह स्वीकार करना होगा कि अछूतों के लिए रूपांतरण आवश्यक है, क्योंकि स्वशासन भारत के लिए है। दोनों की परम वस्तु एक ही है। उनके अंतिम लक्ष्य में जरा सा भी अंतर नहीं है। यह अंतिम उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना है। और यदि स्वतंत्रता मानव जाति के जीवन के लिए आवश्यक है, तो अस्पृश्यों का रूपांतरण, जो उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है, कल्पना के किसी भी खंड द्वारा बेकार नहीं कहा जा सकता है।


छोटी जाति के लोगों को दी पहचान

इसके बाद उन्होंने 21 साल बाद 1956 को बाबासाहब ने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। नागपुर में एक सरल, पारंपरिक समारोह रखा गया था। हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तन का खतरा या भौतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि उनके विश्वास के प्रति अविश्वास के कारण वो ऐसे नेता बने। दलित समुदाय के लिए जीवन के एक नए तरीके का समर्थन था क्योंकि यह हिंदू धर्म की कुल अस्वीकृति थी और छोटी जातियों के लोगों के लिए यह अत्याचार था। जिसको उन्होंने बदल दिया।

बौद्ध धर्म को लेकर कही थी ये बात

बौद्ध धर्म परिवर्तन के दौरान कहा कि बुद्ध का धम्म सर्वश्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म सबसे वैज्ञानिक धर्म है। उन्हें यह भी विश्वास था कि बौद्ध धर्म देश के शोषित वर्गों की सामाजिक स्थिति को सुधार सकता है। कहते हैं कि उनका निर्णय दृढ़ विश्वास पर आधारित था कि बौद्ध धर्म में रूपांतरण वास्तव में देश के सबसे उत्पीड़ित वर्गों की सामाजिक स्थिति में सुधार का एक नया रास्ता था और उन्हें सम्मान और समानता का जीवन दे सकता है।

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