BRICS Summit 2023: ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी चीन चलाएगा 'हथियार', शी जिनपिंग पर पलटवार के लिए PM Modi भी तैयार

BRICS Summit 2023: ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी चीन चलाएगा हथियार, शी जिनपिंग पर पलटवार के लिए PM Modi भी तैयार
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BRICS Summit 2023: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आज से 15वां ब्रिक्स सम्मेलन शुरू हो जाएगा। 24 अगस्त तक चलने वाले इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी भारत से रवाना हो चुके हैं। वहां पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हो सकती है। दरअसल, चीन के पास एक ऐसा एजेंडा है, जो कि भारत की सहमति के बिना पूरा नहीं हो सकता है। भारत भी इस एजेंडे से भली भांति वाकिफ है। तो चलिये जानते हैं कि चीन का क्या एजेंडा है और भारत इससे कैसे निपटेगा।

BRICS Summit 2023: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आज से 15वें ब्रिक्स सम्मेलन की शुरुआत होने जा रही है। 24 अगस्त तक चलने वाले इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रवाना (PM Narendra Modi) हो चुके हैं। बताया जा रहा है कि इस सम्मेलन में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping) के बीच मुलाकात हो सकती है क्योंकि इस बार इसके पीछे की वजह बेहद बड़ी है। इस वजह को बताने से पहले बताते हैं कि पीएम मोदी ने जोहान्सबर्ग के लिए रवाना होने से पहले क्या कहा है।

प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार पीएम मोदी (PM Modi) ने कहा है कि दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के निमंत्रण पर जोहान्सबर्ग में 22 से 24 अगस्त तक होने वाले 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहा हूं। वहां मौजूद कुछ नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें होंगी, जिसे लेकर उत्सुक हूं। उन्होंने बताया कि 25 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका (South Africa) से एथेंस, ग्रीस की यात्रा करूंगा। यह प्राचीन भूमि है, जिस पर 40 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा करने का सम्मान मिला है।

पीएम मोदी और शी जिनपिंग में होगी मुलाकात

ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर अटकलें चल रही हैं कि पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच यहां मुलाकात (PM Modi and Xi Jinping Meeting) होगी या नहीं। कुछ का कहना है कि इस मुलाकात पर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन कुछ राजनीतिक जानकारों के हवाले से बताया जा रहा है कि इस बार शी जिनपिंग के पास एक बड़ा कारण है, जो पीएम मोदी से मुलाकात करने के लिए पूरा जोर डालेंगे। आगे बताते हैं कि शी जिनपिंग के पास ऐसा क्या बड़ा कारण है, जो ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बेचैन है।

ब्रिक्स सम्मेलन में चाहता है बड़ा कद

ब्रिक्स ऐसा गुट है, जिसमें भारत और चीन के अलावा ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका देश शामिल हैं। चीन चाहता है कि ब्रिक्स समूह का विस्तार किया जाए, जिससे उसे इस समूह में बड़ा कद हासिल हो सके। वर्तमान में चीन और भारत, दोनों का कद बड़ा है। चीन जहां चाहता है कि ब्रिक्स समूह को बड़ा करके जी-7 देशों के समूह को कमजोर करके पश्चिमी देशों को चुनौती दे सके, वहीं भारत ने हमेशा से गुटनिरपेक्षता सिद्धांत का ही पालन किया है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को लेकर भी शुरुआत में जहां चीन ने खुलकर रूस को समर्थन दिया था, वहीं भारत ने दोनों देशों को शांति का पाठ पढ़ाया था। इसके चलते पश्चिमी देशों में भारत की प्रतिष्ठा में और इजाफा हुआ था।

40 से अधिक देश ब्रिक्स समूह में होना चाहते हैं शामिल

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 40 से अधिक देश हैं, जो कि ब्रिक्स समूह में शामिल होना चाहते हैं। ये ऐसे देश हैं, जो कि विकास के पथ पर तेजी के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें आर्थिक विकास में हिस्सा बनाया जाए। एकजुट होने के चलते अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी बात सुनी जाएगी। चीन चाहता है कि इन देशों को समूह में शामिल कराकर बड़ा कद हासिल कर सके। हालांकि भारत के नजरिये से देखा जाए तो चीन का कद बढ़ना भारत के लिए ही खतरनाक साबित हो सकता है। यही वजह है कि भारत ऐसा बदलाव चाहता है, जिससे गुटनिरपेक्षता की छवि को नुकसान न पहुंचे।

पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच हो सकती हैं ये बातें

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग के बीच आपसी मुद्दों पर बातचीत होगी। साथ ही, चीन अगर इस समूह के विस्तार की बात कहता है, तो भारत इस समूह की सदस्यता देने के लिए औपचारिक मानदंड बनाने पर जोर देगा। दरअसल, इस समूह का गठन अनौपचारिक रूप से हुआ है। पहले इस समूह में केवल चार देश यानी ब्राजील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। 2009 की बात है, जब पहली बार इन चारों देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मिले थे और आर्थिक व्यवस्था पर चर्चा की थी। इसके अगले साल दक्षिण भी इस समूह में शामिल हो गया।

इसके बाद इस समूह का नाम ब्रिक से ब्रिक्स कर दिया गया। चूंकि यह संगठन अनौपचारिक तरीके से गठित हुआ, लिहाजा पश्चिमी देशों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि बीते सालों में ब्रिक्स समूह के देशों ने जिस तरह से तेजी पकड़ी है, उसके चलते पश्चिमी देशों को इन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया है। विशेषकर भारत की पश्चिमी देशों में हर तरफ सराहना मिल रही है। यही कारण है कि भारत ब्रिक्स समूह का विस्तार करके गुटनिरपेक्ष की छवि को खराब नहीं करना चाहता है। शायद इसी वजह से भारत ब्रिक्स समूह की सदस्यता के लिए औपचारिक मानदंड बनाने पर जोर दे रहा है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होगी, तो दोनों देशों के बीच के तनाव को कम करने और ब्रिक्स समूह की सदस्यता को औपचारिक बनाने की रणनीति पर अवश्य मंथन होना लाजमी है।

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