Raaj Kumar 27th death anniversary: 27 साल बाद भी 'जानी' आज तक भूले नहीं गए, पढ़िये उनकी दिलचस्प बातें

Raaj Kumar 27th death anniversary: 27 साल बाद भी जानी आज तक भूले नहीं गए, पढ़िये उनकी दिलचस्प बातें
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Haribhoomi Explainer on Raaj Kumar : बॉलीवुड में जानी के नाम से मशहूर अभिनेता राजकुमार ने 3 जुलाई 1996 को अंतिम सांस ली थी। केवल बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि उनके प्रशंसक भी उन्हें याद कर रहे हैं। अपनी दमदार एक्टिंग और डायलॉग्स बोलने के अंदाज नेे सभी का दिल जीत लिया था। हालांकि बॉलीवुड के कई एक्टर उनके अंदाज से बेहद जलते थे। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम के जानते हैं बॉलीवुड के 'जानी' के जीवन और फिल्मी कैरियर से जुड़ी खास बातें...

Haribhoomi Explainer: बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता राजकुमार अपने शानदार अभिनय तथा सबसे अलग संवाद शैली के लिए आज भी बॉलीवुड में मशहूर हैं। कल यानी की 3 जुलाई को उन्हीं दिग्गज कलाकार की 27 वीं पुण्यतिथि है। 1996 में कैंसर के चलते उनका निधन हो गया था। फिल्म रंगीली से अपनी फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले 'जानी' के नाम से मशहूर हैं। बॉलीवुड का यह अभिनेता पर्दे पर जितने बेबाक थे, उतने ही असल जिंदगी में मुंहफट भी थे। इसी कारण उन्हें इंडस्ट्री में कम ही लोग पसंद करते थे, लेकिन दुनिया उनकी आवाज और एक्टिंग की दीवानी थी। तो चलिए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं अभिनेता की पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें...

कुछ ऐसे हुई थी शुरुआत

एक्टर राजकुमार का जन्म 8 अक्तूबर 1926 को बलूचिस्तान में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। बचपन में उनका नाम कुलभूषण पंडित था, जिसे बाद में उन्हा नाम बदलकर राजकुमार कर लिया। 1947 में देश का बंटवारा हुआ था, तो उनका पूरा परिवार भारत आकर मुंबई में रहने लगा। मुंबई आने के बाद वह पुलिस की नौकरी करने लगे, जो उन्हें खूब पसंद भी थी। जिस थाने में वह थे, वहां अक्सर फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार फिल्म निर्माता बलदेव दुबे उनसे मिले और उन्हें राजकुमार का बात करने का सलीका खूब भाया। बलदेव दुबे ने राजकुमार को अपनी फिल्म में काम करने का ऑफर दिया, तो उन्होंने तुरंत नौकरी से इस्तीफा देकर फिल्मी दुनिया में आ गए।

मदर इंडिया से मिली पहचान

राजकुमार का बोलने का अंदाज इतना अच्छा था कि वह सबको खूब पसंद आता था। यही कारण है कि उनकी फिल्मों के कई डायलॉग आज भी लोगों के जुबान पर होते हैं। साल 1965 में आई फिल्म वक्त का एक डायलॉग, 'चिनाय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते', यह तो लगभग हर किसी याद होगा। फिल्मी दुनिया में राजकुमार को बड़ी पहचान फिल्म मदर इंडिया से मिली, जिसके बाद उनकी एक से बढ़कर एक सफल फिल्में आई।

राजकुमार का फिल्मी कैरियर

राजकुमार ने 1952 की फिल्म रंगीली से अभिनय की शुरुआत की और आबशार, घमंड जैसी फिल्मों में दिखाई दिए, लेकिन सोहराब मोदी की नौशेरवान-ए-आदिल (1957) में राजकुमार नौशाजाद के रूप में प्रसिद्ध हो गए। 1957 में, उन्होंने मदर इंडिया में नरगिस के पति के रूप में अपनी संक्षिप्त भूमिका से खूब प्रसिद्धि हासिल की। इसके बाद उन्होंने पैगाम (1959) में दिलीप कुमार के साथ एक मील मजदूर की भूमिका निभाई। यश चोपड़ा के पारिवारिक नाटक वक्त में उन्हें सुनील दत्त, शशि कपूर और बलराज साहनी के साथ लिया गया था। श्रीधर की फिल्म दिल एक मंदिर में, राज कुमार ने एक कैंसर रोगी की भूमिका निभाई जिसके लिए उन्होंने दिल एक मंदिर और वक्त फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।

उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में हमराज (1967), हीर रांझा (1971), लाल पत्थर (1971) और पाकीज़ा (1972) शामिल हैं। 1970 के दशक के मध्य तक उन्होंने कम फिल्मों में अभिनय किया और 1980 के दशक में कुदरत (1981), एक नई पहेली (1984), मरते दम तक (1987), मुकद्दर का फैसला (1987) और जंग बाज (1989) जैसी फिल्मों से खूब नाम कमाया। 1991 में, वह 32 साल बाद सुभाष घई की सौदागर में दिलीप कुमार के साथ फिर से जुड़े और 1992 की हिट फिल्म तिरंगा में दिखाई दिए। उनकी आखिरी फिल्म 1995 में गॉड एंड गन थी।

गले के कैंसर से जूझ रहे थे राजकुमार

अपने जीवन के अंतिम पढ़ाव के समय राजकुमार गले के कैंसर का सामना कर रहे थे। इस बारे में सिर्फ उनका परिवार ही जानता था। वह किसी से अपनी बीमारी की बात शेयर नहीं करना चाहते थे। हालांकि समय के साथ बात सबके सामने आ गई थी।

अंतिम यात्रा में नहीं चाहते थे कि शामिल हो लोग

राजकुमार यह नहीं चाहते थे कि उनकी अंतिम यात्रा में बॉलीवुड या अन्य लोग शामिल हों। उनका कहना था कि वह अंतिम यात्रा को तमाशा नहीं बनाना चाहते हैं। उनकी अंतिम यात्रा उनका पारिवारिक मामला है, उसमें मेरे परिवार के अलावा कोई न हो।

इससे जुड़ी एक कहानी उनकी मशहूर फिल्म तिरंगा के निर्देशक मेहुल कुमार बताते हैं कि फिल्म मरते दम तक की शूटिंग के दौरान राजकुमार अपनी मौत का सीन फिल्मा रहे थे। फिल्म में जब उनकी श्मशान यात्रा निकली और उन्हें गाड़ी में सुलाया गया तो मैं उन्हें एक हार पहनाया, तब उन्होंने कहा था कि जानी आज हार पहना लो, जब सही में दुनिया से जाएंगे तो पता भी नहीं चलेगा। आगे उन्होंने बताया था कि एक्टर राजकुमार का मानना था कि श्मशान यात्रा में लोग अच्छे अच्छे सफेद कपड़े पहनकर आते हैं और अंतिम यात्रा को मजाक और तमाशा बना देते हैं, इसी कारण हमने यह फैसला किया है कि मेरी अंतिम यात्रा में परिवार के अलावा अन्य कोई शामिल नहीं होना चाहिए।

राजकुमार की पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी 7 खास बातें

1. एक फ्लाइट के दौरान राजकुमार की मुलाकात जेनिफर से हुई, जो फ्लाइट अटेंडेंट थीं। बाद में जेनिफर ने राजकुमार से शादी कर ली। शादी के बाद जेनिफर ने अपना नाम बदलकर गायत्री रख लिया।

2. राजकुमार का जन्म पाकिस्तान में एक कश्मीरी पंडित के घर हुआ था, उनका असली नाम कुलभूषण नाथ पंडित था।

3. राजकुमार ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1952 में आई फिल्म रंगीली से की थी।

4. दिग्गज अभिनेता ने 70 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया। उनकी 1957 की फिल्म मदर इंडिया ऑस्कर नामांकित थी।

5. राज कुमार ने चार दशकों तक फिल्मों में काम किया और कई हिट फिल्में दीं।

5. फिल्म दिल एक मंदिर में राजकुमार ने कैंसर मरीज का किरदार निभाया था। इस रोल के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था।

6. राज कुमार और दिलीप कुमार की एक दूसरे से नहीं बनती थी। लेकिन, 30 साल बाद दोनों ने फिल्म सौदागर में साथ काम किया। हालांकि, फिल्म की शूटिंग के दौरान, उन्होंने अपने सीन के अलावा कभी भी एक-दूसरे से बात नहीं की।

7. 1972 मे आई फिल्म पाकीजा के लिए वह पहली पसंद नहीं थे। इस फिल्म के लिए पहले राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त और धर्मेंद्र को साइन किया गया था। लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

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