Bharatiya Kisan Union History: भारतीय किसान यूनियन का इतिहास, यहां पढ़ें पूरी Inside Story

Bharatiya Kisan Union History: भारतीय किसान यूनियन का इतिहास, यहां पढ़ें पूरी Inside Story
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1978 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के भारतीय लोक दल के साथ मिलकर किसानों के लिए एक राष्ट्रीय मंच बनाने के लिए पीकेयू को बीकेयू यानी भारतीय किसान संघ में बदल दिया गया।

भारतीय किसान संघ (BKU) एक बार फिर से चर्चा में है। लेकिन इस बार आंदोलन नहीं बल्कि संघ में अराजकता का माहौल बन गया है। अभी हाल ही में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि पर संघ दो फाड़ में बंट गया। महेंद्र सिंह टिकैत द्वारा गठित किसान संघ, जिसका नेतृत्व उनके बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत कर रहे थे। लेकिन अब बीकेयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश सिंह चौहान को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना है। जिसको लेकर विवाद सामने आया है।

सबसे पहले भारतीय किसान संघ का इतिहास

पंजाब खेतीबाड़ी जमींदारी यूनियन के नाम से साल 1972 में संघ की शुरुआत हुई, लेकिन बाद में 11 किसान समूह का इसमें विलय हुआ और 1978 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के भारतीय लोक दल के साथ मिलकर किसानों के लिए एक राष्ट्रीय मंच बनाने के लिए पीकेयू को बीकेयू यानी भारतीय किसान संघ में बदल दिया गया। 78 से इसका नाम बीकेयू है।


कई राज्यों के संघ के साथ बीकेयू

साल 1980 में अखिल भारतीय किसान सम्मेलन का आयोजन हुआ और बीकेयू के दायरे में हरियाणा की किसान संघर्ष समिति, कर्नाटक का रायतु संघ और तमिलनाडु का व्यवसायगल संघम का एकीकरण हुआ और 1982 में नारायणसामी नायडू के नेतृत्व में बीकेयू और भूपेंद्र सिंह मान के नेतृत्व में बीकेयू के तहत संघ का एक विभाजन हुआ। लेकिन साल 1986 को महेंद्र सिंह टिकैत द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिसौली में मुख्यालय के साथ एक गैर-पक्षपातपूर्ण संगठन के रूप में पुनर्गठित हुआ, जो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ चला।

भारतीय किसान संघ आंदोलन का उदय

1980 के दशक के दौरान यह कई आंदोलनों के माध्यम से उभरा, जिसमें इंदिरा गांधी के आपातकाल के बाद बिहार आंदोलन से इसकी बढ़त शुरू हुई। इसके अलावा 1988 में मेरठ घेराबंदी आंदोलन सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा। 25 दिनों तक चला धरना था। इसी दौरान शरद अनंतराव जोशी के नेतृत्व में बीकेयू ने बोट क्लब रैली का नेतृत्व किया। जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों से 8 लाख किसानों की एक सामूहिक भीड़ पहुंची थी। दिल्ली में उद्योग भवन और कृषि भवन के बीच किसान प्रदर्शनकारी पहुंचे थे। किसानों की मांग भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया से थी। गन्ने की कीमतों पर नियंत्रण, किसानों को कर्ज माफी और पानी और बिजली की दरों को कम करना शामिल था। धीरे धीरे इसकी कमान महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के हाथों में आई।

कहते हैं कि जनवरी 1988 में उत्तर प्रदेश के मेरठ में लगभग 20 हजार किसान एकत्रित हुए। इन किसानों ने मेरठ में धरना दिया। उनके आंदोलन का नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत ने किया था। इस आंदोलन में किसानों ने बिजली की दरों में वृद्धि का विरोध किया था। लेकिन अभी हाल ही में कृषि कानून को लेकर बीकेयू का किसान आंदोलन सबसे लंबा धरना कह सकते हैं क्योंकि दिल्ली के बॉर्डरों पर कम से कम एक साल तक किसान प्रदर्शन करते रहे थे, जिसमें पंजाब, हरियाण और यूपी के किसान शामिल हुए थे। सरकार के कृषि कानून वापसी के बाद आंदोलन धीरे धीरे खत्म हो गया। लेकिन संघ अभी भी कुछ मांगों को लेकर लगातार काम कर रहा है।

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