राजस्थान में Vasundhara vs Others में उलझी भाजपा, सीएम फेस तय करना आसान नहीं

आनंद राणा, हरिभूमि ब्यूरो
भाजपा राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का नाम तय करने में खासा समय लगा रही है। पार्टी पिछले दिनों मध्यप्रदेश के लिए उम्मीदवारों की दो सूची और छत्तीसगढ़ के लिए एक सूची जारी कर चुकी है। ऐसे में राजस्थान का इंतजार काफी लंबा होता जा रहा है। बताया जा रहा है कि राजस्थान का मामला काफी पेचीदा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ तालमेल बिठाना पार्टी नेतृत्व के लिए टेढ़ी खीर बना हुआ है। गुटबाजी से पार पाने के लिए ही भाजपा ने सतीश पूनिया को हटाकर सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। सवाल ये भी है कि मप्र की तर्ज पर क्या भाजपा नेतृत्व राजस्थान में भी केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ायेगा।
हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जयपुर में बैठक कर प्रदेश के आला नेताओं के साथ उम्मीदवारों के नाम पर मंथन किया। साफ है कि भाजपा के लिए राजस्थान में उम्मीदवार तय करना मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जितना सरल और सहज नहीं है। हालांकि चर्चा है कि शाह और नड्डा ने जयपुर प्रवास के दौरान वसुंधरा को सबसे ज्यादा अहमियत देते हुए उनके साथ गंभीर चुनावी विमर्श किया और पूर्व मुख्यमंत्री को हरसंभव तरीके से यह बताया कि चुनावी समर में उनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहने वाली है।
सूत्रों का कहना है कि वसुंधरा राजे का जोर इस बात पर है कि उनको मुख्यमंत्री का फेस घोषित किया जाए और टिकट बंटवारे के वक्त उनके द्वारा सुझाये गए नामों को प्राथमिकता दी जाए। सूत्रों के अनुसार फिलहाल भाजपा हाईकमान इस मामले में बीच का रास्ता ले रहा है। राजे को सीएम फेस बनाने पर न तो हां कही जा रही है और न ही ना। उन्हें बस इतना आश्वासन दिया गया है कि पहले एकजुट होकर चुनाव में जीत हासिल करनी है फिर मुख्यमंत्री का नाम तय करते समय उनकी दावेदारी पर चर्चा कर ली जाएगी। राजे को बताया गया है कि अगर उनको सीएम फेस नहीं बनाया जा रहा है तो किसी और नेता को भी नहीं बनाया जा रहा है, फिलहाल फोकस चुनाव जीतने पर रहना चाहिए। टिकटों को लेकर वसुधंरा राजे से अपनी लिस्ट देने को कहा गया है।
दरअसल राजस्थान में भाजपा नेताओं के बीच पसरी गुटबाजी के चलते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराना आसान दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस के हालात भी ऐसे ही हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खाई किसी से छुपी नहीं है फिर भी पिछले कुछ समय से इन दोनों नेताओं को समझाने में कुछ हद तक कांग्रेस आलाकमान सफल रहा है। लंबे वक्त से यह देखने में आ रहा है कि वसुंधरा राजे और दिल्ली में भाजपा नेतृत्व के बीच यदाकदा संवाद भले ही होता रहा हो पर दूरी खत्म नहीं हुई है। चुनाव सिर पर हैं और राजे के पास भी तेवर ढीले करने के अलावा कोई चारा फिलहाल नहीं है पर जानकार मानते हैं कि अगर उनकी अनदेखी हुई तो कोई भी बड़ा फैसला लेने से पीछे नहीं हटेंगी। जाहिर है इसी वजह से पार्टी नेतृत्व फूंक फूंक कर कदम रख रहा है और उम्मीदवारों के चयन में एकतरफा फैसला लेने से बच रहा है।
भाजपा राजस्थान में भी लड़ाई आसान नही मान रही है। देखना यह होगा कि क्या मध्यप्रदेश की तर्ज पर यहां भी केन्द्रीय मंत्रियों और कुछ सांसदों को विधानसभा के चुनावी समर में उतारा जायेगा या नहीं। केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को पार्टी नेतृत्व ने लगातार महत्त्व दिया है। दो तीन महीने पहले तक यह चर्चा जोरों पर थी कि शेखावत सीएम फेस बनाये जा सकते हैं। अगर उन्हें टिकट दिया जाता है तो उसके मायने वसुंधरा राजे के लिए गहरे होंगे।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा उन सीटों पर आंख लगाये हुए है जहां पिछले दो विधानसभा चुनावों से उसके उम्मीदवारों को जीत नसीब नहीं हुई है। दो दिन पहले ही पार्टी ने दूसरे राज्यों के अपने 44 नेताओं को राजस्थान के विभिन्न इलाकों में चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है।
राजस्थान में भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। अब विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजस्थान विधानसभा चुनाव की जीत हार पर पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। आरएसएस से भी भाजपा हर विधानसभा सीट पर फीडबैक ले चुकी है। कौन दावेदार मजबूत रहेगा कौन कमजोर कड़ी साबित हो सकता है इसे लेकर पार्टी ने सर्वे भी करवाया है। लिहाजा माना यही जा रहा है कि किसी बड़े नेता की सिफारिश पर ही टिकट मिल जाए ऐसी संभावना कम ही है। पार्टी नेतृत्व टिकट के संदर्भ में जातिगत आंकड़ों पर भी निगाह बनाये हुए है।
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