Electoral Bond को लेकर संसद में कांग्रेस का जोरदार हंगामा, जानें क्या होता है ये

संसद का शीतकालीन सत्र जारी है। इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने सदन में इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरते हुए कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाले पूरे चंदे का खुलासा करे। इसी दौरान लोकसभा अध्यक्ष ने इस मुद्दे को पेपर टेबल पर रखने की बात कही है। इसको लेकर सदन में जोरदार हंगामा जारी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी चंदा राजनीतिक पार्टियों को मिलता है। इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी चंदा) को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है। इसको लेकर कई बार आरबीआई ने सरकार को चेताया भी है। लेकिन इसे समझने के लिए आपको सबसे पहले इलेक्टोरल बॉन्ड को समझना होगा। आखिर ये क्या होता है और इसको लेकर क्या है विवाद...
क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड
किसी भी राजनीतिक दल को मिलने वाला चंद इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है। जिसके बारे में दलों को चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होती है। राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग द्वारा एक सत्यापित अकाउंट दिया जाता है। जिसमें सभी चुनावी बॉन्ड का लेनदेन केवल इसी खाते में रखना होता है। चुनावी खाता भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा जारी किया जाता है। चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में खरीदे जा सकते हैं।
कौन खरीदता है बॉन्ड
दानकर्ता इन चुनावी बॉन्ड को खरीद सकते हैं और उन्हें दान के रूप में राजनीतिक दलों के खातों में डाल सकते हैं। चुनावी बॉन्ड 1 हजार रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक मिलते हैं। ये बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं और केवल उस अवधि के अंदर एक बैंक खाते के माध्यम से पार्टी को दिए जाते हैं। दान देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाती है।
साल 2017 से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत 20 हजार रुपये से अधिक दान दे सकते थे। लेकिन बाद में मोदी सरकार ने दान की सीमा 2 हजार रुपये कर दी। साल 2018 में सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 को अधिसूचित किया था। इसे नकद दान के विकल्प के रूप में और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए टाल दिया गया।
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