पंजाब एपीसोड से कांग्रेस आलाकमान का इकबाल हुआ मजबूत, दलित मुख्यमंत्री बिठाकर यूपी में दिया संदेश

पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) में महीनों चली उठापटक के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) को हटकार जिस तरह दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को बिठाया गया इससे कांग्रेस आलाकमान को इकबाल मजबूत हुआ है। कैप्टन को किनारे करने का मतलब कांग्रेस में बिखराव, ऐसे कयासों पर विराम लग गया। इसे पूरे एपीसोड को चूंकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) सरपरस्ती में अंजाम तक पहुंचाया गया तो जाहिर है इसका अर्थ ये भी लगाया जा रहा है कि गांधी परिवार का कांग्रेस पार्टी में रुतबा कतई कमजोर नहीं पड़ा है। एक बुलावे पर पंजाब कांग्रेस के 80 में से 78 विधायकों का बैठक में पहुंचना, कैप्टन अमरिंदर सिंह से आराम से इस्तीफा करा लेना, फिर उतनी ही आसानी से चन्नी की ताजपोशी पंजाब सीएम के रूप में कर देना, शीर्ष नेतृत्व की पार्टी पर, पर अपने विधायकों पर पकड़ को दर्शाने काफी है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चल रही असंतुष्ट गतिविधियों पर भी अब आलाकमान की निगाह है।
उत्तर प्रदेश और पंजाब में साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं। पंजाब ऐसा सूबा है जहां से कांशीराम ने बसपा का उदय किया था। आम आदमी पार्टी के अग्रिम पंक्ति के अधिकतर नेता पंजाब में दलित समुदाय से हैं। उप्र में बसपा के दलित वोट बैंक को साधने और आप को पंजाब में काउंटर करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में दलित मुख्यमंत्री का कार्ड खेला। पंजाब में 33 फीसदी दलित वोट बैंक है। किसी भी पार्टी की चुनावी जीत में दलित वोट बैंक बड़ा किरदार अदा करती रही है।
चन्नी के नाम पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी मुहर लगा दिया। हालांकि जिस तरह से कैप्टन सीमा पार की आतंकी गतिविधियों से पंजाब को बचाने का मामला लगातार उठा रहे हैं, इससे साफ अंदेशा लग रहा है कि वे जल्द ही पाला बदलेंगे। पंजाब की राजनीति में पहली बार होगा जब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नवजोत सिंह सद्धिू के रूप में भी सिख होगा और मुख्यमंत्री के रूप में भी सिख बिरादरी के चन्नी होंगे। अब तक एक हिंदू और एक सिख ही अलग अलग पदों पर रहे। ये बात अलग है कि इसी फार्मूले को दुरुस्त करने के लिए हो सकता है कि चन्नी के साथ दो उप मुख्यमंत्री भी कार्यभार संभालें। उनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हिंदू चेहरा सुनील जाखड़ के साथ सुखजिंदर सिंह रंधावा के नाम पर विमर्श हुआ है।
विदित हो कि पंजाब की अपनी ही सरकार की कार्य प्रणाली से खफा होकर कई विधायकों ने र्कैप्टन की कप्तानी से नाराजी जताई थी। पहले चरण में कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले नवजोत सिंह सद्धिू को सुनील जाखड़ की जगह प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई। दूसरी कड़ी में मल्लिकार्जुन खड़गे को विवाद खत्म करने लगाया गया। बात नहीं बनी। विधायक कैप्टन के खिलाफ लगातार लामबंद होते रहे। 80 में से 50 विधायकों ने खुलकर सोनिया गांधी को पत्र लिखकर र्कैप्टन के खिलाफ शिकायतें की। दल्लिी से भी कैप्टन के खिलाफ चल रही गतिविधियों को लगातार खादपानी दिया गया अंत में कैप्टन की विदाई कर दी गई।
शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद है कि पंजाब में भाजपा, अकाली गठबंधन खत्म होने और बेहर कमजोर विपक्ष होने का फायदा उठाया जा सकता है। यही वजह रही कि कांग्रेस के विधायकों ने ही विपक्ष का काम किया। लोकहित से मुद्दे उठाकर अपने ही मुख्यमंत्री को घेरा। अब मुख्यमंत्री को विदा कर नए चेहरे और नई टीम को पार्टी ने मौका दिया है। साढे पांच महीने बाद चुनाव होने हैं। कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि अपेक्षाकृत युवा टीम चुनावी राजनीति में नया इतिहास गढ़ने में कामयाब होगी।
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