कोरोना वायरस को लेकर सभी पूर्वानुमान निकले गलत, सर्दी-गर्मी से लेकर ये दावे साबित हुए फेल

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के हाई टेंप्रेचर में बेअसर होने का अनुमान भी फेल साबित हो गया है। मार्च-अप्रैल में सीमित रूप से अपना प्रकोप दिखाने वाले कोविड-19 के वायरस ने मई में ताबड़तोड़ तरीके से लोगों को अपना शिकार बनाया है।
उसका प्रकोप कोरोना विस्फोट के रूप में जून में भी जारी है और बच्चे-बुजुर्गों के साथ यह युवा वर्ग को भी अपना शिकार बना रहा है। यहां तक कि हाईड्राक्सीक्लोरोक्वीन नामक टेबलेट का इस्तेमाल करने के बाद भी उपचार करने वाला स्टाफ भी संक्रमित हुआ और बाकी की तरह उन्हें भी परेशानी हुइ।
शुरुआती दौर में कोरोना वायरस ने इक्के-दुक्के लोगों को अपना शिकार बनाया था, इस दौरान इसका संक्रमण का असर कम होने को लेकर विशेषज्ञों द्वारा लगातार कयास लगाए जा रहे थे। मार्च में ही इस वायरस ने अपना असर दिखाना शुरू किया, तो यह तर्क सामने आया था कि स्वाइन फ्लू की तरह इसका वायरस भी तेज गर्मी के दौरान निष्क्रिय हो जाएगा। इससे लोगों को इस प्रकोप से छुटकारा मिलने की आस भी जाग गई थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और मई में कोरोना वायरस ने लोगों को भारी संख्या में अपना शिकार बनाया।
टेंप्रेचर 44-45 तक पहुंच गया, मगर इस संक्रमण का कोई तोड़ नहीं निकल पाया और लगातार मरीजों के सामने आने का सिलसिला जारी रहा। जून का पहला सप्ताह भी कुछ इसी तरह बीता और रोजाना सामने आने वाले केस का आंकड़ा 50 से 150 के बीच रहा। एक तर्क यह भी रहा कि कोरोना वायरस ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाता है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
इसमें ज्यादातर बच्चे और बुजुर्गों को शामिल किया गया था, मगर यह अनुमान भी मिथ्या साबित हुआ और बड़ी संख्या में युवा वर्ग इसका शिकार होकर न केवल अस्पताल तक पहुंचा, बल्कि कुछ लोगों की मौत तक हो चुकी है। कोरोना के संक्रमण के चेन को तोड़ने के लिए स्टे होम को कारगर उपाय माना जा रहा था, लेकिन कोरोना के वायरस ने ऐसे लोगों को भी अपनी चपेट में ले लिया, जो लॉकडाउन के दौरान अपने घर से बिना किसी बेहद जरूरी काम के बाहर तक नहीं निकले।
ऐसे हुए फेल
1. स्टे होम- कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए स्टे होम को कारगर माना जा रहा था, मगर इस वायरस ने भिलाई चरोदा की महिला की जान ले ली, जो लॉकडाउन के दौरान घर से बाहर तक नहीं निकली। वहीं देवेंद्रनगर में जो महिला पॉजिटिव पाई गई थी, वह इलाज के लिए केवल अस्पताल जाती थी।
2. ज्यादा टेंप्रेचर- कोरोना की शुरुआत के दौरान तेज गर्मी में इसका असर खत्म होने का अंदाजा लगाया जा रहा था, मगर ऐसा हुआ नहीं। उल्टे मई के दूसरे पखवाड़े में जब 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्मी पहुंची, तब कोरोना ने और जोर पकड़ा और पंद्रह दिनों के भीतर करीब तीन सौ केस सामने आ गए।
3. युवाओं पर जोर नहीं- कोरोना को लेकर यह भी कयास लगाया जा रहा था कि छोटे बच्चे और बुजुर्ग इसके अधिक शिकार होंगे, मगर कोरोना के वायरस ने बड़ी संख्या में युवाओं को अपनी चपेट में लिया और तीन की मौत भी हो गई, हालांकि उन्हें दूसरी बीमारी थी, वहीं 73 साल का बुजुर्ग और 3 माह का बच्चा भी इससे स्वस्थ होकर अपने घर लौट गया।
4. हाईड्राक्सीक्लोरोक्वीन- कोरोना से बचाव के लिए हाईड्राक्सीक्लोरोक्वीन को असरकारक माना जा रहा था। इससे शरीर में कोविड-19 के वायरस से लड़ने प्रतिरोधक क्षमता का विकास होना था। इसके बावजूद प्रदेश में कोरोना के फ्रंट वॉरियर माने जाने वाले चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ भी इसकी चपेट में आ गए।
वायरस का पॉवरफुल रजिस्ट्रेशन : डा. पिपरे
एम्स के पूर्व अस्पताल अधीक्षक डा. करन पिपरे के मुताबिक कोविड-19 वायरस का पॉवरफुल रजिस्ट्रेशन डेवलप कर चुका है। इसमें जनवरी-फरवरी की ठंड, अप्रैल मई की गर्मी और बीच-बीच में हुई बारिश में भी अपनी सक्रियता दिखाकर यह साबित कर चुका है कि यह किसी भी मौसम में एक्टिव रह सकता है।
घरों में रहने वाले भी इसका शिकार हो चुके हैं, जिससे इस बात की आशंका है कि इसका ट्रांसमिशन हो रहा है। चिकित्सकीय स्टाफ के संक्रमित होने से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि इस पर कोई दवा असर नहीं दिखा पा रही है। इस वायरस के इलाज के लिए जब तक किसी तरह की दवा की खोज पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके पूरी तरह नष्ट होने के आसार काफी कम हैं।
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