आखिर लोगों में क्यों है नागरिकता संशोधन कानून को लेकर इतना गुस्सा, पढ़े लें क्या है आर्टिकल 14

आखिर लोगों में क्यों है नागरिकता संशोधन कानून को लेकर इतना गुस्सा, पढ़े लें क्या है आर्टिकल 14
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नागरिक संशोधन कानून के मुताबिक, किसी विदेशी के व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इस नए कानून के तहत 6 धर्म हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इस बिल में 11 की अवधि को घटाकर 6 साल कर दी गई है। लेकिन आखिर क्यों मचा है बवाल....

आखिर लोगों में क्यों है नागरिकता संशोधन कानून को लेकर इतना गुस्सा.... नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश भर में आक्रोश देखने को मिल रहा है। देश के कई राज्यों में इस कानून को लेकर काफी हंगामा चल रहा है। 12 दिसंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद से यह बिल कानून बन गया। इस कानून का विरोध सबसे पहले असम में देखने को मिला। असम के बाद इस बिल का विरोध दिल्ली में फिर उसके बाद यूपी के कई जिलों में देखने को मिला। इस कानून का विरोध अब पश्चिम बंगाल तक पंहुच गया है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है नागरिक संशोधन कानून और उससे जुड़े कुछ पहलुओं को कि आखिर इस कानून को लेकर लोगों में इतना गुस्सा क्यों है?

नागरिक संशोधन बिल 2019 क्या है?

नागरिक संशोधन बिल के मुताबिक किसी विदेशी व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इस बिल के अनुसार 6 धर्म हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इस बिल में 11 की अवधि को घटाकर 6 साल कर दी गई है।

यानि नागरिकता संशोधन बिव 2019 के मुताबिक, धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हिंदु, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान है।

नागरिकता अधिनियम 1955 इस एक्ट के तहत भारतीय नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना जरूरी है।

विवाद की वजह

इस कानून का सबसे बड़ी विवाद की वजह है इस लिस्ट में मुस्लिम धर्म का कहीं से कहीं तक कोई जिक्र नहीं है। इससे यह विवाद बन रहा है कि यह बिल मुस्लिमों के बिल्कुल खिलाफ है।

यह देश सभी का है, तो धर्म के नाम पर नागरिकता कैसे तय की जा सकती है। अगर हिंदु, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों समुदाय के शरणार्थी को नागरिकता मिल सकती है और अगर मुस्लिम शरणार्थी है तो उसे नागरिकता नहीं मिल सकती।

यह बिल संविधान के अनुच्छेद - 14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

क्या है आर्टिकल 14?

भारत के संविधान के आर्टिकल 14 के मुताबिक राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा। मतलब आर्टिकल 14 के हिसाब से सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति को साथ भेदभाव नहीं करेगा। भारतीय संविधान के भाग-3 में मौजूद समता का अधिकार में आर्टिकल 14 के साथ ही अनुच्छेद-15 जुड़ा है। इसमें कहा गया है,राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।

असम के लोगों को क्यों है डर?

असम के लोग नहीं चाहते कि बांग्लादेश से आए हिंदू भारत के नागरिक बने। उनका मानना है कि इससे उनकी स्मिता खतरे में पड़ जाएगी। उन्हें यह भी डर है कि उनके लिए रोजगार के मौके घट जाएंगे। यही नहीं उन्हें अपनी असमी भाषा के भी गौड़ हो जाने का डर सता रहा है। इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी बांग्ला बोलते हैं। इसके चलते असम में बांग्ला का प्रभुत्व हो जाएगा और असमी गौड़ बन जाएगी। पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में इनर लाइन परमिट लागू है। वहां यह कानून लागू नहीं होगा। असम के लोगों खासकर उत्तरी असम के लोगों को डर है कि इनर लाइन परमिट के चलते हिंदू शरणार्थी भारतीय नागरिक बनने के लिए असम में घुसपैठ करेंगे।

कितने लोग जुड़ेंगे

संसदीय समिति के अनुसार, दूसरे देशों के रहने वाले इन अल्पसंख्यक समुदायों के 31 हजार 313 लोग लंबी अवधि के वीसा पर रह रहे हैं। यह लोग धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर शरण मांग रहे हैं। इंटेलीजेंस ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार, इन 31 हजार 313 लोगों में 25 हजार 447 हिंदू, 5 हजार 807 सिख, 55 ईसाई, 2 बौद्ध और 2 पारसी शामिल हैं।

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