Budget 2020 : आम लोगों के लिए भोजन की थाली हुई सस्ती

Budget 2020 (बजट 2020) : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने आज संसद में आज आम बजट से पहले आर्थिक समीक्षा 2020 (Economic Survey 2020) पेश की। समीक्षा में कहा गया है कि अब औद्योगिक मजदूरों की प्रतिदिन आमदनी की तुलना में भोजन की थाली और सस्ती हो गई है। समीक्षा पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि 2006-7 की तुलना में 2019-20 में शाहाकारी भोजन की थाली 29 फीसदी और मांसाहारी भोजन की थाली 18 प्रतिशत सस्ती हुई है।
थाली के मूल्य का आंकलन किया गया
भारत में भोजन की थाली के अर्थशास्त्र के आधार पर समीक्षा में यह निष्कर्ष निकाला गया है। यह अर्थशास्त्र भारत में एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक थाली के लिए किए जाने वाले भुगतान को मापने का प्रयास है। भारतीयों के लिए प्रतिदिन के आहार से संबंधित दिशा-निर्देशों की मदद से थाली के मूल्य का आंकलन किया गया है। इसके लिए अप्रैल 2006 से अक्टूबर 2019 तक 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लगभग 80 केंद्रों से औद्योगिक मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से कीमतों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।
शाकाहारी भोजन की थाली की कीमतों कमी आई
समीक्षा के अनुसार संपूर्ण भारत के साथ-साथ इसके चारों क्षेत्रों- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में यह पाया गया कि शाकाहारी भोजन की थाली की कीमतों में 2015-16 से काफी कमी आई है। हालांकि, 2019 में इनकी कीमतों में तेजी रही। ऐसा सब्जियों और दालों की कीमतों में पिछले साल की तेजी के रूझान के मुकाबले गिरावट का रूख रहने के कारण हुआ है। इसके परिणामस्वरूप 5 सदस्यों वाले एक औसत परिवार को जिसमें प्रति व्यक्ति रोजना न्यूनतम दो पौष्टिक थालियों से भोजन करने हेतु प्रतिवर्ष औसतन 10887 रूपये जबकि मांसाहारी भोजन वाली थाली के लिए प्रत्येक परिवार को हर साल औसतन 11787 रूपये का लाभ हुआ है।
दुनियाभर के देश जीरो हंगर की नीति पर सहमत हुए
समीक्षा के अनुसार 2015-16 में थाली की कीमतों में बड़ा बदलाव आया। ऐसा 2015-16 में थालीनॉमिक्स अर्थात् भोजन की थाली के अर्थशास्त्र में बड़े बदलाव के कारण संभव हुआ। सरकार की ओर से 2014-15 में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता तथा कृषि बाजार की कुशलता बढ़ाने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए गए। इसके तहत अधिक पारदर्शी तरीके से कीमतों का निर्धारण किया गया। आर्थिक समीक्षा के अनुसार भोजन अपने आप में पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह मानव संसाधन विकास का एक महत्वपूर्ण घटक भी है जो राष्ट्रीय संपदा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सतत विकास लक्ष्य के तहत दुनियाभर के देश जीरो हंगर की नीति पर सहमत हुए हैं।
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